(Date : 03/May/2424)

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सीमाओं के पार उठना, धारणाओं को चुनौती देना






राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय ने विदेश मंत्रालय, भारत के साथ मिलकर एशियाई-अफ्रीकी कानून और संधि अभ्यास पर सम्मेलन की मेज़बानी की

जालंधर (ब्यूरो) :- भारत के विदेश मंत्रालय के सहयोग राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय ने 28 से 29 फरवरी 2024 को "एशियाई अफ्रीकी कानून और संधि अभ्यास" पर दो दिवसीय सम्मेलन की मेज़बानी की, जिसका आयोजन आरआरयू अंतर्राष्ट्रीय विधि केंद्र (RCIL) द्वारा किया गया था। सम्मेलन में भारत की माननीय विदेश एवं संस्कृति राज्य मंत्री मीनाक्षी लेखी की गरिमामय उपस्थिति देखी गई; प्रोफेसर बिमल एन पटेल, राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय के कुलपति और भारत से अंतर्राष्ट्रीय विधि आयोग के सदस्य; एशियाई अफ़्रीकी कानूनी सलाहकार संगठन (AALCO) के महासचिव, महामहिम डॉ. कमलिन्ने पिनिटपुवाडोल; और सत्र के दौरान संयुक्त राष्ट्र में सिंगापुर के स्थायी मिशन के कानूनी सलाहकार नथानिएल खंग भी सम्मिलित थे। इसके साथ, 12 एशियाई-अफ्रीकी राष्ट्रीयताओं के प्रतिनिधियों ने संधि के प्रारूपण, व्याख्या और कार्यान्वयन के तकनीकी पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए चर्चा में भाग लिया। सभा को संबोधित करते हुए श्रीमती मीनाक्षी लेखी ने आयोजन की महत्वता की बात की, जिससे हितधारकों को विदेश नीति निर्णयों के व्यावहारिक आयामों और निहितार्थों को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण मंच प्रदान किया जा रहा है। उन्होंने संधि विधि और विदेश नीति के बीच अंतर्संबंध पर प्रकाश डाला और यह समझने के महत्व पर बल दिया कि राज्य किस प्रकार संधि प्रथाओं से जुड़कर अपने दायित्वों को पूरा करते हैं।

राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय के कुलपति और अंतर्राष्ट्रीय विधि आयोग ((ILC) में भारत के प्रतिनिधि प्रोफेसर पटेल ने सार्वजनिक अंतर्राष्ट्रीय विधि के प्रमुख स्रोत के रूप में संधियों के महत्व को रेखांकित किया। राज्यों के बीच संपन्न समझौते और अंतर्राष्ट्रीय विधि द्वारा शासित होने के कारण संधियाँ राजनयिक संबंधों को आकार देने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। अपनी संबंधित सरकारों के समर्थन से AALCO के महासचिव, डॉ. कमालिन्ने पिनिटपुवाडोल (थाईलैंड) के साथ-साथ उप-महासचिवों, जून यामादा (जापान), झू योंग (चीन), और डॉ. अली हसनखानी (ईरान) ने इस सम्मेलन के लिए समर्थन दिखाने के लिए कार्यक्रम में भाग लिया। प्रोफेसर पटेल ने घनिष्ठ संबंध के लिए सभी का आभार व्यक्त  किया। साथ ही उन्होंने कहा कि इस सम्मेलन का उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र महासचिव की रिपोर्ट में उजागर किए गए अंतर को पाटना है, जिसमें संधि पंजीकरण में पर्याप्त भौगोलिक असमानता का उल्लेख किया गया है। एशिया-प्रशांत और अफ़्रीकी समूह की तुलना में पश्चिमी यूरोपीय और अन्य समूह की हिस्सेदारी अनुपातहीन है, जो इस आयोजन को और भी महत्वपूर्ण बनाती है। अपने समापन भाषण में उन्होंने एशियाई अफ्रीकी देशों में अंतर्राष्ट्रीय विधि के प्रसार और राज्य प्रथाओं के विकास के महत्व को उजागर करते हुए  महत्वपूर्णता को रेखांकित किया। एशियाई अफ्रीकी कानून और संधि अभ्यास से जुड़ी चुनौतियों और अवसरों पर गहन चर्चा के लिए प्रदान की गई प्रस्तुति की एक श्रृंखला के बाद सम्मेलन सम्पन्न हुआ। इसका उद्देश्य संधि निर्माण में शामिल जटिलताओं की गहरी समझ को बढ़ावा देना और अंतर्राष्ट्रीय विधि  के लिए अधिक समावेशी दृष्टिकोण और एशियाई और अफ्रीकी देशों में बेहतर क्षेत्रीय सहयोग की आवश्यकता को बढ़ावा देना था।

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