सामाजिक दर्पण द्वारा ऑनलाइन काव्य गोष्ठी का आयोजन
अमृतसर (प्रतीक) - शकुंतला तोमर के सानिध्य में सामाजिक दर्पण द्वारा ऑनलाइन काव्य गोष्ठी 'मनभावनी शाम' का आयोजन किया गया। जिसमें अमृतसर (पंजाब) की कवयित्रियों ने सहभागिता ली। यह काव्य गोष्ठी आ .नीलम प्रभा देवगन जी की अध्यक्षता में सफलतापूर्वक संपन्न हुई। इसका सीधा प्रसारण सामाजिक दर्पण - सोशल मिरर के फेसबुक पेज पर भी किया गया , जहाँ पर दर्शकों ने सभी कवियित्रियों की कमेंट सेक्शन में जोरदार तारीफ भी की। कार्यक्रम की अध्यक्ष नीलम प्रभा ने कार्यक्रम की शुरुआत अपनी प्रेम आधारित खूबसूरत कविता "इस दिल के कब्रिस्तान में हाँ प्यारे बस प्यार तू कर ले" से की। जहाँ नीरू मेहता ने अपनी प्रेरणादायक कविता "उठो, जागो, आगे बढ़ो... विवेकानंद के सपनों का भारत बनना अब भी बाकी है" से सबके अंदर ऊर्जा का संचार कर दिया। अपनी दूसरी कविता "व्योम.. व्योम के कपोल पर सिंदूरी लालिमा है छाई लगा जैसे उषा शर्मायी" के लिए भी उन्होंने प्रशंसा प्राप्त की।
डॉ शैली जग्गी ने अपने अलग अंदाज में अपनी कविताओं "घृणा से प्रश्न", "पहली इबादत दूसरी मोहब्बत तीसरा कोई काम ना" में प्रेम की बात की। उन्होंने पंजाबी लोकगीत की बनागी पर हिंदी में टप्पे पेश करके सबको सम्मोहित कर दिया।
डॉ गौरी चावला ने अपनी कविताओं "रहगुज़र- सफ़र-ए-हयात में न मंज़िल न ठिकाना मिला, बे-सम्त सी राहें जहाँ रहगुज़र न सुहाना मिला" और "माँ- छोड़ जाए जब माँ फ़िर कहाँ वो मिल पाती है" से सबको मंत्रमुग्ध कर दिया। पिता की निस्वार्थता को व्यक्त करते हुए संगीता शर्मा ने "पिता , निस्वार्थ भाव से चलता ही जा रहा हूँ, क्योंकि मैं पिता हूँ" का वाचन किया और अपनी दूसरी कविता "बसंत_ बसंत ऋतु आई अपने संग ढेरों खुशियां लाई।" को बोल कर उन्होंने पूरे माहौल को ही बसन्ती कर दिया। आजकल के युवाओं में बढ़ते अकेलेपन को व्यक्त करते हुए धीरिका शर्मा जी ने "क्यों मैं नीरस हो गई हूँ" कविता का वाचन किया एवं युवाओं की व्यथा को कविता के रूप में पेश किया। अपनी दूसरी कविता "तेरी एक झलक के लिए मेरा बेताब हो जाना" में उन्होंने बखूबी पहले प्रेम के भावों को व्यक्त किया।
कार्यक्रम के अंत में शकुंतला तोमर द्वारा सभी प्रतिभागिओं का धन्यवाद ज्ञापित किया गया आपने कार्यक्रम की सफलता पर सबको बधाई दी।