(Date : 05/May/2424)

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प्रो. संदीप चाहल ने बनाया बटरफलाई मैप ऑफ जालन्धर






जालंधर (अरोड़ा) :- पूरे विश्व में 20 मार्च को सैव सपैरोका दिवस के रूप में मनाया जाता है ताकि जनमानस को गोरईया की कम होती जनसंख्या और इसके संरक्षण एवं बचाने के उपाओं के बारे में जागरूक किया जा सके। जालन्धर की एनजीओ दस्तक वेलफेयर काऊँसल गत 16 वर्षों से जालन्धर एवं पंजाब में चिडिय़ा बचाओ अभियान एवं उसके संरक्षण के लिए भरकस प्रयास कर रही है। इस एनजीओ के प्रधान प्रो. संदीप चाहल ने गतवर्ष पिछले कईं वर्षों के शौध के अधार पर विज्ञानिक- लाईन ट्रांजेक्शन मैथेड द्वारा बाईनोकुलरस एवं डीएसएलआर कमरे की सहायता से एनजीओ दस्तक वेल्फेयर काऊँसल वालंटियरस के माध्यम से जालन्धर जिले में सर्वेक्षण कर सपैरो मैप ऑफ जालन्धर बनाया था जिसमें किाले में गोरईया के जालन्धर में विभिन्न स्थानों में पाई जाने की विस्तृत जानकारी दी गई थी। प्रो. संदीप चाहल ने बताया कि तितलियों की बचपन की अवस्था लारवा अथवा सुंडियां सभी पंछीओं की प्रमुख डाईट होती है क्योंकि यह प्रोटीन से भरपूर होती है जिससे कि सभी पँछी अपने छोटे अंडों में से निकले हुए बच्चों को देते हैं ताकि उनके शरीर का विकास जल्द हो सके। तितलियों का लारवा अथवा सुंडियां सभी पँछीयों की फूड चैन का प्रमुख अंग हैं जोकि ईको सिस्टम को बनाए रखने के लिए अति कारूरी है। प्रो. संदीप चाहल ने दो वर्ष के गहन अध्यन के उपरान्त वल्र्ड सपैरो डे को सर्मपित बट्रफलाई मैप ऑफ जालन्धर बनाया है जिसमें जालन्धर के पाँच सब डिवीकान व गयारह बलॉकों में पाए जाने वालीं इण्वायरमेंट इंडीकेटर की तितलियों की प्रजातियों की डिस्ट्रीब्यूशन के बारे में दशार्या गया है। प्रो. चाहल ने बताया कि इस बटरफलाई मैप ऑफ जालन्धर में यह बताया गया है कि जालन्धर किाले में मिल्कवीड अथवा अक के पौधे पर पलेन टाईगर तितली, सभी सिटरस पौधों पर लाईम तितली, अशोका के पेड़ पर ब्लू-जे तितली, पत्ता गोभी पर कैबेज तितली, अन्य मौसमी फूलों पर लैमन पैंसी तितली, पी-कॉक पैंसी तितली, वाईट एवं यैलो आरेंज टिप तितली तथा ग्रेट एगफलाई तितली की प्रजातियां देखने को मिली हैं। प्रो. चाहल ने कहा कि विश्व में तकरीबन तितलियों की 2400 प्रजातियां हैं जिनमें अकेले भारत में तकरीबन  1500 प्रजातियां पाई जाती हैं। विभिन्न प्रजातियों की तितलियों का जीवन काल भी अलग-अलग होता है। पंजाब में  तितलियों की 142 प्रजातिआं तथा उनकी 14 फैमीलीज़ पाई जाती हैं जोकि यहां पर मौजूद 12 नैचुरल वैटलैंडस तथा 10 मैन मेड वैटलैंडस में साधरणत: देखी जा सकती हैं। भारत में ही करीब सौ तितलियों की प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर हैं पंजाब में पाई जाने वाली कैबेज तितली प्रजाति के संरक्षण में बहुत सहायक मानी जाती हैं। अध्ययन के अनुसार एक तितली का  अण्डे से व्यस्क होने  तक का  जीवन दो सप्ताह से लेकर कई महीनों तक हो सकता हैं। वास्तव में तितलियों का लारवा प्राकृति के अनेक जीवों विशेषकर पंछियों का भोजन बनने के कारण भोजन श्रृंखला का  अहम हिस्सा है। बहुत से पंछी अपने बच्चों को तितलियों के  लारवा को ही  भोजन  के रूप में  देते हैं क्योंकि इसमें प्रोटीन के तत्व बहुतात में होते हैं जिससे शरीर का विकास जल्दी होता हैं। लारवा के  भोजन श्रृंखला का हिस्सा होने के कारण मात्र पांच फीसदी तितलियां ही प्रकृति में बच पाती हैं। प्रो. संदीप चाहल ने कहा कि मानव जीवन के लिए बेहद जरूरी पौधों, और फसलों में पोलिनेशन की प्रकिया व इनकी उपज को बढ़ाने  एवं सुचारू बनाने के लिए मधुमक्खियों के बाद तितलियां ही सर्वप्रिय हैं। कृषि क्षेत्र में तितिलयों के माध्यम से होने वाले सेचन, परागण यानि की पालिनेशन की कीमत प्रति वर्ष दौ सौ बिलियन डालर की है यानि तितलियां प्रतिवर्ष खेती में मनुष्य को 200 बिलियन डालर का फायदा पहुंचाती हैं। लोगों को शहरीकरन के दौर में अपने घरों में सिट्रस प्रजाति के पौधों - किन्नू, सन्तरे व निम्बू तथा उनके बोनसाई प्रजातियों को गमलों में लगाने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए जोकि तितलीयों की प्रजाति - मोनारक तथा लैमन बटरफलाई के प्रजनन तथा इन्हें बचाने के लिए बहुत सहायक हैं। पंजाब सिट्रस प्रजाति के फल - किन्नू का सबसे बड़ा उतपादक है तथा किन्नू, निम्बू व सन्तरे तथा इनकी बोनसाई प्रजातियों के पत्तों पर मोनारक तथा लैमन बटरफलाई अपने अण्डे देती हैं तथा पोलीनेशन की प्रक्रिया द्वारा किन्नू फल के बढ़ीया उतपादन करने में मदद करती हैं। लेमन तितलीयां सिट्रस प्रजाति के फलों खासकर किन्नू, संतरे व निम्बू के उतपादन में भी किसानों को हर वर्ष 10 मिलियन डालर फायदा पहुंँचाती है। प्रो. संदीप चाहल ने बताया कि पंजाब में बहुरंगी लैमन बटरफलाई की तस्करी तितलियों के तस्कर बाल श्रम के अन्तर्गत बच्चों को 150 रुपए दिहाड़ी के हिसाब से दे कर गैर कानूनी ढंग से इन्हें पकड़वाते हैं तथा इन मरी हुई तितलीयों को हांगकांग, इंडोनेशिया, फिलिपिनस, चीन, ताईवान, जापान, इंगलैंड, कनाडा व अमरीका में उँचे दामों में 2000 से 5000 रुपए तक बेचते हैं। दु:ख की बात है कि तस्करी के कारण तितलियाों के वजूद पर  संकट मंडरा रहा है। भारत में नार्थ ईस्ट स्टेटस- मिजोरम, मेंघालय, त्रिपुरा, मणीपुर, नागालैंड, सिक्किम, अरूणाचल प्रदेश, आसाम, पंजाब, हिमाचल व जम्मू कश्मीर में तितलियों को पकड़ कर विभिन्न राज्यों के साथ-साथ विदेश में तस्करी करके भारी दामों पर इन्हें बेचा जाता है। पूरे विश्व में हर वर्ष तकरीबन 20 मिलियन डालर का तितलियों का अवैध कारोबार बेधडक़ चल रहा है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कुछ तितलियों की प्रजातियों का गहनों के बराबर का मूल्य है तथा वह काफी मंहगे दामों पर बेची जाती हैं। पकड़ कर मारी गई  तितलियों  को फोटो  फ्रेम में बन्द कर  दीवारों पर सजाने, कानों में गहनों की तरह  पहनने और सजावटी सामान के तौर पर इस्तेमाल की जाती हैं। वाइल्ड लाइफ एक्ट 1972 के अन्तर्गत संरक्षित होने के कारण तितलियों को पकडऩा, मारना व इसकी तस्करी करना कानूनन जुर्म है। परन्तु दुख की बात है कि देश में इस कानून को सख्ती से लागू नहीं किया जा सका है जिसके कारण इनकी तसकरी बेधडक़ जारी है। प्रो. संदीप चाहल ने बताया कि पिछले दस वर्षों में एनजीओ दस्तक वेल्फेयर काऊँसल के माध्यम से शहर के शिक्षण संस्थानों में तथा विभिन्न इलाकों में सैमीनार का वह से नो टू डैकोरेटिव बटरफलाई फ्रेमस का अभियान चला रहें हैं जिससे वह जनमानस को पकड़ कर मारी गई तितलियों के महँगे फोटोफ्रेमस लोगों को ना खरीदने के लिए प्रेरित कर रहें हैं तथा उन्हें कैमरे के साथ उनकी फोटो खींचने के लिए उत्साहित कर रहें हैं ताकि तितलियों को बचाया जा सके।

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