(Date : 27/April/2424)

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हर नई सीख हमें खुद को निखारने का अवसर देता है:- प्रो. ऐ.के. भारद्वाज






"जिंदगी के इस सफर में कहीं न कहीं, किसी समय हम दोबारा मिलते रहेंगे"। 37 वर्षों से अधिक के स्वर्णिम काल के बाद सेवानिवृत हुए वाईस प्रिंसिपल एवम केमिस्ट्री विभाग के मुखी प्रो. ऐ. के. भारद्वाज।

जालंधर:-डीएवी कॉलेज, जालंधर के उप प्रधानाचार्य डा. ए.के भारद्वाज के तीन दशकों से अधिक के स्वर्णिम कार्यकाल से सेवा निवृत्त होने के उनके कॉलेज एवम विभाग को दिए अतुलनीय एवम अदभुद योगदान को याद करते हुए केमिस्ट्री विभाग द्वारा उनके सम्मान में एक विदाई समारोह का आयोजन किया गया। और इसी समारोह में प्रो. ऐ. के. भारद्वाज ने विभाग के ही प्रो. चन्दर सिक्का को अपने स्थान पर विभाग का अध्यक्ष नियुक्त किया। प्रधानाचार्य डा. एस.के अरोड़ा, अविस्मरणीय योगदान के लिए सम्मानित किया गया। प्रधानाचार्य डा. एस.के अरोड़ा ने इस अवसर पर डा. ए. के भारद्वाज को 'विद्वानता की परिकाष्ठा' से संबोधित किया तथा कहा कि "वह अतुल्य ज्ञान के भंडार हैं और उससे ज्यादा अपने आदर्शों के पक्के हैं। हमें उनके अनुभव तथा अनूठेपन की कमी ज़रूर खलेगी। उनका स्वर्णिम योगदान को डीएवी परिवार के इतिहास में सदैव स्मरण रखा जाएगा और मैं उन्हें आश्वस्त करता हूँ कि जब कभी वह यहां आएंगे, हम हर बार खुले दिल से उनका स्वागत करेंगे।" सेवामुक्त होने पर डा. ए.के भारद्वाज ने कहा, ज़िन्दगी में कुछ भी स्थायी नहीं है और जो आया है उसे एक न एक दिन जाना ही होता है। यह प्रकृति का नियम मैनें अपने जीवन में कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा ना और ही कभी किसी फैसले पर खेद प्रकट किया क्योंकि संम्पूर्णता तथा सफलता के आध्यात्मिक भाव ने सदैव मुझे अपने आवरण मेँ ओढ़े रखा। उन्होंने कहा कि पूर्णता प्राप्त करने के लिए तत्पर रहना ही पूजनीय तथा सच्चा मार्ग है और इस मार्ग पर चलने वाली शख्सियत ही अपने अंदर उत्तम गुणों को अवतरित कर पाने में सक्षम है।

अपने कार्यकाल के बारे में बताते हुए वे बोले, मैं यहाँ बतौर अध्यापक आया था। मैंने बतौर अध्यापक अपना कर्म किया और पूर्व निर्धारित समय पर में बतौर अध्यापक में अपनी कर्म भूमि से जा रहा हूँ। मैं आज जिस मुकाम पर भी हूँ, वह ईश्वर और अपने परिवार की बदौलत हूँ। आपकी सबसे बड़ी संतुष्टता आपके विद्यार्थियों की संतुष्टता में व्याप्त होती है। इस दौरान उन्होंने विद्यार्थियों के संदर्भ में कहा,"मैं सदैव ही उन्हें प्ररित करने के लिए तत्पर रहा हूँ क्योंकि मैं मानता हूँ कि डाँट-डपट बच्चों की मानसिकता पर एक अनभूली स्मृति के रूप में चिन्हित हो जाती है, जिससे उनका कुछ कर दिखाने का जज़्बा कम हो जाता है।"जीवन संबंधित विचार रखते हुए उन्होनें कहा,"खुद को युवा बनाए रखने का एकमात्र विकल्प यही है कि हम हमेशा यह सोचते हुए सीखने को तैयार रहें कि हर नई सीख हमें खुद को निखारने का अवसर देती है।" उन्होंने ईश्वर का धन्यवाद करते हुए कहा, जितना मैं हक़दार था, मुझे ईश्वर ने उससे अधिक दिया और मैं पूरी तरह से संतुष्ट हूँ। मैं बहुत ही सरल व्यक्ति हूँ और मैंने जीवन को हमेशा साधे ढंग से जिया और जीवन ने मुझे हमेशा ही सर्वश्रेष्ठ ही दिया।

इसके साथ ही उन्होंने प्रकृति का भी धन्यवाद करते हुए कहा कि उन्होंने प्रकृति से भी बहुत कुछ सीखा है। वहीं, उन्होंने ये भी बताया कि अपनी ज़िंदगी में उन्होंने जो इतना बड़ा मुकाम हासिल किया है, उसके बारे में उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था। इस दौरान उन्होंने कॉलेज के विद्यार्थियों को भी अपनी शुभकामनाएं देते हुए आगे कामयाब होने के लिए प्रेरित किया। इस मौके पर प्रो. चंदर सिक्का को केमिस्ट्री विभाग का नया मुखी बनाया गया। प्रो. चन्दर सिक्का ने प्रो. ए.के भारद्वाज के सेवामुक्त होने पर कहा कि उनके बड़े भाई जैसे हैं और प्रो.ए.के भारद्वाज से उनका रिश्ता काफी पुराना है। उन्होंने कहा कि वह बहुत ही परिश्रमी और मजबूत इंसान हैं तथा उन्होंने ज़िन्दगी में आने वाले हर परिवर्तन को चुनौती के रूप में लिया। कॉलेज और केमिस्ट्री स्टाफ़ द्वारा डा. भारद्वाज को आदरपूर्वक विदा किया गया।

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