मोदी का शासन: गुजरात मॉडल से भारतीय मॉडल तक

चंडीगढ़ (ब्यूरो) :- लंबे समय तक भारत के प्रधानमंत्री का दायित्व संभालने वाले बहुत ही कम नेताओं ने किसी राज्य में मुख्यमंत्री का दायित्व भी संभाला है। देश के ज्यादातर प्रधानमंत्री ‘राष्ट्रीय’ स्तर के नेता रहे हैं और उनके पास संघीय स्तर पर काम करने का अनुभव बहुत ही कम रहा है। लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इसके चंद अपवादों में से एक हैं। जब नरेन्द्र मोदी 2014 में प्रधानमंत्री बने, तो वे अपने साथ गुजरात में एक दशक के राज्य-स्तरीय शासन से विकसित हुए कामकाज के एक नए दर्शन को लेकर आए। मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने इस बात को बारीकी से देखा कि योजनाएं अंतिम छोर पर क्यों विफल या सफल होती हैं और फिर एक ऐसे दृष्टिकोण को परिष्कृत किया जिसने उन्हें शासन के केन्द्र में महज नीति-निर्माण के बजाय क्रियान्वयन को रखने वाला पहला प्रधानमंत्री बनाया। बिजली से लेकर बैंकिंग और कल्याण से लेकर बुनियादी ढांचे के मामले में, इस दर्शन ने तब से आज तक भारतीय राज्य द्वारा अपने नागरिकों की सेवा करने के तरीके को नए सिरे से परिभाषित किया है।

अनुभव के आधार पर विकसित क्रियान्वयन

नीतिगत केन्द्रबिंदु के रूप में क्रियान्वयन में श्री नरेन्द्र मोदी के दृढ़ विश्वास को, बिजली क्षेत्र से संबंधित उनके दृष्टिकोण में देखा जा सकता है। गुजरात में, उन्होंने देखा कि गांवों में खंभे और लाइनें तो हैं, लेकिन वास्तव में बिजली नदारद है। इसका समाधान उन्होंने ज्योतिग्राम योजना के रूप में निकाला, जिसके तहत फीडरों को अलग किया गया ताकि घरों को 24 घंटे बिजली मिल सके और खेतों को बिजली का एक निश्चित हिस्सा मिल सके। प्रधानमंत्री के रूप में, उन्होंने दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना के जरिए इस सिद्धांत को आगे बढ़ाया। इस योजना के जरिए 18,374 गांवों को भरोसेमंद तरीके से बिजली उपलब्ध कराई गई। वर्ष 2023 तक आते – आते, बिजली की यही आपूर्ति सामूहिक रूप से 11 करोड़ से अधिक लोगों को रोजगार देने और भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में लगभग 29 प्रतिशत का योगदान करने वाले देश के सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) की रीढ़ बन गई। बैंकिंग क्षेत्र में भी इसी सिद्धांत को फिर से दोहराया गया। कागजों में तो ग्रामीण परिवारों के बैंक में खाते थे, लेकिन व्यवहार में वे निष्क्रिय थे। जन-धन ने इस स्थिति को बदल दिया। आधार और मोबाइल फोन को व्यक्तिगत बैंक खातों से जोड़कर, एक कमजोर पड़ी व्यवस्था को सीधे धन हस्तांतरण की बुनियाद बना दिया गया। इससे धन बिना किसी बिचौलिए के नागरिकों के हाथों में पहुंचा, बर्बादी पर लगाम लगी और सरकारी खजाने को भारी रकम की बचत हुई। इसके बाद आवास क्षेत्र की बारी आई। प्रधानमंत्री आवास योजना ने भुगतान को निर्माण कार्यों से जोड़ा, उनकी निगरानी के लिए जियो-टैगिंग का इस्तेमाल किया और बेहतर डिजाइन पर जोर दिया। पिछली सरकारों के अधूरे घरों के उद्घाटन के चलन को पलटते हुए, पहली बार लाभार्थियों को पूरी तरह निर्मित और रहने लायक घर मिले।

फोर्स मल्टीप्लायर के रूप में संघीय प्रणाली

गुजरात ने नरेन्द्र मोदी को यह भी दिखाया कि प्रगति किस प्रकार केन्द्र और राज्य के बीच समन्वय पर निर्भर करती है। राष्ट्रीय स्तर पर, यह सहकारी एवं प्रतिस्पर्धी संघवाद का दर्शन बन गया। दशकों से अटके पड़े वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को राज्यों के साथ आम सहमति बनाकर पारित किया गया। जीएसटी परिषद ने राजकोषीय संवाद को संस्थागत रूप दिया और एक एकीकृत राष्ट्रीय बाजार का निर्माण किया। इसके अलावा, उन्होंने राज्यों को हस्तांतरित किए जाने वाले केन्द्रीय करों का हिस्सा बढ़ाया। इससे राज्यों को अपनी प्राथमिकताएं तय करने में ज्यादा वित्तीय गुंजाइश एवं स्वायत्तता मिली। साथ ही, उन्होंने व्यापार में सुगमता के आधार पर राज्यों की रैंकिंग करके और सुधारों को पुरस्कृत करके प्रतिस्पर्धी संघवाद को बढ़ावा दिया। इन बदलावों ने राज्यों को न सिर्फ धन प्राप्त करने वाले के रूप में, बल्कि भारत की विकास गाथा में हितधारक के रूप में भी कार्य करने के लिए प्रोत्साहित किया। बुनियादी ढांचे के मामले में, गुजरात के बीआईएसएजी मानचित्रण से संबंधित प्रयोगों को पीएम गति शक्ति के रूप में विस्तारित किया गया, जहां 16 मंत्रालय और सभी राज्य अब एक ही डिजिटल प्लेटफॉर्म पर 1,400 परियोजनाओं की योजना बना रहे हैं। इससे अनुमोदन में लगने वाले समय में कमी आ रही है और क्रियान्वयन में सामंजस्य स्थापित हो रहा है।

उत्पादकता के रूप में कल्याण

नरेन्द्र मोदी के लिए, कल्याणकारी योजनाएं हमेशा उत्पादकता से जुड़ा निवेश रही हैं जिनका उद्देश्य इनके लाभार्थियों को सशक्त बनाना है। गुजरात के कन्या केलवणी नामांकन अभियान ने महिला साक्षरता को 2001 के 57.8 प्रतिशत से बढ़ाकर 2011 तक 70.7 प्रतिशत कर दिया। राष्ट्रीय स्तर पर, इसे बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ कार्यक्रम में परिवर्तित किया गया। इस कार्यक्रम का संबंध बाल लिंगानुपात में सुधार से है, जो 2014 के 918 से बढ़कर 2023 तक 934 हो गया। लड़कियों के स्कूल जाने से उनकी शादी देर से होती है, उनके स्वास्थ्य में सुधार होता है और दीर्घकालिक उत्पादकता बढ़ती है। इससे वे वेतनभोगी कार्यबल में प्रवेश कर सकी हैं और इस प्रकार राष्ट्र निर्माण में अधिक प्रभावी ढंग से भाग ले रही हैं। मातृ स्वास्थ्य का भी उतना ही ध्यान रखा गया। गुजरात की चिरंजीवी योजना ने संस्थागत प्रसवों पर सब्सिडी दी, जिससे मृत्यु दर में कमी आई। केन्द्रीय स्तर पर, प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना ने मातृत्व लाभ और पोषण को जोड़ा। इससे तीन करोड़ से अधिक महिलाओं को सहायता मिली। इसका मार्गदर्शक विचार एक ही था: सामाजिक व्यय से निर्बलता में कमी आनी चाहिए, विकल्प बढ़ने चाहिए और भावी कार्यबल की क्षमता बढ़नी चाहिए।

निवेशकों और नागरिकों का विश्वास

शायद, गुजरात मॉडल का सबसे सूक्ष्म प्रभाव मानसिकता में बदलाव है। वाइब्रेंट गुजरात शिखर सम्मेलनों ने दिखाया कि कैसे निरंतर जुड़ाव धारणाओं को बदल सकता है, एक राज्य को निवेशकों की नजर में एक विश्वसनीय निवेश गंतव्य बना सकता है और नौकरशाहों को व्यवसाय के अनुकूल बना सकता है। इसी अनुभव ने ‘मेक इन इंडिया’ को आकार दिया, जिसने सुव्यवस्थित मंजूरियों, भूमि गलियारों और बुनियादी ढांचे की तैयारी के जरिए विश्वसनीयता को प्राथमिकता दी। वर्ष 2014 और 2024 के बीच, भारत ने 83 लाख करोड़ रुपए का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) आकर्षित किया, जो इसकी कार्यान्वयन क्षमता और दीर्घकालिक विश्वसनीयता में भरोसे का संकेत देता है। नागरिकों के स्तर पर भी उम्मीदें बदल गईं। पहले, योजनाओं का मूल्यांकन घोषणाओं से होता था। आज, आम भारतीय यह मानकर चलते हैं कि सरकार द्वारा समर्थित बिजली, शौचालय, बैंक खाते, सब्सिडी वाली गैस जैसी आवश्यक वस्तुएं वास्तव में उन तक पहुंचेंगी। इस तरह की चुपचाप की गई सेवाओं की आपूर्ति और सुविधाओं के सामान्यीकरण ने एक ऐसी राजनीतिक संस्कृति का निर्माण किया है जहां वादों को उनके क्रियान्वयन से मापा जाता है, न कि उनके इरादों से। कई मायनों में, यह बढ़ी हुई उम्मीद गुजरात मॉडल की सबसे ठोस विरासत है।

विकसित भारत 2047 की ओर

‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास’ महज एक नारा भर नहीं है। इसकी छाप रोजमर्रा की जिंदगी में साफ दिखाई देती है: बिजली अब लक्जरी नहीं रही, कल्याण सीधे तौर पर उपलब्ध हो रहा है, बुनियादी ढांचे से जुड़ी योजनाएं डिजिटल समन्वय से बनाईं जा रही हैं, स्वास्थ्य और शिक्षा दिखावे के बजाय मापने योग्य नतीजों की दृष्टि से डिजाइन की गई है। यह अब एक ऐसा भारतीय मॉडल है जिसने शासन को अंतिम छोर तक पहुंचाया है और देश के कोने – कोने में जनजीवन को प्रभावित किया है। जब भारत 2047 तक विकसित भारत बनने का अपना लक्ष्य हासिल करेगा, तो ऐसा इसलिए संभव हो सकेगा क्योंकि एक प्रधानमंत्री ने शासन को ही नए सिरे से परिभाषित किया है। क्रियान्वयन को प्रशासन की कसौटी बनाकर, उन्होंने भारत की विशाल मशीनरी को वादों से हटाकर काम करने वाली मशीनरी में बदल दिया है। यही छाप, जिसका परीक्षण पहले गुजरात में हुआ और जो फिर पूरे देश में फैला, श्री नरेन्द्र मोदी की निर्णायक विरासत है।

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