(Date : 25/April/2424)

(Date : 25/April/2424)

एपीजे कॉलेज ऑफ फाइन आर्टस जालंधर के विद्यार्थियों ने निःशुल्क सौंदर्य और त्वचा देखभाल समाधान सीखे | सीटी इंस्टीट्यूट ऑफ लॉ ने विद्यार्थी संघर्ष मोर्चा के सहयोग से एक घोषणा पत्र और निबंध लेखन प्रतियोगिता | संस्कृति केएमवी स्कूल ने जेईई (मुख्य) 2024 में अभूतपूर्व सफलता हासिल की | डीएवी कॉलेज जालंधर के ईको क्लब ने पर्यावरण शिक्षा कार्यक्रम ईएमसीओ का आयोजन किया | एपीजे कॉलेज ऑफ फाइन आर्ट्स जालंधर में विदाई समारोह शुभशीष 2024 का आयोजन किया गया |

सामाजिक गतिविधयां

ऊर्जा सुरक्षा और न्यायोचित बदलाव – भारतीय कोयला क्षेत्र का दृष्टिकोण

जालंधर (ब्यूरो) :- कोयला क्षेत्र लंबे समय से भारत के आर्थिक विकास और ऊर्जा सुरक्षा का आधार रहा है। जैसे-जैसे देश की आबादी बढ़ती जा रही है वैसे-वैसे बिजली तक पहुंच अधिक व्यापक होती जा रही है, इसलिए कोयला क्षेत्र ऊर्जा का एक महत्वपूर्ण स्रोत बना हुआ है। नवीकरणीय ऊर्जा  के लिए संगठित प्रयास के बावजूद, ऐसा अनुमान है कि कोयला एक प्रमुख ऊर्जा स्रोत बना रहेगा। अनुमानों से संकेत मिलता है कि घरेलू कोयला उत्पादन 2030 तक 1.5 बिलियन टन तक बढ़ सकता है, जो 2040 के आसपास चरम पर पहुंच सकता है। जलवायु परिवर्तन के समाधान की तत्काल आवश्यकता को स्वीकार करते हुए, भारत एक ऐसे विकास मॉडल के लिए प्रतिबद्ध है जो कम कार्बन और पर्यावरण के अनुकूल विकास के अपने "पंचामृत" लक्ष्यों के अनुरूप हो। जलवायु संबंधी विचारों और आर्थिक वास्तविकताओं के बीच संतुलन बनाते हुए, देश ने एक मध्यम मार्ग अपनाया है, जिसमें सामान्य लेकिन विभेदित जिम्मेदारियां और सम्बंधित क्षमता (सीबीडीआर-आरसी) के सिद्धांतों के आधार पर संतुलित विकास मॉडल प्राप्त करने के लिए "जलवायु न्याय" पर जोर दिया गया है। इस दृष्टिकोण में परिवर्तन की जटिलताओं से निपटने के लिए कोयला गैसीकरण जैसे कोयले के वैकल्पिक उपयोगों की खोज करना शामिल है। देश की बढ़ती ऊर्जा जरूरतों के कारण नवीकरणीय ऊर्जा के विकास का भारत में कोयला क्षेत्र पर कम प्रभाव पड़ने का पूर्वानुमान है। भारत में कोयले की कुल खपत अभी चरम पर नहीं पहुंची है और उम्मीद है कि कोयले की मांग बढ़ती रहेगी और 2040 के आसपास यह चरम पर पहुंच सकती है। यद्यपि निकट भविष्य में, कुछ खानें, भंडार की समाप्ति के कारण बंद हो सकती हैं लेकिन साथ ही बढ़ती ऊर्जा मांग को पूरा करने के लिए कई नई कोयला खानों का प्रचालन किया जा रहा है। ये खानें न केवल राष्ट्र की वहनीयता और ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित कर रही हैं, बल्कि बेहतर आजीविका सुनिश्चित करने और कोयला क्षेत्रों में अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए भी बंद होने वाली खानों से नई खानों में श्रमिकों की पुन: तैनाती और नए रोजगार के लिए पर्याप्त अवसर भी प्रदान कर रही हैं। इस प्रकार, लघु और मध्यम अवधि दोनों में अर्थात् कम से कम एक व्यापार चक्र के लिए तत्काल कोई आजीविका और सामाजिक मुद्दे नहीं होंगे। इस प्रकार, कोयला खानों से संबंधित सामाजिक, भौतिक और पर्यावरणीय पहलुओं का निपटान विभिन्न मौजूदा वैधानिक प्रावधानों के अनुसार किया जाता है। कोयला खानों को बंद किए जाने के संबंध में वैज्ञानिक और उद्देश्यपरक तरीके से प्रबंधन करने की आवश्यकता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रभावित लोगों की आजीविका सुरक्षित रहे। इस संबंध में, पेरिस समझौता, 2015 में "न्यायोचित बदलाव" का विचार लाया गया था। यह कोयला खानों के बंद होने से प्रभावित सभी हितधारकों के लिए एक न्यायसंगत, निष्पक्ष और उचित परिवर्तन के बारे में बताता है, जो हो सकता है और जिस पर विचार करने की आवश्यकता है। न्यायोचित बदलावके मार्ग का उद्देश्य कोयले पर निर्भर क्षेत्रों में अवसंरचना विकास, पारिस्थितिक पुनरूद्धार, क्षमता-निर्माण और आजीविका के नए अवसरों में सहायता करना है। जैसा कि विश्व जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने और स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों की ओर पारगमन के लिए एकजुट है, कोयला क्षेत्र भी इस परिवर्तन में आगे खड़ा है। तथापि, ऐसा बदलाव उन कार्यनीतियों के साथ होना चाहिए जो ऊर्जा सुरक्षा, सामाजिक निष्पक्षता, आर्थिक स्थिरता और प्रभावित समुदायों के कल्याण को प्राथमिकता दें। विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मॉडल से प्रेरणा लेते हुए, कोयला क्षेत्र में श्रेष्ठ कार्यपद्धतियों, यद्यपि यह काफी दुर्लभ और अनियमित हैं, और न्यायोचित बदलावके सिद्धांतों को लागू किया जाना सामने आ रहा है जो ऐसे ही बदलावोंसे गुजरने वाले देशों को मूल्यवान सीख देता है। भारत की जी 20 अध्यक्षता के ईटीडब्ल्यूजी के प्राथमिकता क्षेत्र "स्वच्छ ऊर्जा और न्यायसंगत, किफायती तथा समावेशी ऊर्जा परिवर्तन मार्ग तक सार्वभौमिक पहुंच" के अंतर्गत सीएमपीडीआई ने कोयला मंत्रालय के मार्गदर्शन में  "कोयला क्षेत्र में न्यायोचित बदलावके लिए श्रेष्ठ वैश्विक कार्यपद्धतियों" पर ध्यान केंद्रित करते हुए एक अध्ययन किया। इस अध्ययन के निष्कर्ष इन प्रमुख बातों को उजागर करते हैं: जिन कोयला क्षेत्रों में कोयला समाप्त हो गया है उनके पुनरूद्धार के लिए पर्याप्त तकनीकी और वित्तीय सहायता की आवश्यकता; लंबी अवधि में कोयला खानों के बंद होने से जुड़ी सामाजिक और श्रम चुनौतियों का प्रभावी ढंग से प्रबंधन करना जिसमें बहु-हितधारक नीति को आकार देकर सफलता मिल सकती है; ह्यूमन कैपिटल में निवेश  विशेष रूप से शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा में महत्व रखता है; स्थानीय संस्थागत क्षमता को बढ़ावा देना एक अनुकूल और विविध कारोबारी माहौल और समन्वित आर्थिक विकास की कार्यनीतियों के लिए महत्वपूर्ण है तथा कार्यनीतिक संसाधन आवंटन खान बंद होने के प्रभाव को कम करने के लिए महत्वपूर्ण है। प्रभावी न्यायोचित बदलाव मजबूत सामाजिक साझेदारी बनाने और हितधारकों से जुड़ने, पूर्व योजना बनाने और विविधीकरण, पुनर्प्रशिक्षण तथा कौशल विकास, सामाजिक सुरक्षा, अवसंरचना और सामुदायिक विकास, छोटे और मध्यम उद्यमों (एसएमई) को सहायता, ग्रीन फाइनेंस और निवेश तथा अंतरराष्ट्रीय सहयोग पर निर्भर करता है। जो देश कोयले पर निर्भर हैं, उन्हें योजना बनाने और भविष्य में आवश्यकता पड़ने पर कोयला क्षेत्र में एक उत्तरोत्तर न्यायोचित बदलाव योजना के लिए तैयार होने की आवश्यकता होगी। कोयला खानों को तकनीकी और पर्यावरणीय आधार पर बंद किए जाने के संबंध में विभिन्न हितधारकों की भूमिकाएं और दायित्व तथा प्रभावित व्यक्तियों और समुदायों की सहायता संबंधी दायित्व न्यायोचित बदलाव के अनुभव के संदर्भ में देश-दर-देश  काफी भिन्न हो सकते  हैं। न्यायोचित बदलाव की योजना खान के बंद होने से काफी पहले शुरू हो जाती है, जिसमें बदलाव के लिए विजन तैयार करते हुए विभिन्न हितधारकों के बीच समावेशी जुड़ाव शामिल होता है। कोयले और स्थानीय अर्थव्यवस्था के बीच व्यापक संबंधों को समझना - जहां खान बंद होने के सामाजिक प्रभाव का विस्तार व्यापक रूप से विभिन्न श्रम बल और समुदायों तक होता है। कोयला क्षेत्रों में कोयले पर निर्भर समुदायों के निर्वाह के लिए कम कार्बन वाली आर्थिक गतिविधियों को अपनाने के लिए, जी 20 या विकसित देश आवश्यक वित्तीय और तकनीकी सहायता देकर कोयले पर निर्भर देशों में निष्पक्ष बदलाव प्रक्रिया में मदद कर सकते हैं। अंत में, न्यायोचित बदलाव के माध्यम से कोयला क्षेत्र का परिवर्तन एक ऐसा जटिल प्रयास है जो सावधानीपूर्वक योजना बनाने, सहयोग और सहानुभूति की मांग करता है। विश्व भर से श्रेष्ठ कार्यपद्धतियों को अपनाकर, कोयले पर निर्भर देश एक अधिक सतत भविष्य का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं जो न केवल जलवायु परिवर्तन का समाधान करता है बल्कि कोयला श्रमिकों और समुदायों की गरिमा और आजीविका को भी बनाए रखता है। जैसे-जैसे दुनिया विकसित होती है, ये कार्यपद्धतियां संतुलित और न्यायसंगत परिवर्तन की दिशा में पथ प्रदर्शक के रूप में कार्य कर सकती हैं।

प्रोफेसर एम.एस. स्वामीनाथन अब हमारे बीच नही रहे

जालंधर (ब्यूरो) :- हमारे देश ने एक ऐसे दूरदर्शी व्यक्ति को खोया है, जिन्होंने भारत के कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन किए। हमने एक ऐसे महान व्यक्ति को खोया है, जिनका भारत के लिए योगदान हमेशा स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा। प्रोफेसर एम.एस. स्वामीनाथन भारत से प्रेम करते थे और चाहते थे कि हमारा देश और विशेषकर हमारे किसान  समृद्धि के साथ जीवन यापन करें। वे अकादमिक रूप से प्रतिभाशाली थे और किसी भी करियर का विकल्प चुन सकते थे, लेकिन 1943 के बंगाल के अकाल से  वे इतने द्रवित हुए कि उन्होंने तय कर लिया कि अगर कोई एक चीज, जिसे वे करना चाहेंगे, तो वो है - कृषि क्षेत्र का कायाकल्प। बहुत छोटी उम्र में, वे डॉ. नॉर्मन बोरलॉग के संपर्क में आए और उनके काम को गहराई से समझा। 1950 के दशक में, अमेरिका ने उन्हें एक फैकल्टी के तौर पर जुड़ने का आग्रह किया, लेकिन उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया, क्योंकि वे भारत में रहकर देश के लिए काम करना चाहते थे। आज हम सभी को दशकों पहले की उन चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों के बारे में विचार करना चाहिए, जिनका प्रो. स्वामीनाथन ने डटकर सामना किया और हमारे देश को आत्मनिर्भरता और आत्मविश्वास के मार्ग पर आगे ले गए। आजादी के बाद पहले दो दशकों में, हम कई चुनौतियों का सामना कर रहे थे और उनमें से एक थी- खाद्यान्न की कमी। 1960 के दशक की शुरुआत में, भारत अकाल से जूझ रहा था। इसी दौरान, प्रोफेसर स्वामीनाथन की दृढ़ प्रतिबद्धता और दूरदर्शिता ने कृषि सेक्टर के एक नए युग की शुरुआत की।  कृषि और गेहूं प्रजनन जैसे विशिष्ट क्षेत्रों में उनके अग्रणी कार्यों से गेहूं उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। ऐसे प्रयासों का ही परिणाम था कि भारत खाद्यान्न की कमी वाले देश से खाद्यान्न में आत्मनिर्भर वाले राष्ट्र के रूप में परिवर्तित हो गया। इस शानदार उपलब्धि की वजह से से उन्हें भारतीय हरित क्रांति के जनक की उपाधि मिली, जो बिल्कुल सही भी है। हरित क्रांति में भारत की की भावना झलकती है, यानी कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं होता। अगर हमारे सामने करोड़ों चुनौतियां हैं, तो उन  चुनौतियों पर विजय प्राप्त करने के लिए इनोवेशन की लौ जलाने वाले करोड़ों प्रतिभाशाली लोग भी हैं। हरित क्रांति शुरू होने के पांच दशक बाद, भारतीय कृषि पहले से अधिक आधुनिक और प्रगतिशील हो गई है। लेकिन, प्रोफेसर स्वामीनाथन द्वारा रखी गई नींव को कभी भुलाया नहीं जा सकता। प्रोफेसर स्वामीनाथन ने आलू की फसलों को प्रभावित करने वाले कीटों से निपटने की दिशा में भी प्रभावी अनुसंधान किया था। उनके शोध ने आलू की फसलों को ठंड के मौसम का सामना करने में भी सक्षम बनाया। आज, दुनिया सुपर फूड के रूप में मिलेट्स या श्रीअन्न के बारे में बात कर रही है, लेकिन प्रोफेसर स्वामीनाथन ने 1990 के दशक से ही मिलेट्स के बारे में चर्चा को प्रोत्साहित किया था। प्रो. स्वामीनाथन के साथ मेरी व्यक्तिगत बातचीत का दायरा बहुत व्यापक था। इसकी शुरुआत 2001 में मेरे गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार संभालने के बाद हुई। उन दिनों, गुजरात आज की तरह अपने कृषि सामर्थ्य के लिए नहीं जाना जाता था। हर कुछ साल पर पड़ने वाले सूखे, तबाही लाने वाले चक्रवात  और भूकंप ने राज्य की विकास यात्रा को बुरी तरह प्रभावित किया था। उसी दौर में हमने सॉइल हेल्थ कार्ड की पहल की थी। हमारी कोशिश थी कि हमारे किसानों को मिट्टी को बेहतर ढंग से समझने और समस्या आने पर उसका समाधान करने में मदद मिले। इसी योजना के सिलसिले में मेरी मुलाकात प्रोफेसर स्वामीनाथन से हुई। उन्होंने इस योजना की सराहना की और इसके लिए अपने बहुमूल्य सुझाव भी साझा किये। उनका समर्थन उन लोगों को समझाने के लिए पर्याप्त था, जो इस योजना को लेकर संशय में थे। आखिरकार इस योजना ने गुजरात में कृषि क्षेत्र की सफलता का सूत्रपात कर दिया।  मेरे मुख्यमंत्री रहने के दौरान और उसके बाद जब मैंने प्रधानमंत्री का पद संभाला, तब भी हमारी बातचीत चलती रही। मैं उनसे 2016 में इंटरनेशनल एग्रो-बायोडाइवर्सिटी कांग्रेस में मिला और अगले वर्ष 2017 में, मैंने उनके द्वारा लिखित दो-भाग वाली पुस्तक श्रृंखला लॉन्च की। ‘कुरल’ ग्रंथ के मुताबिक किसान वो धुरी हैं, जिसके चारों तरफ पूरी दुनिया घूमती है। ये किसान ही हैं, जो सब का भरण-पोषण करते हैं। प्रो. स्वामीनाथन इस सिद्धांत को अच्छी तरह समझते थे। बहुत से लोग उन्हें कृषि वैज्ञानिक कहते हैं, यानी कृषि के एक वैज्ञानिक, लेकिन, मेरा हमेशा से ये मानना रहा है कि उनके व्यक्तित्व का विस्तार इससे कहीं ज्यादा था। वे एक सच्चे किसान वैज्ञानिक थे, यानी किसानों के वैज्ञानिक। उनके दिल में एक किसान बसता था। उनके कार्यों की सफलता उनकी अकादमिक उत्कृष्टता तक ही सीमित नहीं है; ये लैब के बाहर, खेतों और मैदानों में स्पष्ट रूप से दिखती है। उनके कार्य ने साइंटिफिक नॉलेज और उसके प्रैक्टिकल उपयोग के बीच के अंतर को कम कर दिया। उन्होंने ह्यूमन एडवांसमेंट और इकोलॉजिकल सस्टेनेबिलिटी के बीच संतुलन पर जोर देते हुए हमेशा सस्टेनेबल एग्रीकल्चर की वकालत की। यहां मैं विशेष तौर पर ये भी कहूंगा कि प्रो. स्वामीनाथन ने छोटे किसानों के जीवन को बेहतर बनाने और उन तक इनोवेशन का लाभ पहुंचाने पर बहुत जोर दिया। वे विशेष रूप से महिला किसानों के जीवन को बेहतर बनाने के प्रति समर्पित थे। प्रोफेसर एम.एस. स्वामीनाथन के व्यक्तित्व का एक और पहलू भी है, जो बेहद उल्लेखनीय है। वो इनोवेशन और मेंटोरशिप को बहुत बढ़ावा देते थे। जब उन्हें 1987 में पहला वर्ल्ड फूड प्राइज मिला, तो उन्होंने इसकी पुरस्कार राशि का उपयोग एक गैर-लाभकारी रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना में किया। आज भी, यह फाउंडेशन विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक कार्य कर रहा है। उन्होंने अनगिनत प्रतिभाओं को निखारा है और उनमें सीखने और इनोवेशन के प्रति जुनून पैदा किया है। तेजी से बदलती दुनिया में, उनका जीवन हमें ज्ञान, मार्गदर्शन और इनोवेशन की स्थायी शक्ति की याद दिलाता है। प्रोफेसर स्वामीनाथन एक संस्थान निर्माता भी थे। उन्हें कई ऐसे केन्द्रों की स्थापना का श्रेय जाता है, जहां आज वाइब्रेंट रिसर्च हो रही है। उन्होंने कुछ समय तक मनीला स्थित इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट में भी अहम जिम्मेदारी निभाई थी। दक्षिण एशिया में इस संस्थान का रीजनल सेंटर 2018 में वाराणसी में खोला गया था। मैं प्रो. स्वामीनाथन को श्रद्धांजलि देने के लिए फिर से ‘कुरल’ ग्रंथ को उद्धृत करूंगा। उसमें लिखा है, “यदि योजना बनाने वालों में दृढ़ता हो, तो वे वही परिणाम हासिल करेंगे, जो वे चाहते हैं।” प्रो. स्वामीनाथन एक ऐसे दिग्गज व्यक्ति थे, जिन्होंने अपने जीवन की शुरुआत में ही ये तय कर लिया था कि वो कृषि को मजबूत करेंगे और किसानों की सेवा करेंगे। उन्होंने इस संकल्प को बेहद ही रचनात्मक तरीके से और जुनून के साथ निभाया। जैसे-जैसे हम एग्रीकल्चरल इनोवेशन और सस्टेनेबिलिटी के रास्ते पर आगे बढ़ते रहेंगे, डॉ. स्वामीनाथन का योगदान हमें निरंतर प्रेरित व मार्गदर्शन प्रदान करता रहेगा। हमें उन सिद्धांतों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दोहराते रहना होगा, जो उन्हें बेहद प्रिय थे। इन सिद्धातों में किसानों के हितों की वकालत करना, साइंटिफिक इनोवेशन के लाभ को कृषि विस्तार की जड़ों तक पहुंचना और आने वाली पीढ़ियों के लिए विकास, स्थिरता एवं समृद्धि को बढ़ावा देना शामिल है। मैं एक बार फिर प्रोफेसर स्वामीनाथन को अपनी विनम्र श्रद्धांजलि देता हूं।

ਪਰਾਲੀ ਨੂੰ ਅੱਗ ਲਗਾਉਣ ਦੀਆਂ ਘਟਨਾਵਾਂ ਪ੍ਰਤੀ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸ਼ਨ ਸਖਤ

ਵਧੀਕ ਡਿਪਟੀ ਕਮਿਸ਼ਨਰ ਡਾ. ਨਿਧੀ ਕੁਮੁਦ ਬਾਂਬ੍ਹਾ ਨੇ ਬੁਲਾਈ ਸਮੂਹ ਕਲੱਸਟਰ ਅਫ਼ਸਰਾਂ ਦੀ ਮੀਟਿੰਗ

ਕਾਰਵਾਈ ਵਿੱਚ ਕਿਸੇ ਵੀ ਪੱਧਰ ਦੀ ਅਣਗਹਿਲੀ ਬਰਦਾਸ਼ਤ ਨਹੀਂ ਹੋਵੇਗੀ

ਕਿਹਾ! ਉਹ ਖੁਦ ਵੀ ਕਰਨਗੇ ਕਲੱਸਟਰ ਅਫ਼ਸਰਾਂ ਦੀਆਂ ਚੈਕਿੰਗਾਂ ਦੀ ਨਜ਼ਰਸਾਨੀ

ਮੋਗਾ (ਕਮਲ) :- ਪੰਜਾਬ ਸਰਕਾਰ ਦੀਆਂ ਸਖਤ ਹਦਾਇਤਾਂ ਦੀ ਪਾਲਣਾ ਕਰਦਿਆਂ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸ਼ਨ ਮੋਗਾ ਵੱਲੋਂ ਜ਼ਿਲ੍ਹੇ ਵਿੱਚ ਅੱਗ ਲੱਗਣ ਦੀਆਂ ਘਟਨਾਵਾਂ ਉੱਪਰ ਨਜ਼ਰ ਰੱਖਣ, ਕਿਸਾਨਾਂ ਨੂੰ ਇਸਦੀਆਂ ਹਾਨੀਆਂ ਬਾਰੇ ਜਾਗਰੂਕ ਕਰਨ ਅਤੇ ਅੱਗ ਲਗਾਉਣ ਵਾਲੇ ਕਿਸਾਨਾਂ ਉੱਪਰ ਕਾਰਵਾਈ ਕਰਨ ਲਈ ਲੋੜੀਂਦੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਕਲੱਸਟਰ ਅਤੇ ਨੋਡਲ ਅਫ਼ਸਰਾਂ ਦੀ ਨਿਯੁਕਤੀ ਕੀਤੀ ਗਈ ਹੈ। ਅੱਗ ਲੱਗਣ ਦੀਆਂ ਘਟਨਾਵਾਂ ਪ੍ਰਤੀ ਪੰਜਾਬ ਸਰਕਾਰ ਬਹੁਤ ਗੰਭੀਰ ਹੈ, ਕਲੱਸਟਰ ਅਫ਼ਸਰਾਂ ਜਾਂ ਹੋਰ ਕਿਸੇ ਵੀ ਵਿਭਾਗੀ ਪੱਧਰ ਉੱਪਰ ਜੇਕਰ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸ਼ਨ ਦੇ ਧਿਆਨ ਵਿੱਚ ਕਿਸੇ ਵੀ ਵਿਭਾਗ ਦੀ ਅਣਗਹਿਲੀ ਦੀ ਗੱਲ ਆਉਂਦੀ ਹੈ ਤਾਂ ਅਜਿਹੀ ਕੁਤਾਹੀ ਬਿਲਕੁਲ ਵੀ ਬਰਦਾਸ਼ਤ ਨਹੀਂ ਕੀਤੀ ਜਾਵੇਗੀ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਸ਼ਬਦਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਗਟਾਵਾ ਵਧੀਕ ਡਿਪਟੀ ਕਮਿਸ਼ਨਰ (ਜ) ਡਾ. ਨਿਧੀ ਕੁਮੁਦ ਬਾਂਬ੍ਹਾ ਵੱਲੋਂ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਮੋਗਾ ਦੇ ਸਮੂਹ ਕਲੱਸਟਰ ਅਫ਼ਸਰਾਂ ਦੀ ਬੁਲਾਈ ਮੀਟਿੰਗ ਦੌਰਾਨ ਕੀਤਾ।ਇਸ ਮੀਟਿੰਗ ਵਿੱਚ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਵਿਭਾਗ, ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ ਕੰਟਰੋਲ ਬੋਰਡ, ਮਾਲ ਵਿਭਾਗ, ਸਹਿਕਾਰੀ ਸਭਾਵਾਂ ਵਿਭਾਗ, ਪਸ਼ੂ ਪਾਲਣ ਵਿਭਾਗ, ਸਮੂਹ ਤਹਿਸੀਲਦਾਰ, ਬਾਗਬਾਨੀ ਵਿਭਾਗ ਆਦਿ ਵਿਭਾਗਾਂ ਦੇ ਨੁਮਾਇੰਦੇ ਹਾਜ਼ਰ ਸਨ। ਡਾ. ਨਿਧੀ ਕੁਮੁਦ ਬਾਂਬ੍ਹਾ ਵੱਲੋਂ ਸਮੂਹ ਕਲੱਸਟਰ ਅਫ਼ਸਰਾਂ ਨੂੰ ਸਖਤ ਹਦਾਇਤ ਕੀਤੀ ਕਿ ਉਹ ਸਰਕਾਰੀ ਹਦਾਇਤਾਂ ਅਨੁਸਾਰ ਫੀਲਡ ਵਿੱਚ ਲਗਾਤਾਰ ਚੈਕਿੰਗ ਕਰਦੇ ਰਹਿਣ ਅਤੇ ਪਰਾਲੀ ਨੂੰ ਅੱਗ ਲੱਗਣ ਦੀਆਂ ਘਟਨਾਵਾਂ ਉੱਪਰ ਬਾਜ ਅੱਖ ਰੱਖਣ।ਉਨ੍ਹਾਂ ਸਖਤੀ ਨਾਲ ਕਿਹਾ ਕਿ ਕਿਸੇ ਵੀ ਕਲੱਸਟਰ ਅਫ਼ਸਰ ਦੀ ਲਾਪਰਵਾਹੀ ਨੂੰ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸ਼ਨ ਅਣਗੌਲਿਆਂ ਨਹੀਂ ਕਰੇਗਾ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਉਹ ਖੁਦ ਕਲੱਸਟਰ ਅਫ਼ਸਰਾਂ ਉੱਪਰ ਫੀਲਡ ਜਾਂ ਦਫ਼ਤਰ ਵਿਖੇ ਨਜਰਸਾਨੀ ਕਰਨਗੇ। ਕਲੱਸਟਰ ਅਫ਼ਸਰਾਂ ਦੇ ਫੀਲਡ ਦੌਰਿਆਂ ਦੀਆਂ ਅਚਨਚੇਤ ਚੈਕਿੰਗਾਂ ਵੀ ਕੀਤੀਆਂ ਜਾਣਗੀਆਂ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਕਲੱਸਟਰ ਅਫ਼ਸਰਾਂ ਨੂੰ ਕਿਹਾ ਕਿ ਉਹ ਨੋਡਲ ਅਫ਼ਸਰਾਂ ਨਾਲ ਲਗਾਤਾਰ ਤਾਲਮੇਲ ਵਿੱਚ ਰਹਿਣ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਕਲੱਸਟਰ ਪੱਧਰ ਉੱਪਰ ਪਰਾਲੀ ਦੀ ਅੱਗ ਤੁਰੰਤ ਪ੍ਰਭਾਵ ਨਾਲ ਬੁਝਾਉਣ ਲਈ ਲੋੜੀਂਦੇ ਪਾਣੀ ਦੇ ਪ੍ਰਬੰਧ ਵੀ ਕੀਤੇ ਜਾਣੇ ਯਕੀਨੀ ਬਣਾਏ ਜਾਣ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਕਲੱਸਟਰ ਅਫ਼ਸਰਾਂ ਦੀ ਰੋਜ਼ਾਨਾ ਨਜਰਸਾਨੀ ਕੀਤੀ ਜਾਵੇਗੀ ਇਸਦੀ ਰੋਜ਼ਾਨਾ ਇੱਕ ਐਕਸਲ ਸੀਟ ਵੀ ਤਿਆਰ ਕੀਤੀ ਜਾਵੇਗੀ ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਟੀਮਾਂ ਵੱਲੋਂ ਸਬੰਧਤ ਸਥਾਨਾਂ ਉੱਪਰ ਕੀਤੇ ਦੌਰੇ ਆਦਿ ਹੋਰ ਵੇਰਵੇ ਦਰਜ ਹੋਣਗੇ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਵਿਭਾਗ ਦੇ ਨੁਮਾਇੰਦਿਆਂ ਨੂੰ ਹਦਾਇਤ ਕੀਤੀ ਕਿ ਪਿੰਡ ਪੱਧਰੀ ਆਯੋਜਿਤ ਕਰਵਾਏ ਜਾ ਰਹੇ ਕੈਂਪਾਂ ਵਿੱਚ ਕਿਸਾਨਾਂ ਨੂੰ ਸਰਫੇਸ ਸੀਡਰ ਮਸ਼ੀਨ ਬਾਰੇ ਦੱਸਿਆ ਜਾਵੇ ਕਿ ਕਿਵੇਂ ਕਿਸਾਨ ਇਸ ਮਸ਼ੀਨ ਦੀ ਮੱਦਦ ਨਾਲ ਪਰਾਲੀ ਨੂੰ ਬਿਨ੍ਹਾਂ ਸਾੜੇ ਤੇ ਵਾਹੇ ਕਣਕ ਦੀ ਬਿਜਾਈ ਕਰ ਸਕਦੇ ਹਨ। ਸਰਫੇਸ ਸੀਡਰ ਕੰਬਾਈਨ ਦੁਆਰਾ ਕਟਾਈ ਕੀਤੇ ਝੋਨੇ ਦੇ ਖੇਤ ਵਿੱਚ ਬੀਜ ਅਤੇ ਖਾਦ ਨੂੰ ਇੱਕੋਂ ਸਮੇਂ ਪਾਇਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਇਹ ਖੜ੍ਹੇ ਝੋਨੇ ਦੇ ਨਾੜ ਨੂੰ ਕੁਤਰ ਕੇ ਖੇਤਾਂ ਵਿੱਚ ਬਰਾਬਰ ਮਿਲਾ ਦਿੰਦਾ ਹੈ। ਸਰਫੇਸ ਸੀਡਰ ਇੱਕ ਘੰਟੇ ਵਿੱਚ 15 ਏਕੜ ਕਣਕ ਦੀ ਬਿਜਾਈ ਕਰ ਸਕਦਾ ਹੈ। ਜਿਕਰਯੋਗ ਹੈ ਕਿ ਫਸਲਾਂ ਦੀ ਰਹਿੰਦ ਖੂੰਹਦ/ਨਾੜ ਨੂੰ ਅੱਗ ਲਗਾਏ ਜਾਣ ਦੀ ਸੂਰਤ ਵਿੱਚ ਕਾਰਵਾਈ ਕਰਨ ਲਈ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸ਼ਨ ਵੱਲੋਂ ਪੂਰੇ ਜ਼ਿਲ੍ਹੇ ਵਿੱਚ 334 ਨੋਡਲ ਅਫ਼ਸਰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤੇ ਹਨ, ਜਿੰਨਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਸਬ-ਡਿਵੀਜ਼ਨ ਨਿਹਾਲ ਸਿੰਘ ਵਾਲਾ ਵਿੱਚ 39, ਮੋਗਾ ਵਿੱਚ 88, ਬਾਘਾਪੁਰਾਣਾ ਵਿੱਚ 56 ਅਤੇ ਧਰਮਕੋਟ ਵਿੱਚ 151 ਨੋਡਲ ਅਫ਼ਸਰਾਂ ਨੂੰ ਲਗਾਇਆ ਗਿਆ ਹੈ। ਨੋਡਲ ਅਫ਼ਸਰਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਸਬ-ਡਿਵੀਜ਼ਨ ਵਾਈਜ਼ ਕਲੱਸਟਰ ਅਫ਼ਸਰਾਂ ਦੀ ਵੀ ਨਿਯੁਕਤੀ ਕੀਤੀ ਗਈ ਹੈ।

ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਮੈਜਿਸਟ੍ਰੇਟ ਵੱਲੋਂ ਕੰਬਾਈਨਾਂ ਨੂੰ ਸੁਪਰ ਐਸ.ਐਮ.ਐਸ. ਸਿਸਟਮ ਤੋ ਬਿਨ੍ਹਾਂ ਚਲਾਉਣ 'ਤੇ ਲਗਾਈ ਪਾਬੰਦੀ

ਪਾਬੰਦੀ ਆਦੇਸ਼ 15 ਨਵੰਬਰ ਤੱਕ ਰਹਿਣਗੇ ਲਾਗੂ

ਮੋਗਾ (ਕਮਲ) :- ਪੰਜਾਬ ਸਰਕਾਰ ਦੇ ਦਿਸ਼ਾ-ਨਿਰਦੇਸ਼ਾਂ ਦੀ ਪਾਲਣਾ ਕਰਦਿਆਂ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸ਼ਨ ਪਰਾਲੀ ਨੂੰ ਅੱਗ ਲੱਗਣ ਦੀਆਂ ਘਟਨਾਵਾਂ ਨੂੰ ਰੋਕਣ ਲਈ ਯਤਨਸ਼ੀਲ ਹੈ। ਵੱਖ-ਵੱਖ ਕੋਰਟ ਕੇਸਾਂ ਵਿੱਚ ਮਾਨਯੋਗ ਪੰਜਾਬ ਅਤੇ ਹਰਿਆਣਾ ਹਾਈਕੋਰਟ ਚੰਡੀਗੜ੍ਹ ਅਤੇ ਸੁਪਰੀਮ ਕੋਰਟ ਵੱਲੋਂ ਵੀ ਪਰਾਲੀ ਨੂੰ ਅੱਗ ਲਗਾਉਣ ਦੀਆਂ ਘਟਨਾਵਾਂ ਨੂੰ ਰੋਕਣ ਲਈ ਬਿਨ੍ਹਾਂ ਸੁਪਰ ਐਸ.ਐਮ.ਐਸ. ਤੋਂ ਕੰਬਾਈਨਾਂ ਨੂੰ ਚਲਾਉਣ ਉੱਪਰ ਰੋਕ ਲਗਾਉਣ ਦੇ ਆਦੇਸ਼ ਜਾਰੀ ਕੀਤੇ ਹਨ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਸ਼ਬਦਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਗਟਾਵਾ ਕਰਦਿਆਂ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਮੈਜਿਸਟ੍ਰੇਟ-ਕਮ-ਡਿਪਟੀ ਕਮਿਸ਼ਨਰ ਮੋਗਾ ਕੁਲਵੰਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਉਕਤ ਨੂੰ ਮੁੱਖ ਰੱਖਦੇ ਹੋਏ ਅਤੇ ਸਰਕਾਰ ਦੀਆਂ ਹਦਾਇਤਾਂ ਦੀ ਪਾਲਣਾ ਕਰਦਿਆਂ ਧਾਰਾ 144 ਤਹਿਤ ਮਿਲੇ ਅਧਿਕਾਰਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋ ਕਰਦੇ ਹੋਏ ਕ੍ਰਿਮੀਨਲ ਪ੍ਰੋਸੀਜ਼ਰ 1973 ਦੇ ਤਹਿਤ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਮੋਗਾ ਅੰਦਰ ਵੀ ਸੁਪਰ ਸਟਰਾਅ ਮੈਨੇਜਮੈਟ ਸਿਸਟਮ (ਐਸ.ਐਮ.ਐਸ.) ਤੋ ਬਿਨ੍ਹਾਂ ਕੋਈ ਵੀ ਕੰਬਾਇਲ ਨਾ ਚਲਾਉਣ ਦੇ ਆਦੇਸ਼ ਜਾਰੀ ਕੀਤੇ ਹਨ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਜ਼ਿਲ੍ਹੇ ਅੰਦਰ ਝੋਨੇ ਦੀ ਕਟਾਈ ਉਪਰੰਤ ਪਰਾਲੀ ਨੂੰ ਅੱਗ ਲਗਾਉਣ ਦੀ ਸਮੱਸਿਆ ਨਾਲ ਕਾਰਗਰ ਢੰਗ ਨਾਲ ਹਰ ਹੀਲੇ ਨਿਪਟਿਆ ਜਾਵੇਗਾ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਕਿਹਾ ਕਿ ਝੋਨੇ ਦੀ ਪਰਾਲੀ ਨੂੰ ਅੱਗ ਲਗਾਉਣ ਨਾਲ ਵਾਤਾਵਰਨ ਤੇ ਮਾਰੂ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪੈ ਰਹੇ ਹਨ, ਇਸ ਲਈ ਐਸ.ਐਮ.ਐਸ. ਤੋ ਬਿਨ੍ਹਾਂ ਕਿਸੇ ਵੀ ਕੰਬਾਇਨ ਨੂੰ ਚੱਲਣ ਦੀ ਇਜਾਜਤ ਨਹੀ ਦਿੱਤੀ ਜਾਵੇਗੀ। ਉਪਰੋਕਤ ਹੁਕਮ 15 ਨਵੰਬਰ, 2023 ਤੱਕ ਲਾਗੂ ਰਹਿਣਗੇ। ਜਿਕਰਯੋਗ ਹੈ ਕਿ ਸੁਪਰ ਐਸ.ਐਮ.ਐਸ. ਕੰਬਾਈਨ ਨਾਲ ਜੁੜਿਆ ਅਜਿਹਾ ਯੰਤਰ ਹੈ ਜਿਹੜਾ ਕਿ ਝੋਨੇ ਦੀ ਕਟਾਈ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਕੰਬਾਈਨ ਵਿੱਚੋਂ ਨਿਕਲਣ ਵਾਲੀ ਪਰਾਲੀ ਨੂੰ ਬਿਲਕੁਲ ਛੋਟੇ ਛੋਟੇ ਟੁਕੜਿਆਂ ਵਿੱਚ ਕੱਟ ਦਿੰਦਾ ਹੈ ਜਿਸ ਨਾਲ ਇਹ ਪਰਾਲੀ ਖੇਤ ਵਿੱਚ ਹੀ ਆਸਾਨੀ ਨਾਲ ਗਲ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਇਸਨੂੰ ਅੱਗ ਲਗਾਉਣ ਦੀ ਜਰੂਰਤ ਨਹੀਂ ਰਹਿੰਦੀ।ਪਰਾਲੀ ਨੂੰ ਅੱਗ ਲਗਾਉਣ ਤੋਂ ਨਿਜਾਤ ਪਾਉਣ ਲਈ ਇਹ ਸਿਸਟਮ ਬਹੁਤ ਹੀ ਕਾਰਗਰ ਹੈ। 

ਅਮੋਨੀਆ ਗੈਸ ਲੀਕੇਜ਼ ਹੋਣ ਦੀ ਸੂਰਤ ਵਿੱਚ ਬਚਾਓ ਅਤੇ ਆਫ਼ਤ ਪ੍ਰਬੰਧਨ ਸਬੰਧੀ ਮੌਕ ਡਰਿੱਲ ਕਰਵਾਈ

ਨੈਸਲੇ ਫੈਕਟਰੀ ਵੱਲੋਂ ਅਮੋਨੀਆ ਗੈਸ ਲੀਕੇਜ਼ ਹੋਣ ਸਬੰਧੀ ਹੂਟਰ ਵੱਜਣ ਉੱਤੇ ਤੁਰੰਤ ਹਰਕਤ ਵਿੱਚ ਆਏ ਸਾਰੇ ਵਿਭਾਗ

ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸ਼ਨ ਕਿਸੇ ਵੀ ਹੰਗਾਮੀ ਸਥਿਤੀ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰਨ ਲਈ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਤਿਆਰ - ਐੱਸ ਡੀ ਐੱਮ ਮੋਗਾ

ਫੈਕਟਰੀ ਪ੍ਰਬੰਧਕਾਂ ਵਲੋਂ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸ਼ਨ ਦੇ ਸਹਿਯੋਗ ਲਈ ਧੰਨਵਾਦ

ਮੋਗਾ (ਕਮਲ) :- ਸਥਾਨਕ ਨੈਸਲੇ ਫੈਕਟਰੀ ਵਿਖੇ ਅੱਜ 'ਅਮੋਨੀਆ ਗੈਸ ਲੀਕੇਜ਼ ਅਤੇ ਇਵੈਕੁਏਸ਼ਨ ਡਰਿੱਲ' ਕਰਵਾਈ ਗਈ। ਇਸ ਡਰਿੱਲ ਦਾ ਮਕਸਦ ਫੈਕਟਰੀ ਵਿਚ ਕੰਮ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਕਾਮਿਆਂ ਅਤੇ ਹੋਰ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਅਮੋਨੀਆ ਗੈਸ ਲੀਕੇਜ਼ ਹੋਣ ਦੀ ਸੂਰਤ ਵਿੱਚ ਬਚਾਓ ਅਤੇ ਆਫ਼ਤ ਪ੍ਰਬੰਧਨ ਦੀ ਸਿਖ਼ਲਾਈ ਦੇਣਾ ਅਤੇ ਹੰਗਾਮੀ ਹਾਲਤ ਪੈਦਾ ਹੋਣ ਉੱਤੇ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸ਼ਨ ਦੀਆਂ ਤਿਆਰੀਆਂ ਦਾ ਜਾਇਜ਼ਾ ਲੈਣਾ ਸੀ। ਇਸ ਡਰਿੱਲ ਦੌਰਾਨ ਸ਼੍ਰੀਮਤੀ ਚਾਰੂਮਿਤਾ ਐੱਸ ਡੀ ਐੱਮ ਮੋਗਾ ਅਤੇ ਹੋਰ ਵੀ ਹਾਜ਼ਰ ਸਨ।

ਅੱਜ ਸਵੇਰੇ 9:50 ਵਜੇ ਨੈਸਲੇ ਫੈਕਟਰੀ ਵੱਲੋਂ ਅਮੋਨੀਆ ਗੈਸ ਲੀਕੇਜ਼ ਹੋਣ ਸਬੰਧੀ ਹੂਟਰ ਵਜਾਇਆ ਗਿਆ, ਜਿਸ ਉੱਤੇ ਤੁਰੰਤ ਹੀ ਸਾਰੇ ਸਬੰਧਤ ਵਿਭਾਗਾਂ ਨੂੰ ਅਲਰਟ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਅਤੇ ਤੁਰੰਤ ਫੈਕਟਰੀ ਵਿਖੇ ਪਹੁੰਚਣ ਲਈ ਕਿਹਾ ਗਿਆ। ਸਾਰੇ ਵਿਭਾਗਾਂ ਵੱਲੋਂ ਤੁਰੰਤ ਹਰਕਤ ਕਰਕੇ ਅਮੋਨੀਆ ਗੈਸ ਲੀਕੇਜ਼ ਹੋਣ ਨਾਲ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋਏ ਦੋ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਨੂੰ ਬਚਾਇਆ ਗਿਆ। ਮੌਕ ਡਰਿੱਲ ਲਈ ਐਨ ਡੀ ਆਰ ਐੱਫ ਦੀ ਟੀਮ, ਨਗਰ ਨਿਗਮ ਦੇ ਫਾਇਰ ਬ੍ਰਿਗੇਡ ਵਿਭਾਗ, ਸਿਹਤ ਵਿਭਾਗ ਅਤੇ ਪੁਲਿਸ ਵਿਭਾਗ ਤੋਂ ਅਧਿਕਾਰੀ ਅਤੇ ਕਰਮਚਾਰੀ ਪਹੁੰਚੇ ਹੋਏ ਸਨ। ਇਹ ਡਰਿੱਲ 10:30 ਮੁਕੰਮਲ ਹੋਈ।

ਸਾਰੇ ਵਿਭਾਗਾਂ ਵੱਲੋਂ ਸਮੇਂ ਸਿਰ ਕਾਰਵਾਈ ਕਰਦਿਆਂ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਬਚਾਉਣ ਅਤੇ ਸਥਿਤੀ ਨੂੰ ਠੀਕ ਕਰਨ ਲਈ ਆਪਣੀ-ਆਪਣੀ ਬਣਦੀ ਡਿਊਟੀ ਨਿਭਾਈ ਗਈ। ਇਸ ਡਰਿੱਲ ਵਿੱਚ ਹਰ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਉਪਕਰਨ ਅਤੇ ਸਾਧਨਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕੀਤੀ ਗਈ, ਜੋ ਕਿ ਕਿਸੇ ਹੰਗਾਮੀ ਸਥਿਤੀ ਵਿੱਚ ਲੋੜੀਂਦੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ। ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਇਸ ਸਥਿਤੀ ਨਾਲ ਨਿਪਟਣ ਲਈ ਕੀ-ਕੀ ਤਰੀਕੇ ਵਰਤੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ, ਇਸ ਬਾਰੇ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦਿੱਤੀ ਗਈ। ਕੁੱਲ ਮਿਲਾ ਕੇ ਇਹ ਮੌਕ ਡਰਿੱਲ ਬਹੁਤ ਹੀ ਸਫ਼ਲ ਅਤੇ ਸਿੱਖਿਆਦਾਇਕ ਰਹੀ। ਇਸ ਸਫ਼ਲ ਡਰਿੱਲ ਲਈ ਫੈਕਟਰੀ ਦੇ ਚੀਫ਼ ਮੈਨੇਜਰ ਰਾਹੁਲ ਮਿੱਤਲ ਅਤੇ ਕਾਰਪੋਰੇਟ ਮਾਮਲਿਆਂ ਦੇ ਹੈੱਡ ਹਰਵਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਨੇ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸ਼ਨ ਦੇ ਸਹਿਯੋਗ ਲਈ ਧੰਨਵਾਦ ਕੀਤਾ। ਚਾਰੂਮਿਤਾ ਐੱਸ ਡੀ ਐੱਮ ਮੋਗਾ ਨੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸ਼ਨ ਕਿਸੇ ਵੀ ਹੰਗਾਮੀ ਸਥਿਤੀ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰਨ ਲਈ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਤਿਆਰ ਹੈ।

ਸੰਕਲਪ ਸਪਤਾਹ ਦੇ ਚੌਥੇ ਦਿਨ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਤੇ ਕਿਸਾਨ ਭਲਾਈ ਵਿਭਾਗ ਵੱਲੋਂ ਰਾਉਕੇ ਕਲਾਂ ਵਿਖੇ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਜਾਗਰੂਕਤਾ ਗਤੀਵਿਧੀਆਂ ਦਾ ਆਯੋਜਨ

ਮੋਗਾ (ਕਮਲ) :- ਐਸਪੀਰੇਸ਼ਨਲ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਭਾਰਤ ਸਰਕਾਰ ਦੀ ਇੱਕ ਪਹਿਲਕਦਮੀ ਹੈ, ਜਿਸ ਤਹਿਤ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਮਾਪਦੰਡਾਂ ਵਿੱਚ ਪਛੜ ਰਹੇ ਜ਼ਿਲ੍ਹਿਆਂ ਦੀ ਕਾਰਜਗੁਜ਼ਗਾਰੀ ਵਿੱਚ ਸੁਧਾਰ ਅਤੇ ਆਰਥਿਕ ਵਿਕਾਸ ਕਰਨਾ ਹੈ। ਇਸ ਤਹਿਤ ਸਰਕਾਰ ਵੱਲੋਂ ਐਸਪੀਰੇਸ਼ਨਲ ਬਲਾਕ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਵੀ ਚਲਾਇਆ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ, ਜਿਸ ਦਾ ਮੁੱਖ ਮੰਤਵ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਮਾਪਦੰਡਾਂ ਤੋਂ ਪਛੜੇ ਐਸਪੀਰੇਸ਼ਨਲ ਬਲਾਕ ਦੀ ਕਾਰਜਸ਼ੈਲੀ ਵਿੱਚ ਵਾਧਾ ਅਤੇ ਵਿਕਾਸ ਕਰਨਾ ਹੈ। 30 ਸਤੰਬਰ, 2023 ਨੂੰ ਐਸਪੀਰੇਸ਼ਨ ਬਲਾਕ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਲਾਂਚ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ, ਜਿਸਦੀ ਲਗਾਤਾਰਤਾ ਵਿੱਚ ਐਸਪੀਰੇਸ਼ਨਲ ਬਲਾਕ ਨਿਹਾਲ ਸਿੰਘ ਵਾਲਾ ਵਿਖੇ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸ਼ਨ ਦੇ ਸਹਿਯੋਗ ਨਾਲ 3 ਅਕਤੂਬਰ ਤੋਂ ''ਸੰਕਲਪ ਸਪਤਾਹ'' ਚਲਾਇਆ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਵੱਖ ਵੱਖ ਵਿਭਾਗਾਂ ਵੱਲੋਂ ਸਫ਼ਾਈ ਨਾਲ ਸਬੰਧਤ ਗਤੀਵਿਧੀਆਂ ਆਯੋਜਿਤ ਕੀਤੀਆਂ ਜਾ ਰਹੀਆਂ ਹਨ। ਇਸ ਸਪਤਾਹ ਦੇ ਚੌਥੇ ਦਿਨ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਤੇ ਕਿਸਾਨ ਭਲਾਈ ਵਿਭਾਗ ਵੱਲੋਂਪਿੰਡ ਰਾਉਕੇ ਕਲਾਂ ਵਿਖੇ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਜਾਗਰੂਕਤਾ ਗਤੀਵਿਧੀਆਂ ਦਾ ਆਯੋਜਨ ਕੀਤਾ ਗਿਆ।

ਨੀਤੀ ਆਯੋਗ ਅਧੀਨ ਡਿਪਟੀ ਕਮਿਸ਼ਨਰ ਮੋਗਾ ਕੁਲਵੰਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਦਿਸ਼ਾ ਨਿਰਦੇਸ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਬ ਡਿਵੀਜ਼ਨਲ ਮੈਜਿਸਟ੍ਰੇਟ ਨਿਹਾਲ ਸਿੰਘ ਵਾਲਾ ਹਰਕੰਵਲਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਯੋਗ ਅਗਵਾਈ ਹੇਠ ਐਸਪੀਰੇਸ਼ਨਲ ਬਲਾਕ ਨਿਹਾਲ ਸਿੰਘ ਵਾਲਾ ਦੇ ਪਿੰਡ ਰਾਉਕੇ ਕਲਾਂ ਵਿਖੇ ਕ੍ਰਿਸ਼ੀ ਮਹਾਂਉਤਸਵ ਮਨਾਇਆ ਗਿਆ। ਇਸ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਦੀ ਪ੍ਰਧਾਨਗੀ ਡਾ. ਗੁਰਪ੍ਰੀਤ ਸਿੰਘ ਬਲਾਕ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਅਫ਼ਸਰ ਨਿਹਾਲ ਸਿੰਘ ਵਾਲਾ ਵੱਲੋਂ ਕੀਤੀ ਗਈ। ਇਸ ਕੈਂਪ ਦਾ ਸਮੁੱਚਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਬੀ.ਡੀ.ਪੀ.ਓ. ਵੱਲੋਂ ਕੀਤਾ ਗਿਆ। ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਵਿੱਚ ਖੇਤੀ ਮਾਹਿਰਾਂ ਦੀ ਟੀਮ ਵੱਲੋਂ ਖੇਤੀ ਵਰਕਸ਼ਾਪ ਅਤੇ ਖੇਤੀ ਪ੍ਰਦਰਸ਼ਨੀਆਂ ਦਾ ਆਯੋਜਨ ਕੀਤਾ ਗਿਆ। ਟੀਮ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਿਲ ਡਾ. ਗੁਰਪ੍ਰੀਤ ਸਿੰਘ, ਬਲਾਕ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਅਫ਼ਸਰ, ਡਾ. ਨਵਦੀਪ ਸਿੰਘ ਬਲਾਕ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਅਫ਼ਸਰ ਬਾਘਾਪੁਰਾਣਾ, ਡਾ. ਵਿਨੋਦ ਕੁਮਾਰ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਵਿਸਥਾਰ ਅਫ਼ਸਰ, ਡਾ. ਤਰਨਜੀਤ ਸਿੰਘ, ਡਾ. ਧਰਮਵੀਰ ਸਿੰਘ,, ਕੁਲਜੀਤ ਸਿੰਘ, ਹਰਪ੍ਰੀਤ ਸਿੰਘ, ਦੀ ਟੀਮ ਵੱਲੋਂ ਕਿਸਾਨਾਂ ਨੂੰ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਕਿਸਾਨ ਨਿਧੀ, ਮਿੱਟੀ ਪਾਣੀ ਟੈਸਟ ਕਰਵਾਉਣ ਦੀ ਮਹੱਤਤਾ, ਵਾਤਾਵਰਨ ਦੀ ਸੰਭਾਲ ਲਈ ਝੋਨੇ ਦੀ ਪਰਾਲੀ ਨੂੰ ਬਿਨ੍ਹਾਂ ਅੱਗ ਲਗਾਏ ਕਣਕ ਦੀ ਬਿਜਾਈ ਕਰਨ ਲਈ ਤਕਨੀਕਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ, ਕਿਸਾਨਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਆਮਦਨੀ ਵਧਾਉਣ ਦੀ ਪ੍ਰੋਸੈਸਿੰਗ ਕਰਕੇ ਆਪ ਮਾਰਕਿਟ ਕਰਕੇ, ਗੋਬਰ ਧੰਨ ਦੀ ਸੁਚੱਜੀ ਵਰਤੋਂ, ਆਦਿ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਪਹਿਲੂਆਂ ਬਾਰੇ ਜਾਗਰੂਕ ਕੀਤਾ ਗਿਆ। ਇਸ ਮੌਕੇ ਵਿਨੋਦ ਕੁਮਾਰ ਅਤੇ ਹਰਪ੍ਰੀਤ ਸਿੰਘ ਖੇਤੀ ਉਪ ਨਿਰੀਖਕ ਵੱਲੋਂ ਝੋਨੇ ਦੀ ਪਰਾਲੀ ਦੀ ਸਾਂਭ ਸੰਭਾਲ ਲਈ ਸੁਪਰ ਸੀਡਰ, ਮਲਚਰ, ਐਮ.ਬੀ. ਪਲਾਉ ਅਤੇ ਸਰਫੇਸ ਸੀਡਰ ਮਸ਼ੀਨਾਂ ਆਦਿ ਦੀ ਪ੍ਰਦਰਸ਼ਨੀ ਲਗਾ ਕੇ ਕਿਸਾਨਾਂ ਨੂੰ ਮਸ਼ੀਨਾਂ ਸਬੰਧੀ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦਿੱਤੀ।

खेड़ां वतन पंजाब दिया राज्य में खेल सभ्यता को पुनर्जीवित करने में मील का पत्थर साबित हुई- सुशील रिंकू

सांसद ने स्थानीय स्पोर्ट्स कॉलेज में मेगा इवेंट के जिला स्तरीय समापन समारोह के दौरान युवाओं को किया संबोधित

जालंधर (अरोड़ा) :- खेड़ां वतन पंजाब दिया राज्य मैं खेल सभ्यता को पुनर्जीवित करने की दिशा में कारगर साबित हो रही है जिसके तहत पंजाब के कौने-कौने से सभी वर्गों के लोग खेलों के साथ पुन: जुड़ रहे हैं। ये विचार लोकसभा सदस्य सुशील कुमार रिंकू ने आज स्थानीय स्पोर्ट्स कॉलेज में इस मेगा इवेंट के जिला स्तरीय समापन समारोह के दौरान आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। कार्यक्रम के दौरान सांसद ने जिला स्तर पर इस प्रतियोगिता के तहत हुए अलग-अलग मुकाबले में जीत हासिल करने वाले खिलाड़ियों को सम्मानित किया, साथ ही उन्हें अपना प्रदर्शन जारी रखने के लिए प्रेरित किया ताकि आगे चलकर वह एक अच्छे खिलाड़ी बन सके। रिंकू ने कहा कि खेल में इतनी ताकत है कि यह अलग-अलग धर्मों, जातियों व संप्रदायों के लोगों को एकता के सूत्र में पिरोता है और उनमें अपनेपन की भावना पैदा करता है।

जहां तक नशे का सवाल है तो एक बार खेल से जुड़ने वाला कोई भी व्यक्ति नशे की तरफ मुड़कर नहीं देखता। इसलिए आज पंजाब के यूथ को सही दिशा की तरफ बढ़ाने के लिए स्पोर्ट्स को घर-घर पहुंचने की जरूरत है। रिंकू ने आगे कहा कि यह खुशी की बात है कि मुख्यमंत्री भगवंत मान की अगुवाई में पंजाब सरकार खेल संस्कृति को राज्य के कौने-कौने तक फैलाने के लिए ऐसे कदम उठा रही है जो उससे पहले किसी सरकार ने नहीं उठाए। उन्होंने कहा कि चाहे वह नई खेल नीति हो, खिलाड़ियों को मिलने वाली इनाम राशि में बढ़ोतरी करना हो या फिर खेड़ां वतन पंजाब दिया जैसे आयोजन हो, पंजाब सरकार कुशलता से लगातार खेलों को बढ़ावा दे रही है। अंत में उन्होंने खिलाड़ियों के उज्जवल भविष्य की कामना की, साथ ही खेल विभाग के अधिकारियों की प्रशंसा की जिन्होंने पूरी कुशलता के साथ जिले में लगातार खेल मुकाबले करवा कर इस आयोजन को सफल बनाया।

ਚਾਈਨਾ ਡੋਰ ਵੇਚਣ/ਸਟੋਰ/ਵਰਤੋਂ 'ਤੇ ਪਾਬੰਦੀ ਆਦੇਸ਼ ਜਾਰੀ

ਸ਼ਹਿਰਾਂ/ਪਿੰਡਾਂ ਵਿੱਚ ਮੀਟ ਸ਼ਾਪ ਦੀਆਂ ਦੁਕਾਨਾਂ/ਖੋਖੇ ਆਦਿ ਲਗਾ ਕੇ ਮੀਟ ਵੇਚਣ 'ਤੇ ਪਾਬੰਦੀ- ਵਧੀਕ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਮੈਜਿਸਟ੍ਰੇਟ

ਮੋਗਾ (ਕਮਲ) :- ਵਧੀਕ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਮੈਜਿਸਟ੍ਰੇਟ-ਕਮ-ਵਧੀਕ ਡਿਪਟੀ ਕਮਿਸ਼ਨਰ (ਜ਼) ਮੋਗਾ ਡਾ. ਨਿਧੀ ਕੁਮੁਦ ਬਾਂਬ੍ਹਾ ਨੇ ਫੌਜ਼ਦਾਰੀ ਜ਼ਾਬਤਾ ਸੰਘਤਾ 1973 ਦੀ ਧਾਰਾ 144 ਅਧੀਨ ਮਿਲੇ ਅਧਿਕਾਰਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਦੇ ਹੋਏ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਮੋਗਾ 'ਚ ਕੁੱਝ ਪਾਬੰਦੀਆਂ ਦੇ ਹੁਕਮ ਜਾਰੀ ਕੀਤੇ ਹਨ। ਇਹ ਆਦੇਸ਼  30 ਨਵੰਬਰ, 2023 ਤੱਕ ਲਾਗੂ ਰਹਿਣਗੇ। ਆਮ ਜਨਤਾ ਲਈ ਲਾਇਸੰਸੀ ਤੇ ਹੋਰ ਤੇਜ਼ਧਾਰ ਹਥਿਆਰ ਨਾਲ ਲੈ ਕੇ ਚੱਲਣ 'ਤੇ ਪਾਬੰਦੀ ਜ਼ਿਲ੍ਹੇ 'ਚ ਅਮਨ-ਸ਼ਾਂਤੀ ਕਾਇਮ ਰੱਖਣ ਦੇ ਮੱਦੇ-ਨਜ਼ਰ ਜ਼ਿਲ੍ਹੇ ਦੀ ਹਦੂਦ ਅੰਦਰ ਆਮ ਜਨਤਾ ਲਈ ਲਾਇਸੰਸੀ ਹਥਿਆਰ, ਟਕੂਏ, ਬਰਛੇ, ਛੁਰੇ, ਤ੍ਰਿਸ਼ੂਲ ਤੇ ਹੋਰ ਤੇਜ਼ਧਾਰ ਹਥਿਆਰ ਨਾਲ ਲੈ ਕੇ ਚੱਲਣ ਅਤੇ ਪ੍ਰਦਰਸ਼ਨ ਕਰਨ 'ਤੇ ਪੂਰਨ ਰੋਕ ਲਗਾਈ ਹੈ। ਇਹ ਹੁਕਮ ਪੁਲਿਸ, ਹੋਮਗਾਰਡ ਜਾਂ ਸੀ.ਆਰ.ਪੀ.ਐਫ. ਕ੍ਰਮਚਾਰੀਆਂ, ਜਿੰਨ੍ਹਾਂ ਕੋਲ ਸਰਕਾਰੀ ਹਥਿਆਰ ਹਨ ਅਤੇ ਅਸਲਾ ਚੁੱਕਣ ਦੀ ਮਨਜ਼ੂਰੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਅਸਲਾ ਧਾਰਕਾਂ 'ਤੇ ਲਾਗੂ ਨਹੀਂ ਹੋਵੇਗਾ। ਜ਼ਿਲੇ 'ਚ ਪਲਾਸਟਿਕ ਲਿਫ਼ਾਫਿਆਂ ਨੂੰ ਬਣਾਉਣ, ਸਟੋਰ ਕਰਨ, ਵੇਚਣ ਅਤੇ ਵਰਤੋਂ 'ਤੇ ਪਾਬੰਦੀ ਤਕਨਾਲਜੀ ਦਬਾਅ ਅਤੇ ਮੰਡੀਕਰਨ ਦੀਆਂ ਨਵੀਆਂ ਜੁਗਤਾਂ ਕਰਕੇ ਵਰਤ ਕੇ ਸੁੱਟਣ ਵਾਲੀਆਂ, ਪੈਕ ਕਰਨ ਲਈ ਅਤੇ ਪਲਾਸਟਿਕ ਦੇ ਲਿਫਾਫਿਆਂ ਦੀ ਉਪਭੋਗੀ ਵਸਤੂਆਂ ਲਈ ਵਧ ਰਹੀ ਖਪਤ ਕਾਰਣ ਬਹੁਤ ਜਿਆਦਾ ਪਲਾਸਟਿਕ ਦੀ ਰੱਦੀ ਕੂੜਾ ਕਰਕਟ ਸੁੱਟਣ ਦੀਆਂ ਥਾਵਾਂ ਅਤੇ ਖੁੱਲੀਆਂ ਥਾਵਾਂ ਆਦਿ ਤੇ ਥਾਂ ਮੱਲ ਰਹੀ, ਇਹ ਲਿਫ਼ਾਫੇ ਸੀਵਰੇਜ਼ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਨੂੰ ਖਾਸ ਤੌਰ ਤੇ ਨੁਕਸਾਨ ਪਹੁੰਚਾਉਂਦੇ ਹਨ ਕਿਉਂਕਿ ਇਹ ਨਾਲੀਆਂ ਅਤੇ ਖੁੱਲ੍ਹੇ ਨਾਲਿਆਂ ਵਿੱਚ ਰੁਕਾਵਟ ਦਾ ਕਾਰਣ ਬਣਦੇ ਹਨ। ਇਸੇ ਤਰਾਂ ਮਨੁੱਖੀ ਸਿਹਤ ਨੂੰ ਧਿਆਨ 'ਚ ਰੱਖਦਿਆਂ 'ਦੀ ਪੰਜਾਬ ਪਲਾਸਟਿਕ ਅਤੇ ਕੈਰੀ ਬੈਗ (ਮੈਨੂਫੈਕਚਰਿੰਗ, ਯੂਜਿਜ ਐਂਡ ਡਿਸਪੋਜ਼ਲ) ਕੰਟਰੋਲ ਐਕਟ, 2005' ਅਨੁਸਾਰ ਜਿਲੇ 'ਚ 30 ਮਾਈਕਰੋਨ ਤੋਂ ਘੱਟ ਮੋਟਾਈ ਅਤੇ 8 12 ਇੰਚੀ ਆਕਾਰ ਤੋਂ ਘੱਟ ਅਣਲੱਗ ਪਲਾਸਟਿਕ ਲਿਫਾਫਿਆਂ ਨੂੰ ਬਣਾਉਣ, ਸਟੋਰ ਕਰਨ, ਵੇਚਣ ਅਤੇ ਵਰਤੋਂ 'ਤੇ ਪੂਰਣ ਪਾਬੰਦੀ ਲਗਾਈ ਗਈ ਹੈ। ਪਲਾਸਟਿਕ ਮਨੁੱਖੀ ਸਿਹਤ ਲਈ ਹਾਨੀਕਾਰਕ ਹੋਣ ਦੇ ਨਾਲ ਪਸ਼ੂਆਂ ਵੱਲੋਂ ਪਲਾਸਟਿਕ ਲਿਫ਼ਾਫ਼ਿਆਂ ਦੀ ਰਹਿੰਦ-ਖੂੰਹਦ ਖਾਧੇ ਜਾਣ ਕਾਰਣ ਗੰਭੀਰ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ ਅਤੇ ਉਨਾਂ ਦੀ ਮੌਤ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ, ਜਿਸ ਨਾਲ ਆਮ ਜਨ-ਜੀਵਨ ਵਿੱਚ ਭਾਰੀ ਵਿਘਨ ਪੈਂਦਾ ਹੈ। ਪਿੰਡਾਂ ਦੀਆਂ ਫਿਰਨੀਆਂ 'ਤੇ ਰੂੜੀਆਂ ਆਦਿ ਦੇ ਢੇਰ ਲਗਾ ਕੇ ਨਜਾਇਜ਼ ਕਬਜ਼ੇ ਕਰਨ 'ਤੇ ਪਾਬੰਦੀ ਵਧੀਕ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਮੈਜਿਸਟ੍ਰੇਟ ਨੇ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਆਮ ਲੋਕਾਂ ਵੱਲੋਂ ਪਿੰਡਾਂ ਦੀਆਂ ਫਿਰਨੀਆਂ 'ਤੇ ਰੂੜੀਆਂ ਆਦਿ ਦੇ ਢੇਰ ਲਗਾ ਕੇ ਅਤੇ ਹੋਰ ਤਰੀਕਿਆਂ ਨਾਲ ਨਜਾਇਜ਼ ਕਬਜੇ ਕੀਤੇ ਗਏ ਹਨ, ਜਿਸ ਕਾਰਣ ਜਿਥੇ ਦੁਰਘਟਨਾ ਵਾਪਰਨ ਦਾ ਖਤਰਾ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਉਥੇ ਲੜਾਈ-ਝਗੜੇ ਕਾਰਣ ਜਾਨੀ ਤੇ ਮਾਲੀ ਨੁਕਸਾਨ ਹੋਣ ਦਾ ਡਰ ਵੀ ਬਣਿਆ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਲਈ ਜਿਲੇ ਅੰਦਰ ਸੜਕਾਂ ਦੇ ਇਰਦ-ਗਿਰਦ ਆਮ ਲੋਕਾਂ ਵੱਲੋਂ ਕੂੜੇ ਦੇ ਢੇਰ ਲਗਾਉਣ ਅਤੇ ਆਮ ਕਿਸਾਨਾਂ ਵੱਲੋਂ ਬਰਮਾ ਦੀ ਮਿੱਟੀ ਕੱਟਣ 'ਤੇ ਵੀ ਪਾਬੰਦੀ ਲਗਾਈ ਗਈ ਹੈ। ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਅਤੇ ਪਿੰਡਾਂ ਵਿੱਚ ਮੀਟ ਸ਼ਾਪ ਦੀਆਂ ਦੁਕਾਨਾਂ/ਖੋਖੇ ਆਦਿ ਲਗਾ ਕੇ ਮੀਟ ਵੇਚਣ 'ਤੇ ਵੀ ਪਾਬੰਦੀ ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਜ਼ਿਲ੍ਹੇ ਦੇ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਅਤੇ ਪਿੰਡਾਂ ਵਿੱਚ ਮੀਟ ਸ਼ਾਪ ਦੀਆਂ ਦੁਕਾਨਾਂ/ਖੋਖੇ ਆਦਿ ਲਗਾ ਕੇ ਮੀਟ ਵੇਚਣ 'ਤੇ ਵੀ ਪਾਬੰਦੀ ਲਗਾਈ ਗਈ ਹੈ। ਉਨਾਂ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਜਿਲੇ ਦੇ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਅਤੇ ਪਿੰਡਾਂ ਵਿੱਚ ਕਈ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਵੱਲੋਂ ਮੀਟ ਸ਼ਾਪ ਦੀਆਂ ਦੁਕਾਨਾਂ ਅਤੇ ਖੋਖੇ ਆਦਿ ਬਣਾਏ ਹੋਏ ਹਨ, ਜਿੱਥੇ ਇਹ ਵਿਅਕਤੀ ਬੱਕਰੇ, ਮੁਰਗੇ ਅਤੇ ਮੱਛੀ ਆਦਿ ਕੱਟ ਕੇ ਵੇਚਦੇ ਹਨ। ਇਸ ਨਾਲ ਜਿੱਥੇ ਸ਼ਹਿਰਾਂ/ਪਿੰਡਾਂ ਵਿੱਚ ਬਦਬੂ ਫੈਲਦੀ ਹੈ ਤੇ ਗੰਦਗੀ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ, ਉਥੇ ਵਾਤਾਵਰਣ ਦੂਸਿਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਵਿੱਚ ਸੀਵਰੇਜ ਬੰਦ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ। ਉਨਾਂ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਸਰਕਾਰ ਵੱਲੋਂ ਇਸ ਸਬੰਧੀ ਪੱਕੇ ਤੌਰ 'ਤੇ ਸਲਾਟਰ ਹਾਊਸ ਬਣਾਏ ਹੋਏ ਹਨ ਅਤੇ ਇਹ ਮੀਟ ਕੇਵਲ ਸਲਾਟਰ ਹਾਊੋਸ ਵਿੱਚ ਹੀ ਕੱਟਿਆ/ਵੇਚਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ। ਜ਼ਿਲ੍ਹੇ ਦੇ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਅਤੇ ਪਿੰਡਾਂ ਵਿੱਚ ਸੀਮਨ ਦਾ ਅਣ-ਅਧਿਕਾਰਤ ਤੌਰ 'ਤੇ ਭੰਡਾਰਨ/ ਟਰਾਂਸਪੋਰੇਸ਼ਨ ਕਰਨ, ਵਰਤਣ ਜਾਂ ਵੇਚਣ 'ਤੇ ਪਾਬੰਦੀ ਡਾ. ਨਿਧੀ ਕੁਮੁਦ ਬਾਂਬ੍ਹਾ ਨੇ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਪੰਜਾਬ 'ਚ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਥਾਵਾਂ 'ਤੇ ਨਕਲੀ ਅਤੇ ਅਣ-ਅਧਿਕਾਰਤ ਸੀਮਨ ਵਿਕਣ ਦੀਆਂ ਘਟਨਾਵਾਂ ਸਾਹਮਣੇ ਆ ਰਹੀਆਂ ਹਨ। ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਅਣ-ਅਧਿਕਾਰਤ ਤੌਰ 'ਤੇ ਵੇਚੇ ਜਾ ਰਹੇ ਸੀਮਨ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਨਾ ਰਾਜ ਦੀ ਬਰੀਡਿੰਗ ਪਾਲਿਸੀ ਅਨੁਸਾਰ ਉੱਚਿਤ ਨਹੀਂ ਹੈ। ਇਸ ਲਈ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਮੋਗਾ ਦੇ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਅਤੇ ਪਿੰਡਾਂ ਵਿੱਚ ਸੀਮਨ ਦਾ ਅਣ-ਅਧਿਕਾਰਤ ਤੌਰ 'ਤੇ ਭੰਡਾਰਨ ਕਰਨ, ਟਰਾਂਸਪੋਰੇਸ਼ਨ ਕਰਨ, ਵਰਤਣ ਜਾਂ ਵੇਚਣ 'ਤੇ ਪਾਬੰਦੀ ਲਗਾਈ ਗਈ ਹੈ, ਪਰੰਤੂ ਇਹ ਹੁਕਮ ਪਸ਼ੂ ਪਾਲਣ ਵਿਭਾਗ ਦੀਆਂ ਵੈਟਨਰੀ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਸਮੇਤ ਪਸ਼ੂ ਹਸਪਤਾਲ/ਡਿਸਪੈਂਸਰੀਆਂ ਤੇ ਪੋਲੀ-ਕਲੀਨਿਕ, ਰੂਰਲ ਵੈਟਨਰੀ ਹਸਪਤਾਲਾਂ, ਪਸ਼ੂ ਪਾਲਣ ਵਿਭਾਗ, ਪੰਜਾਬ ਮਿਲਕਫੈਡ ਅਤੇ ਗਡਵਾਸੂ ਲੁਧਿਆਣਾ ਵੱਲੋਂ ਚਲਾਏ ਜਾ ਰਹੇ ਆਰਟੀਫ਼ੀਸ਼ਲ ਇਨਸੈਮੀਨੇਸ਼ਨ ਸੈਂਟਰਾਂ, ਕੋਈ ਹੋਰ ਆਰਟੀਫੀਸ਼ਨ ਇਨਸੈਮੀਨੇਸ਼ਨ ਸੈਂਟਰ ਜ਼ੋ ਕਿ ਪਸ਼ੂ ਪਾਲਣ ਵਿਭਾਗ ਵੱਲੋ ਪ੍ਰੋਸੈਸ ਅਤੇ ਸਪਲਾਈ ਜਾਂ ਇੰਪੋਰਟ ਕੀਤੇ ਗਏ ਬੋਵਾਇਨ ਸੀਮਨ ਨੂੰ ਵਰਤ ਰਹੇ ਹਨ, ਪ੍ਰੋਗਰੈਸਿਵ ਡੇਅਰੀ ਫਾਰਮਰਜ਼ ਐਸੋਸੀਏਸ਼ਨ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮੈਂਬਰ ਜਿੰਨਾਂ ਨੇ ਕੇਵਲ ਆਪਣੇ ਪਸ਼ੂਆਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਲਈ ਬੋਵਾਇਨ ਸੀਮਨ ਇੰਪੋਰਟ ਕੀਤਾ ਹੋਵੇ ਆਦਿ 'ਤੇ ਲਾਗੂ ਨਹੀਂ ਹੋਣਗੇ। ਜ਼ਿਲੇ ਅੰਦਰ ਚਾਈਨਾ ਡੋਰ ਨੂੰ ਵੇਚਣ, ਸਟੋਰ ਕਰਨ ਅਤੇ ਵਰਤੋਂ ਕਰਨ 'ਤੇ ਪਾਬੰਦੀ ਵਧੀਕ ਜ਼ਿਲਾ ਮੈਜਿਸਟ੍ਰੇਟ ਨੇ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਜ਼ਿਲੇ ਅੰਦਰ ਅਕਸਰ ਅਤੇ ਵਿਸੇਸ਼ ਕਰਕੇ ਬਸੰਤ ਪੰਚਮੀ ਦੇ ਮੌਕੇ 'ਤੇ ਕਾਫ਼ੀ ਮਾਤਰਾ ਵਿੱਚ ਪਤੰਗਾਂ ਉਡਾਈਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ ਅਤੇ ਇੰਨਾਂ ਪਤੰਗਾਂ ਲਈ ਚਾਈਨਾ ਡੋਰ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਵੀ ਕਾਫੀ ਮਾਤਰਾ ਵਿੱਚ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ। ਇਹ ਸੰਥੈਟਿਕ/ਪਲਾਸਟਿਕ ਦੀ ਬਣੀ ਡੋਰ ਕਾਫ਼ੀ ਮਜਬੂਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ, ਜਿਸ ਨਾਲ ਪਤੰਗ ਉਡਾਉਣ ਵਾਲਿਆਂ ਦੇ ਹੱਥ ਤੇ ਉੱਂਗਲਾਂ ਕੱਟਣ, ਸਾਈਕਲ ਤੇ ਸਕੂਟਰ, ਮੋਟਰ ਸਾਈਕਲ ਚਾਲਕਾਂ ਦੇ ਗਲ ਅਤੇ ਕੰਨ ਕੱਟਣ ਦੀਆਂ ਘਟਨਾਵਾਂ ਵਾਪਰਦੀਆਂ ਹਨ ਅਤੇ ਅਜਿਹੀ ਹਾਲਤ ਵਿੱਚ ਐਕਸੀਡੈਂਟ ਹੋਣ ਦਾ ਵੀ ਡਰ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਚਾਈਨਾ ਡੋਰ ਵਿੱਚ ਫ਼ਸੇ ਪੰਛੀਆਂ ਦੀ ਮੌਤ ਹੋ ਜਾਣ ਤੇ ਉਨਾਂ ਦੇ ਰੁੱਖਾਂ 'ਤੇ ਟੰਗੇ ਰਹਿਣ ਕਾਰਣ ਬਦਬੂ ਨਾਲ ਵਾਤਾਵਰਣ ਵੀ ਦੂਸ਼ਿਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਲਈ ਇਹ ਚਾਈਨਾ ਡੋਰ ਮਨੁੱਖੀ ਜਾਨਾਂ ਅਤੇ ਪੰਛੀਆਂ ਲਈ ਘਾਤਕ ਸਿੱਧ ਹੁੰਦੀ ਹੈ। ਇੰਨਾਂ ਤੱਥਾਂ ਨੂੰ ਮੁੱਖ ਰੱਖਦਿਆਂ ਸੰਥੈਟਿਕ/ਪਲਾਸਟਿਕ ਦੀ ਬਣੀ (ਚਾਈਨਾ ਡੋਰ) ਨੂੰ ਵਰਤਣ, ਵੇਚਣ ਅਤੇ ਸਟੋਰ ਕਰਨ 'ਤੇ ਪੂਰਨ ਰੋਕ ਲਗਾ ਦਿੱਤੀ ਗਈ ਹੈ।

ਸਾਡੇ ਬਜ਼ੁਰਗਾਂ ਅਤੇ ਮਾਤਾ-ਪਿਤਾ ਦਾ ਸਮਾਜ ਦੀ ਤਰੱਕੀ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਵੱਡਾ ਯੋਗਦਾਨ - ਡਿਪਟੀ ਕਮਿਸ਼ਨਰ

ਰਿਟਾਇਰਮੈਂਟ ਜਾਂ ਬੁਢਾਪਾ ਕਿਸੇ ਦਾ ਅੰਤ ਨਹੀਂ ਸਗੋਂ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਦੀ ਦੂਜੀ ਪਾਰੀ ਦੀ ਸ਼ੁਰੂਆਤ

ਕਿਸੇ ਬਜ਼ੁਰਗ ਮਾਤਾ-ਪਿਤਾ ਨੂੰ ਉਸ ਦੇ ਪਰਿਵਾਰ ਵੱਲੋਂ ਨਹੀਂ ਸੰਭਾਲਿਆ ਜਾਂਦਾ ਤਾਂ ਉਹ ਸਮਾਜਿਕ ਸੁਰੱਖਿਆ ਵਿਭਾਗ ਨੂੰ ਕਰੇ ਸ਼ਿਕਾਇਤ

ਸਾਡੇ ਬਜ਼ੁਰਗ ਸਾਡਾ ਮਾਣ ਮੁਹਿੰਮ ਤਹਿਤ ਬਜ਼ੁਰਜਾਂ ਦੀ ਸਿਹਤ ਜਾਂਚ ਸਬੰਧੀ ਲਗਾਇਆ ਕੈਂਪ

ਮੋਗਾ (ਕਮਲ) :-  ਬਜ਼ੁਰਗ ਸਾਡੇ ਸਮਾਜ ਦਾ ਸਰਮਾਇਆ ਹਨ, ਇਹਨਾਂ ਨੂੰ ਸੰਭਾਲਣਾ ਸਾਡਾ ਫ਼ਰਜ਼ ਵੀ ਹੈ ਅਤੇ ਸਾਡੀ ਨੈਤਿਕ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀ ਵੀ ਹੈ। ਕਿਉਂਕਿ ਸਾਡੇ ਬਜ਼ੁਰਗਾਂ ਅਤੇ ਮਾਤਾ-ਪਿਤਾ ਦਾ ਸਮਾਜ ਦੀ ਤਰੱਕੀ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਵੱਡਾ ਯੋਗਦਾਨ ਹੈ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਗੱਲਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਗਟਾਵਾ ਡਿਪਟੀ ਕਮਿਸ਼ਨਰ ਕੁਲਵੰਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਸਾਡੇ ਬਜ਼ੁਰਗ ਸਾਡਾ ਮਾਣ ਮੁਹਿੰਮ ਦਾ ਜਿਲ੍ਹਾ ਮੋਗਾ ਤੋਂ ਆਗਾਜ਼ ਕਰਦੇ ਹੋਏ ਕੀਤਾ। ਇਸ ਮੌਕੇ ਸੀਨੀਅਰ ਸਿਟੀਜ਼ਨ ਸੰਸਥਾ ਵਲੋਂ ਪ੍ਰਧਾਨ ਸਰਦਾਰੀ ਲਾਲ ਕਾਮਰਾ ਅਤੇ ਹੋਰ ਵੀ ਹਾਜ਼ਰ ਸਨ। ਉਹਨਾਂ ਕਿਹਾ ਕਿ ਸਾਡੇ ਬਜ਼ੁਰਗਾਂ ਅਤੇ ਮਾਤਾ-ਪਿਤਾ ਦਾ ਸਮਾਜ ਦੀ ਤਰੱਕੀ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਵੱਡੀ ਅਤੇ ਅਹਿਮ ਭੂਮਿਕਾ ਹੈ, ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਯੋਗ ਅਗਵਾਈ ਸਦਕਾ ਹੀ ਅਸੀਂ ਅੱਜ ਹਰ ਖੇਤਰ ਵਿੱਚ ਨਾਮਣਾ ਖੱਟ ਰਹੇ ਹਾਂ ਅਤੇ ਤਰੱਕੀ ਦੀਆਂ ਨਵੀਂਆਂ ਮੰਜਿਲਾ ਛੂਹ ਰਹੇ ਹਾਂ। ਉਹਨਾਂ ਕਿਹਾ ਕਿ ਪੁਰਾਣੇ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਹੀ ਸਾਡੇ ਭਾਰਤੀ ਸਮਾਜ ਅਤੇ ਪਰੰਪਰਾ ਵਿੱਚ ਸਾਂਝੇ ਪਰਿਵਾਰਾਂ ਦਾ ਬਹੁਤ ਮਹੱਤਵ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਇਸ ਰੀਤੀ ਨੂੰ ਅੱਗੇ ਵਧਾਉਦੇ ਹੋਏ ਸਾਨੂੰ ਅੱਜ ਵੀ ਬਜ਼ੁਰਗਾਂ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਮਾਣ-ਸਤਿਕਾਰ ਦੇਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ, ਕਿਉਂਕਿ ਸਾਂਝੇ ਪਰਿਵਾਰ ਵਿੱਚ ਰਹਿੰਦੇ ਹੋਏ ਅਸੀਂ ਤਰੱਕੀ ਕਰ ਸਕਦੇ ਹਾਂ ਅਤੇ ਖੁਸ਼ਹਾਲ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਦਾ ਆਨੰਦ ਲੈ ਸਕਦੇ ਹਾਂ।

ਉਹਨਾਂ ਸਮਾਗਮ ਵਿੱਚ ਹਾਜ਼ਰ ਬਜ਼ੁਰਗਾਂ ਨੂੰ ਸੰਬੋਧਨ ਕਰਦਿਆਂ ਕਿਹਾ ਕਿ ਰਿਟਾਇਰਮੈਂਟ ਜਿੰਦਗੀ ਦਾ ਅੰਤ ਨਹੀਂ ਹੈ, ਸਗੋਂ ਇਹ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਦੀ ਦੂਜੀ ਪਾਰੀ ਦੀ ਸ਼ੁਰੂਆਤ ਹੈ, ਇਸ ਸਮੇਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਦੇ ਕੁਝ ਅਧੂਰੇ ਰਹਿੰਦੇ ਕੰਮਾਂ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਕਰਨ ਅਤੇ ਸਮਾਜ ਸੁਧਾਰ ਲਈ ਕੀਤੀ ਜਾ ਸਕਦੀ ਹੈ। ਉਹਨਾਂ ਸਮੂਹ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਵਾਸੀਆਂ ਨੂੰ ਅਪੀਲ ਕੀਤੀ ਕਿ ਉਹ ਆਪਣੇ ਬਜ਼ੁਰਗਾਂ ਦਾ ਤਨੋ-ਮਨੋਂ ਸਤਿਕਾਰ ਕਰਨ ਤਾਂ ਕਿ ਸੱਭਿਅਕ ਸਮਾਜ ਦੀ ਸਿਰਜਣਾ ਕੀਤੀ ਜਾ ਸਕੇ। ਉਹਨਾਂ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਸਰਕਾਰ ਵੱਲੋਂ ਬਜ਼ੁਰਗਾਂ ਦੀ ਸੁਰੱਖਿਆ ਲਈ ਕੁੱਝ ਨਿਯਮ/ਕਾਨੂੰਨ ਬਣਾਏ ਗਏ ਹਨ। ਜੇਕਰ ਕਿਸੇ ਵੀ ਬਜ਼ੁਰਗ ਦੀ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਪਰਿਵਾਰ ਵੱਲੋਂ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਨਹੀਂ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਜਾਂ ਘਰ ਤੋਂ ਕੱਢ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਤਾਂ ਉਹ ਬਜ਼ੁਰਗ ਆਪਣੀ ਸ਼ਿਕਾਇਤ ਸਮਾਜਿਕ ਸੁਰੱਖਿਆ ਵਿਭਾਗ ਨੂੰ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਪੱਧਰ/ਸਬ-ਡਵੀਜ਼ਨ ਪੱਧਰ 'ਤੇ ਕਰ ਸਕਦਾ ਹੈ। ਕਾਨੂੰਨ ਅਨੁਸਾਰ ਉਸ ਬਜ਼ੁਰਗ ਨੂੰ ਬਣਦੇ ਹੱਕ ਦਿਵਾਏ ਜਾਣਗੇ। ਇਸ ਮੌਕੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਐਸੋਸੀਏਸ਼ਨਾਂ ਨਾਲ ਸਬੰਧਤ ਬੁਲਾਰਿਆਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਵਿਚਾਰ ਪੇਸ਼ ਕੀਤੇ ਅਤੇ ਬਜ਼ੁਰਗਾਂ ਨੂੰ ਲੋਈਆਂ ਦੇ ਕੇ ਸਨਮਾਨਿਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ। ਸਿਹਤ ਵਿਭਾਗ ਵੱਲੋਂ ਇਸ ਮੌਕੇ ਬਜ਼ੁਰਗਾਂ ਦੀ ਸਿਹਤ ਦੀ ਜਾਂਚ ਲਈ ਮੈਡੀਕਲ ਕੈਂਪ ਲਗਾ ਕੇ ਡਾਕਟਰਾਂ ਦੀ ਟੀਮ ਨੂੰ ਵੀ ਸਮਾਗਮ ਵਾਲੇ ਸਥਾਨ 'ਤੇ ਤਾਇਨਾਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ। 

आप सरकार पंजाब की अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक : शेरगिल

मान सरकार ने पंजाब की अर्थव्यवस्था को वेंटिलेटर पर डाला : भाजपा

जालंधर (अरोड़ा) :- भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता जयवीर शेरगिल ने कहा है कि मुख्यमंत्री भगवंत मान के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी (आप) सरकार के शासन में पंजाब के खराब वित्तीय हालत के बारे में उनकी चिंताएं सही साबित हुई हैं। यहां जारी एक बयान में शेरगिल ने कहा कि उनके द्वारा बार-बार जाहिर की गई चिंताएं पूर्ण रूप से सही साबित हुई हैं, क्योंकि सरकार ने अपने डेढ़ साल के छोटे से कार्यकाल के दौरान 50,000 करोड़ रुपये का कर्ज लेने की बात स्वीकार की है। इससे यह कहना गलत नहीं होगा कि पंजाब की अर्थव्यवस्था आईसीयू में वेंटिलेटर पर हांफ रही है। यह आप सरकार की गलत नीतियों और आर्थिक कुप्रबंधन का नतीजा है, जो मौजूदा हालातों के लिए पूरी तरह जिम्मेदार है। उन्होने मुख्यमंत्री भगवंत मान द्वारा पंजाब के राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित को लिखे गए पत्र का जिक्र करते हुए, कहा कि पत्र में मान ने खुद स्वीकार किया है कि राज्य की वित्तीय हालत अच्छी नहीं है। इसके अलावा, ऋण के उपयोग के विवरण को लेकर पत्र में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि आप सरकार के डेढ़ साल के कार्यकाल के दौरान पिछले डेढ़ साल में राज्य के कर्ज में 47,107.6 करोड़ रुपये बढ़ोतरी हुई है। शेरगिल ने कहा कि यह पूरी तरह से मान सरकार के उन दावों को खारिज करता है कि राज्य की अर्थव्यवस्था अच्छी स्थिति में है। बल्कि इससे खुलासा होता है कि अर्थव्यवस्था मंदे हालातों में है और अत्यंत बुरे दौर से गुज़र रही है। भाजपा प्रवक्ता ने आप सरकार को पूरी तरह से दिशाहीन बताते हुए कहा कि यह इस तथ्य से स्पष्ट है कि वित्तीय वर्ष 2023-24 के बजट में भी राजस्व संग्रह बढ़ाने के किसी भी नए विकल्प का जिक्र नहीं है। बावजूद इसके कि राज्य में लगातार गहराते वित्तीय संकट की समस्या से निपटने के लिए तत्काल कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। शेरगिल ने जोर देते हुए कहा कि वास्तव में, सरकार के पास राजस्व पैदा करने के लिए कोई पुख्ता सोच नहीं है, जिससे राज्य को घाटे से बाहर निकाला जा सके। जबकि राज्य भारी कर्ज के जाल में फंसा हुआ है। शेरगिल ने कुछ आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि वित्तीय वर्ष 2021-22 के अंत में पंजाब पर 2.82 लाख करोड़ रुपये का कर्ज था, जो वित्तीय वर्ष 2022-23 के अंत में बढ़कर 3.12 लाख करोड़ रुपये हो गया। इसी तरह वित्तीय वर्ष 2023-24 के अंत तक कर्ज 3.47 लाख करोड़ रुपये की नई ऊंचाई को छूने का आशंका है। शेरगिल ने आगे कहा कि पंजाब सरकार ने कर्ज चुकाने पर पांच साल का मोरोटोरियम भी मांगा है। इससे साफ तौर पर खजाना खाली ना होने संबंधी सरकारी दावों की पोल खुलती है। दिलचस्प बात यह है कि लगभग दस महीने पहले, सरकार ने मोरोटोरियम लेने के विचार को सिरे से खारिज कर दिया था, लेकिन अब उसी सरकार ने इस मामले पर पूरी तरह से यू-टर्न ले लिया है। उन्होने कहा कि आप सरकार के पास राज्य को कर्ज मुक्त बनाने के लिए कोई रोडमैप या ब्लूप्रिंट नहीं है। पंजाब के लोगों को इनसे बहुत उम्मीदें थीं, लेकिन आप सरकार राज्य को बढ़ते कर्ज से बाहर निकालने और गिरती अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने में बुरी तरह विफल रही है। शेरगिल ने आगे बताया कि पंजाब देश के सबसे अधिक कर्जदार राज्यों में से एक है और वर्तमान सरकार ने राज्य की अर्थव्यवस्था को रिवर्स गियर में डाल दिया है। भाजपा प्रवक्ता ने खुलासा किया कि कई बार आप सरकार को कर्मचारियों को समय पर वेतन देने में भी कठिनाई होती है। लेकिन दुर्भाग्य इस बात का है कि इस तथ्य के बावजूद कि राज्य की अर्थव्यवस्था खस्ताहाल है, आप सरकार की फर्जी उपलब्धियों का प्रचार करने वाले विज्ञापनों और होर्डिंग्स पर करोड़ों रूपए की फिजूलखर्ची की जा रही है।

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