(Date : 01/May/2424)

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डीऐवी कॉलेज में महिलाओं के खिलाफ हिंसा मिटाओ अंतराष्ट्रीय दिवस पर हुई चर्चा






महिलाओं से हिंसा मानव अधिकारों का सबसे व्यापक उल्लंघन है और स्थायी शांति और विकास के लिए सबसे बड़ा खतरा: प्री डा. एस के अरोड़ा

 
जालंधर:-25 नवंबर को ‘महिलाओं के खिलाफ हिंसा मिटाओ’ का अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है। इसी समाजिक समस्या को ध्यान में रखते हुए डीऐवी कॉलेज जालंधर में महिलाओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा एवं इसके निदान पर चर्चा की गई। इस तारीख को संयुक्‍त राष्ट्र महासभा ने सन्‌ 1999 में मान्यता दी थी। वह इसलिए ताकि लोगों में यह जागरूकता पैदा की जा सके कि महिलाओं को उनके अधिकार नहीं दिए जा रहे हैं। यह चर्चा इतिहास, संस्कृत  एवं पत्रकारिता एवं जन्सचार विभाग द्वारा करवाई गई। जिसमे इतिहास विभाग की अध्यक्षा डा. किरणजीत कौर रंधावा,  संस्कृत विभाग की अध्यक्षा डा. विजय कुमारी गुप्ता, डॉक्टर जीवन आशा और  एवं पत्रकारिता एवं जन्सचार विभाग की अध्यक्षा प्रो. मिनाक्षी मोहन ने महिलाओं के प्रति बढ़ रही हिंसा पर अपने विचार प्रस्तुत किए। प्रिंसिपल डा. एस. के. अरोड़ा ने इस मौक़े पर कहा कि  महिलाओं से हिंसा मानव अधिकारों का सबसे व्यापक उल्लंघन है और स्थायी शांति और विकास के लिए सबसे बड़ा खतरा है। महिलाओं के प्रति होती हिंसा में लगातार इज़ाफा हो रहा है और अब तो ये चिंताजनक विषय बन चुका है। महिला हिंसा से निपटना समाज सेवकों के लिए सिरदर्द के साथ-साथ उनके लिए एक बड़ी जिम्मेवारी भी है। हालाँकि महिलाओं को जरुरत है की वे खुद दूसरों पर निर्भर न रह कर अपनी जिम्मेदारी खुद ले तथा अपने अधिकारों, सुविधाओं के प्रति जागरूक हो।
 
कॉलेज की डेप्युटी रेजिस्ट्रार एवं इतिहास विभाग की अध्यक्षा डा. किरणजीत कौर रंधावा ने कहा कि महिलाओं के प्रति बढ़ती हिंसा को रोकने के लिए सरकार को कठोर क़ानून बनाने चाहिए ताकि महिलाओं के विरुद्ध होने वाली हिंसा को रोका जा सके। हालांकि भारत में महिला हिंसा से जुड़े केसों में होती वृद्धि को कम करने के लिए 2015 में भारत सरकार जुवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रेन) बिल लाई। इसका उद्देश्य साल 2000 के इंडियन जुवेनाइल लॉ को बदलने का था क्योंकि इसी कानून के चलते निर्भया केस के जुवेनाइल आरोपी को सख्त सजा नहीं हो पाई। इस कानून के आने के बाद 16 से 18 साल के किशोर, जो गंभीर अपराधों में संलिप्त है, के लिए भारतीय कानून के अंतर्गत सख्त सज़ा का प्रावधान है। इसके इलावा 3 तलाक के मुद्दे पर भी कठोर कानून बनना चाहिए ताकि महिलाओं का शोषण रोका जा सके। पत्रकारिता एवं जन्सचार विभाग की अध्यक्षा प्रो. मिनाक्षी मोहन ने कहा कि महिलाओं के विरुद्ध हिंसा समुदायों, समाज और देश के लिए बहुत बड़ी समस्या है। जिसका परिणाम पूरे समाज को भुगतना पड़ सकता है। हिंसा का प्रभाव जीवन भर के लिए महिलाओं के मस्तिष्क पर पड़ सकता है। जिससे वो जीवन भर नही उबर सकती। जिसके परिणामस्वरूप वो कभी भी खुद को समाज से नही जोड़ पाती। महिलाओं और लड़कियों के विरूद्ध हिंसा लिंग असमानता और स्त्री-पुरुष के भेदभाव के कारण होती है। महिलाएं तभी अपने अधिकारों  को जी सकती हैं अगर मानवाधिकार संगठन उन अधिकारों की मजबूती से रक्षा करें। हमें पुरषों और स्त्रियों के बीच संस्थागत और कानूनी सुधार, शिक्षा, जागरूकता जैसी समानता की संस्कृति को बढ़ावा देना चाहिए। इस समस्या के समाधान के लिए सरकार और कानून अपितु आम नागरिक को भी आवाज़ उठानी चाहिए। किसी भी समस्या के निदान के लिए समाज के नागरिकों की प्रतिभागिता अति आवश्यक है।
 
संस्कृत विभाग की अध्यक्षा डा. विजय कुमारी गुप्ता ने कहा कि भारत में महिलाओं की स्थिति संस्कृति, रीती-रिवाज़, लोगों की परम्पराओं के कारण हर जगह भिन्न है। उत्तर-पूर्वी राज्यों तथा दक्षिण भारत के राज्यों में महिलाओं की अवस्था बाकि राज्यों के काफी अच्छी है। भ्रूण हत्या जैसी कुरीतियों के कारण भारत में 2011 की जनगणना के अनुसार 1000 लड़कों पर केवल 940 लड़कियां ही थी। इतनी कम लड़कियों की संख्या के पीछे भ्रूण-हत्या, बाल-अवस्था में लड़कियों की अनदेखी तथा जन्म से पहले लिंग-परीक्षण जैसे कारण हैं। यह एक भयंकर समाजिक समस्या है जिससे महिलाओं के प्रति दुराचार भी बढ़ रहा है। संस्कृत विभाग की ही डा. जीवन आशा ने कहा कि राष्ट्रीय अपराधिक रिकार्ड्स ब्यूरो के अनुसार अधिकांश महिलाएं अपने ससुराल में बिलकुल भी सुरक्षित नहीं हैं। महिलाओं के प्रति होती क्रूरता में एसिड फेंकना, बलात्कार, हॉनर किलिंग, अपरहण, दहेज़ के लिए क़त्ल करना, पति अथवा ससुराल वालों द्वारा पीटा जाना आदि शामिल है। इस समस्या के समाधान के लिए सबको आगे आना चाहिए।
 
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