सतत पर्यटन, साझा समृद्धि

चंडीगढ़ (ब्यूरो) :- पर्यटन केवल यात्रा करना नहीं है, यह लोगों को जोड़ने वाला पुल है, रोज़गार का साधन है और हमारी संस्कृति को दुनिया तक पहुंचाने का माध्यम है। पर्यटन और सतत परिवर्तन को समर्पित इस विश्व पर्यटन दिवस पर, यह समझना जरूरी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्णायक नेतृत्व में भारत की पर्यटन यात्रा को कैसे नया रूप दिया गया है। जो पहले कभी मौसमी और बिखरा हुआ क्षेत्र था, वह आज योजनाबद्ध, समावेशी और सतत राष्ट्रीय विकास का प्रमुख साधन बन गया है। यह बदलाव केवल कल्पनाओं में नहीं, बल्कि लोगों की ज़िंदगी में दिखाई देता है। जून 2025 तक भारत आने वाले पर्यटकों की संख्या 16.5 लाख पहुंच गई, विदेश यात्रा करने वाले भारतीयों की संख्या 84.4 लाख रही और पर्यटन से विदेशी मुद्रा आय 51,532 करोड़ तक पहुंची। अकेले 2023-24 में ही इस क्षेत्र ने जीडीपी में 15.73 लाख करोड़ का योगदान दिया, जो अर्थव्यवस्था का पांच प्रतिशत से अधिक है और 8.4 करोड़ से ज़्यादा नौकरियों को सहारा दिया। इन आंकड़ों के पीछे कारीगरों को नए बाज़ार मिलना, परिवारों का होमस्टे शुरू करना, और गाइड, चालक व छोटे व्यवसायियों के लिए लगातार काम और मांग का अवसर जुड़ा हुआ है। इस प्रगति के केंद्र में प्रधानमंत्री का यह विश्वास है कि पर्यटन को राष्ट्रीय प्राथमिकता होना चाहिए, न कि कोई हाशिये की गतिविधि। नए हवाईअड्डों, आधुनिक रेल नेटवर्क, नवनिर्मित राजमार्गों और आंतरिक जलमार्गों से बुनियादी ढांचे और कनेक्टिविटी का विस्तार किया गया। उड़ान योजना ने हवाई यात्रा को छोटे शहरों की पहुंच में ला दिया। धरोहर स्थलों और तीर्थ यात्राओं के मार्गों तक बेहतर अंतिम कनेक्टिविटी ने उन लाखों लोगों के लिए यात्रा संभव कर दी, जो पहले दूरी या खर्च के कारण वंचित रह जाते थे। इस तरह पर्यटन अब केवल शहरी विलासिता न होकर संतुलित क्षेत्रीय विकास का साधन बन गया है। गंतव्य (डेस्टिनेशन) विकास भी इसी दृष्टि से आगे बढ़ाया गया है। स्वदेश दर्शन 2.0 और प्रसाद जैसे कार्यक्रम स्थिरता और सांस्कृतिक अखंडता को अपने केंद्र में रखते हैं। डेस्टिनेशन मैनेजमेंट ऑर्गनाइजेशन की शुरुआत ने सरकार, निजी क्षेत्र और स्थानीय समुदायों को एक साथ जोड़ा है, ताकि संसाधनों का समझदारी से उपयोग हो और लाभ सब तक समान रूप से पहुंचे। प्रधानमंत्री ने यह भी नया दृष्टिकोण दिया है कि भारत दुनिया के सामने खुद को कैसे प्रस्तुत करे। नए रूप में अतुल्य भारत पोर्टल, वैश्विक यात्रा प्लेटफॉर्म्स के साथ साझेदारी और डिजिटल स्टोरीटेलिंग के नए तरीके ने सबसे छोटे संचालकों, ग्रामीण मेजबानों, होमस्टे चलाने वाले परिवार, सांस्कृतिक उद्यमियों को भी वैश्विक दर्शकों तक पहुंचने का अवसर दिया है। तकनीक अब केवल प्रचार का साधन ही नहीं रही, बल्कि डेटा-आधारित प्रबंधन के ज़रिए संवेदनशील स्थलों की सुरक्षा का माध्यम भी बन गई है। हालांकि, इस बदलाव की सबसे बड़ी विशेषता स्थिरता है। प्रधानमंत्री ने अपने व्यापक लाइफ आंदोलन(लाइफस्टाइल फॉर एंवायरमेंट) को आगे बढ़ाते हुए ट्रैवल फॉर लाइफ की शुरुआत की, जिसमें पर्यटन को भी पर्यावरण संरक्षण से जोड़ा गया। कम प्रभाव वाले ग्रामीण अनुभवों से लेकर पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बुनियादी ढांचे और ज़िम्मेदार तीर्थ प्रबंधन तक, पूरा ज़ोर इस बात पर है कि यात्रा प्रकृति को संवारने वाली हो, न कि उसे नुकसान पहुँचाने वाली। भारत की जी20 अध्यक्षता के तहत, वैश्विक पर्यटन को सतत विकास लक्ष्यों के साथ जोड़ने के लिए ‘गोवा रोडमैप’ को आगे बढ़ाया गया, जिसमें हरित विकास, कौशल विकास, डिजिटलीकरण और सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यमों के समर्थन को वैश्विक चर्चा के केंद्र में रखा गया। ज़्यादा यात्रियों का मतलब है ज़्यादा भरे हुए होटल, स्थानीय सेवाओं की बढ़ती माँग और कारीगरों व उद्यमियों के लिए नए अवसर। जैसा कि प्रधानमंत्री मोदी ने ज़ोर दिया है, सामर्थ्य केवल एक आर्थिक साधन नहीं, बल्कि एक लोकतांत्रिक सिद्धांत है, राजकोषीय सुधारों ने भी इन संरचनात्मक बदलावों को और मज़बूती दी है। हाल का सबसे अहम कदम रहा 1,000 से 7,500 रुपये तक के होटल कमरों पर जीएसटी घटाकर 5% करना। यह सोच-समझकर उठाया गया कदम था ताकि मध्यम वर्ग के यात्री प्रोत्साहित हों, जिनकी तीर्थ यात्राएं, वीकेंड ट्रिप और ग्रामीण प्रवास पर्यटन क्षेत्र को बड़ा सहारा देते हैं। हालांकि, इनपुट टैक्स क्रेडिट वापस लेने पर बहस जारी है, लेकिन इसका व्यापक असर स्पष्ट है। किफ़ायती दामों ने अधिक लोगों के लिए पर्यटन का रास्ता खोला है। अधिक यात्री मतलब भरे हुए होटल, स्थानीय सेवाओं की ज़्यादा मांग और कारीगरों व उद्यमियों के लिए नए अवसर। जैसा प्रधानमंत्री मोदी ने ज़ोर देकर कहा है, किफ़ायत सिर्फ़ आर्थिक उपाय नहीं बल्कि एक लोकतांत्रिक सिद्धांत है, जो यात्रा को कुछ लोगों के विशेषाधिकार के बजाय बहुतों का अधिकार बनाता है। फिर भी, प्रधानमंत्री लगातार यह याद दिलाते रहे हैं कि केवल नीतियां ही काफी नहीं हैं। असली बदलाव के लिए समुदाय का सहयोग जरूरी है। इसीलिए कार्यक्रम स्थानीय युवाओं को गाइड के रूप में प्रशिक्षित करते हैं, पर्यावरण-अनुकूल आतिथ्य को प्रोत्साहित करते हैं, कारीगरों को व्यापक बाज़ारों तक पहुंचने में मदद करते हैं और तीर्थयात्रा मार्गों की पवित्रता की रक्षा करते हैं। इस दृष्टि में पर्यटन ऊपर से थोपा नहीं जाता, बल्कि उन्हीं लोगों के साथ मिलकर गढ़ा जाता है, जिनकी ज़िंदगी पर इसका सबसे गहरा असर पड़ता है। चुनौतियां अभी भी मौजूद हैं। ढांचे की कमियां, जलवायु परिवर्तन की संवेदनशीलताएं, और आधुनिक यात्रियों की बढ़ती अपेक्षाएं, लेकिन आज भारत के पास इनसे निपटने के साधन हैं। मोदी जी के नेतृत्व में हमने ऐसी संस्थाएं, वित्तीय मॉडल और शासन व्यवस्था तैयार की हैं जो इन चुनौतियों का सामना कर सकें। आगे बढ़ते हुए, तीन प्राथमिकताएं हमें मार्गदर्शन देंगी। हमें स्थिरता को और गहरा करना होगा, यह सुनिश्चित करते हुए कि विकास हमेशा पर्यावरणीय लाभ भी दे। हमें लाभों को लोकतांत्रिक बनाना होगा, यानी स्थानीय नौकरियां पैदा करने वाले एमएसएमई और मध्यम स्तर के उद्यमों में निवेश करना होगा। और हमें शासन और डेटा को मजबूत करना होगा ताकि संसाधनों का समझदारी से प्रबंधन हो और संपत्तियों की रक्षा हो सके। भारत का अनुभव यह साबित करता है कि जब सुसंगत नीति, राजकोषीय विवेक और समुदाय की भागीदारी दूरदर्शी नेतृत्व के तहत एक साथ आती है, तो असली बदलाव संभव होता है। इस विश्व पर्यटन दिवस पर, आइए हम यह संकल्प लें कि जिम्मेदारी के साथ यात्रा करेंगे, स्थानीय रोज़गार का समर्थन करेंगे और हर यात्रा कार्यक्रम में विकसित भारत के वादे को जीवंत रखेंगे। सही ढंग से पोषित पर्यटन न केवल हमारी अर्थव्यवस्था का स्तंभ बनेगा, बल्कि भारत की सभ्यतागत लोक व्यवहार यानी खुला, सहनशील और आतिथ्यपूर्ण का जीवित प्रमाण भी बनेगा। आगे का रास्ता लंबा है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में हमने वाहन तैयार कर लिया है। अब हमें इसे सावधानी, साहस और साझा उद्देश्य की भावना के साथ चलाना होगा।

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