Wednesday , 29 October 2025

भारत की श्रम संहिताएं: समावेशी आर्थिक विकास की दिशा में एक परिवर्तनकारी कदम

चंडीगढ़ (ब्यूरो) :- भूमि और श्रम; भारत के विकास के आधार-स्तंभ हैं— भूमि अवसंरचना और औद्योगिक विकास को गति देती है, जबकि श्रम उत्पादकता और समावेश को बढ़ावा देता है। इस संदर्भ में, भारत की नई श्रम संहिताएं एक परिवर्तनकारी कदम को रेखांकित करती हैं, 29 कानूनों को एक आधुनिक, एकीकृत संरचना में समेकित करती हैं तथा श्रम परिदृश्य में स्पष्टता, एकरूपता और समानता सुनिश्चित करती है। श्रमिकों के लिए, ये संहिताएं मज़बूत सामाजिक सुरक्षा, सुरक्षित कार्यस्थल और औपचारिक लाभों तक व्यापक पहुँच की सुविधा प्रदान करती हैं, जबकि व्यवसायों को सरलीकृत अनुपालन, कार्यबल प्रबंधन में लचीलेपन और सभी क्षेत्रों में समान अवसर का लाभ मिलता है। हालाँकि अंतिम प्रभाव कार्यान्वयन की गुणवत्ता पर निर्भर करेगा, लेकिन ये संहिताएँ भारत के श्रम बाजार को 21वीं सदी की अर्थव्यवस्था की आवश्यकताओं के अनुरूप बनाने की दिशा में एक निर्णायक कदम हैं। जयपुर में वितरण सेवाओं से लेकर साणंद में तकनीकी भूमिकाओं और गुवाहाटी में निर्माण कार्य तक— विभिन्न क्षेत्रों में भारत के कार्यबल की आकांक्षा एक-जैसी है: सुरक्षित कार्य परिस्थितियों तक पहुँच, उचित पारिश्रमिक और दूसरी जगह ले जाने योग्य एवं विश्वसनीय सामाजिक सुरक्षा। श्रमिक चाहे कारखानों में कार्यरत हों या खेतों में, या प्लेटफ़ॉर्म-आधारित सेवाओं से जुड़े हों, वे तीन प्रमुख आश्वासन चाहते हैं: आय स्थिरता, पूर्वानुमानित सामाजिक सुरक्षा और रोज़गार में सम्मान। भारत की चार श्रम संहिताएँ इस आकांक्षा को जीवंत वास्तविकता में बदलने के उद्देश्य से तैयार की गई हैं, ताकि समता और सुरक्षा के सिद्धांत का कार्य जगत में अंतर्निहित होना सुनिश्चित हो सके। सुधारों के केंद्र में है – सामाजिक सुरक्षा कवरेज का विस्तार। लाखों असंगठित, गिग और प्लेटफ़ॉर्म श्रमिक, जो भारत के कार्यबल का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, नई व्यवस्था के तहत औपचारिक मान्यता प्राप्त करेंगे और कई सुविधाओं के पात्र बन जायेंगे। भविष्य निधि, स्वास्थ्य बीमा और मातृत्व लाभ के प्रावधान अब औपचारिक क्षेत्र के कर्मचारियों तक ही सीमित नहीं रहेंगे, बल्कि ऐतिहासिक रूप से बहिष्कृत श्रेणियों तक इनका विस्तार हो जाएगा। यह बदलाव, न केवल कमजोर श्रमिकों के लिए सुरक्षा सुविधा को मजबूत करता है, बल्कि उद्यमों को रोज़गार को औपचारिक बनाने के लिए प्रोत्साहित करता है, जिसके परिणामस्वरूप सामाजिक सुरक्षा के समग्र आधार का विस्तार होता है। सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 औपचारिक रूप से गिग, प्लेटफ़ॉर्म और असंगठित श्रमिकों को मान्यता देती है तथा केंद्र और राज्यों को उनके लिए समर्पित सामाजिक-सुरक्षा कोष स्थापित करने की सुविधा देती है। एग्रीगेटर्स को टर्नओवर का 1-2 प्रतिशत, भुगतान का अधिकतम 5 प्रतिशत, योगदान करने के लिए बाध्य किया जा सकता है, जो गिग और प्लेटफ़ॉर्म श्रमिकों के लाभों के वित्तपोषण का एक व्यावहारिक तरीका है। आधार-आधारित पंजीकरण पहले ही अधिसूचित किया जा चुका है और ई-श्रम पोर्टल में 31 करोड़ से अधिक श्रमिक नामांकित हैं। प्रत्येक श्रमिक को एक सार्वभौमिक खाता संख्या (यूनिवर्सल अकाउंट नंबर, यूएएन) दी गयी है, जिसके जरिये स्वास्थ्य बीमा, मातृत्व सहायता, या वृद्धावस्था पेंशन जैसे लाभों को नये कार्य-स्थल में स्थानांतरित किया जा सकता है, चाहे वे कहीं भी काम करते हों। ई-श्रम रजिस्ट्री, वास्तव में, अनौपचारिक श्रमिकों के संदर्भ में भारत का पहला राष्ट्रीय डेटाबेस है— जो समावेशी विकास और आपदा सहनीयता की दिशा में एक आवश्यक कदम है। व्यवसाय सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य परिस्थितियाँ संहिता भी उतनी ही परिवर्तनकारी है, जो सुरक्षा मानदंडों को एकीकृत करती है और विशेष रूप से, महिलाओं को सहमति और सुरक्षा उपायों के साथ रात्रि पाली में काम करने की अनुमति देती है। यह प्रगतिशील उपाय महिलाओं के लिए अवसरों का विस्तार करता है, जबकि सुरक्षा को अनिवार्य बनाए रखता है। ओएसएच संहिता लाइसेंस और निरीक्षण प्रणालियों को भी युक्तिसंगत बनाती है, जो दंड के बजाय रोकथाम की संस्कृति को बढ़ावा देने के क्रम में जोखिम-आधारित, प्रौद्योगिकी-सक्षम अनुपालन की ओर अग्रसर है। इसी तरह, वेतन संहिता सभी क्षेत्रों में न्यूनतम वेतन और समय पर भुगतान व्यवस्था को सार्वभौमिक बनाती है, चाहे उनका क्षेत्र या कौशल स्तर कुछ भी हो। औद्योगिक संबंध संहिता, विवाद समाधान तंत्र को मजबूत करने और सामाजिक संवाद को बढ़ावा देने का प्रयास करती है। विवाद बढ़ने से पहले बातचीत, सुलह और मध्यस्थता को प्रोत्साहित करके, यह संहिता एक अधिक स्थिर औद्योगिक संबंध वातावरण का निर्माण करती है। इसके अतिरिक्त, ट्रेड यूनियन मान्यता और बड़े उद्यमों के लिए स्थायी आदेशों से संबंधित सरलीकृत नियम; नियोक्ता-कर्मचारी संबंधों में पारदर्शिता और पूर्वानुमान में सुधार को ध्यान में रखते हुए डिज़ाइन किए गए हैं। उद्यमों, विशेष रूप से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) के लिए, श्रम संहिताओं का अर्थ है सरल अनुपालन: मानकीकृत परिभाषाएँ, कम रजिस्टर, डिजिटल रूप से दाखिल करना और बहुत कम अस्पष्टता। भारत का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) प्रवाह वित्त वर्ष 2021-22 में 83.6 बिलियन डॉलर रहा था और वित्त वर्ष 2024-25 में यह 81 बिलियन डॉलर के साथ मजबूत स्थिति में है। इस अवधि में, भारत सरकार ने कई महत्वपूर्ण सुधार लागू किए, जिनमें श्रम सुधारों का अधिनियमन भी शामिल है। वित्त वर्ष 2021-22 में पूंजीगत व्यय के लिए लगभग 13 लाख करोड़ रुपये से अधिक का उच्चतम आवंटन हुआ। इसके अलावा, संस्थागत नीति, डिजिटल सुधारों, देश में व्यापार करने में आसानी को बढ़ावा देने और भारत को एक आकर्षक निवेश गंतव्य स्थल बनाने के माध्यम से अनुपालन बोझ को कम करने के लिए कई महत्वपूर्ण सुधार किए गए। इसी अवधि में विनिर्माण क्षेत्र में सुधार तथा सेमीकंडक्टर उद्योग, कोयला क्षेत्र, ऊर्जा और खनिज क्षेत्र को मजबूत करने से वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बाजार में देश की स्थिति को और मजबूत करने में योगदान मिला। फिर भी, कानून पारित करना केवल आधी यात्रा है। श्रम समवर्ती सूची का विषय है, जिसका अर्थ है कि केंद्र और राज्य दोनों को कार्यान्वयन के लिए नियम बनाने और अधिसूचित करने होंगे। हालाँकि अधिकांश राज्यों ने चारों संहिताओं के अंतर्गत नियमों का मसौदा तैयार कर लिया है, लेकिन अंतिम अधिसूचना जारी करने की गति असमान बनी हुई है। “एक राष्ट्र, एक श्रम कानून व्यवस्था” के विज़न को साकार करने के लिए, यह आवश्यक है कि केंद्र और सभी राज्य कार्यान्वयन की दिशा में तेज़ी से आगे बढ़ें।

इस बदलाव को प्रभावी बनाने के लिए, कुछ प्राथमिकताएँ उभर कर सामने आती हैं-

पहला, असंगठित श्रमिकों के कवरेज को क्रियान्वित करना। एग्रीगेटर्स के लिए अंशदान दरों की सूचना देना, पारदर्शी नामांकन और लाभ-वितरण प्रणालियाँ स्थापित करना तथा जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए सार्वजनिक डैशबोर्ड बनाना। प्लेटफ़ॉर्म श्रमिकों के लिए सिंगापुर के केंद्रीय भविष्य निधि (सीपीएफ) जैसे अंतर्राष्ट्रीय मॉडल, मूल्यवान जानकारी प्रदान कर सकते हैं। दूसरा, डिजिटल अवसंरचना को वास्तविक पात्रता में बदलना। ई-श्रम, ईपीएफओ और ईएसआईसी डेटाबेस को लिंक करना, ताकि श्रमिक जहाँ भी जाएँ, लाभ उनके साथ चलें। आधार का उपयोग दूसरी जगह ले जाने की सुविधा (पोर्टेबिलिटी) के लिए किया जाना चाहिए, न कि बहिष्करण के लिए। तीसरा, जागरूकता और क्षमता का निर्माण। एमएसएमई को संहिताओं को समझने के लिए हेल्प-डेस्क और सरलीकृत मार्गदर्शिकाओं की आवश्यकता है; श्रमिकों को बहुभाषी हेल्पलाइन और ज़मीनी सहायता की जरूरत होती है। सरकार, उद्योग निकायों और यूनियनों के संयुक्त प्रयास यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि कागज़ पर लिखे अधिकार, लाभ-प्राप्ति में परिवर्तित होंगे। मूलतः, यह सुधार इस विश्वास पर आधारित है कि काम सुरक्षित होगा और उचित भुगतान किया जाएगा; सामाजिक सुरक्षा श्रमिक के साथ बनी रहेगी और अनुपालन इतना सरल होगा कि सभी इसमें भाग ले सकेंगे। इस संरचना के निर्माण के लिए सरकार प्रशंसा की पात्र है। यदि हम इन्हें गति, पारदर्शिता और सहयोग के साथ कार्यान्वयन करते हैं, तो ये संहिताएँ भारत के अगले विकास अध्याय का आधार बन सकती हैं – व्यवसायों के लिए प्रतिस्पर्धा, श्रमिकों के लिए सम्मानजनक कार्य और निवेशकों के लिए पूर्वानुमानित व्यावसायिक वातावरण। यही विकसित भारत का सार है – समावेश के साथ विकास और समृद्धि, जो प्रत्येक श्रमिक तक पहुँचती हो।

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