ज़िंदगी कभी भी एक औरत के लिए आसान नहीं होती। मैं ऐसा इसलिए कह रही हूँ क्योंकि मैं खुद एक औरत हूँ और औरत के दिल को, उसकी जद्दोजहद को, उसके सपनों और उसकी खामोशियों को बहुत करीब से महसूस कर सकती हूँ।मैं हमेशा मानती आई हूँ कि हर सफ़र आसान नहीं होता, लेकिन जब हम उस सफ़र पर चलते हैं, तो वह हमें एक खूबसूरत मंज़िल तक ज़रूर ले जाता है। इस रास्ते पर चलने के लिए सिर्फ हिम्मत नहीं, बल्कि साथ भी चाहिए होता है — ऐसा साथ जो ताकत बन जाए।एक औरत को सिर्फ दूसरों की नहीं, बल्कि खुद की भी देखभाल करने का हक है। उसका खुद से प्यार करना ज़रूरी है। आज मैं जो कुछ भी हूँ, उसमें मेरे जीवनसाथी और परिवार का बड़ा योगदान है। उनका साथ, उनका विश्वास और उनका प्यार ही मेरी असली ताकत हैं।



मैं एक शिक्षक हूँ, एक धावक (Runner), एक साइक्लिस्ट, एक पर्यावरण प्रेमी (Environmentalist) और इवेंट आयोजक भी। यही नहीं, ‘Being Human Jalandhar’ नामक एक लोकल ग्रुप की संस्थापक भी हूँ — और यह सब मुमकिन हो पाया है सिर्फ इसलिए क्योंकि मुझे अपने परिवार का पूर्ण सहयोग मिला।



समर्थन का यही हाथ किसी भी महिला को पंख दे सकता है। जब एक औरत उड़ान भरती है, तो वह सिर्फ खुद को नहीं, बल्कि अपने साथ कई औरों को भी ऊपर उठाती है। उसकी उड़ान दूसरों के लिए प्रेरणा बन जाती है। आज समय आ गया है कि हम औरतों से सिर्फ त्याग की उम्मीद न रखें, बल्कि उनके सपनों को भी उतनी ही जगह दें जितनी हम अपने लिए चाहते हैं। हमें यह सवाल पूछना चाहिए — “तुम क्या चाहती हो?” और फिर दिल से सुनना भी चाहिए। क्योंकि जब एक स्त्री को समझा जाता है, सहारा दिया जाता है और आत्मनिर्भर बनने का अवसर मिलता है, तो वह न सिर्फ अपने लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए एक मिसाल बन जाती है।

आज के समय में जब समाज तरक्की की ओर बढ़ रहा है, तब भी एक पहलू ऐसा है जिस पर हम सभी को गंभीरता से सोचने की आवश्यकता है — और वह है स्त्रियों को सहारा देना, चाहे वह कामकाजी महिला हो या गृहिणी।अक्सर देखा जाता है कि एक महिला से यह उम्मीद की जाती है कि वह हर भूमिका को बिना किसी शिकायत के निभाए — बच्चों की देखभाल, नौकरी, रिश्तेदारों का ध्यान, परिवार की हर जरूरत को पूरा करना। लेकिन क्या कभी हमने यह सोचा कि वह भी एक इंसान है? क्या उसे कभी थकान नहीं होती? क्या उसे कभी अपने लिए समय नहीं चाहिए?समाज ने एक ऐसी सोच बना ली है कि महिलाओं का त्याग ही उनका स्वभाव है। पर क्या यह उचित है? एक पुरुष को यदि आराम चाहिए, तो वह बिना झिझक कह सकता है, पर एक महिला के लिए यह बोलना कि “मैं थक गई हूँ, मुझे थोड़ी देर अकेला रहना है”— यह एक विलासिता बन गई है।
कई महिलाएं आज भी अपने सपनों को दबाकर सिर्फ दूसरों के लिए जी रही हैं। हम सबको यह सोच बदलनी होगी। हमें यह पूछना होगा — “तुम क्या चाहती हो?”, “तुम्हारे अपने सपने क्या हैं?”।एक स्त्री को सिर्फ काम करने वाली मशीन न समझें, बल्कि एक संवेदनशील आत्मा के रूप में देखें जो भीतरी रूप से भी अपने सपनों को पूरा करना चाहती है। हमारा दायित्व है कि हम उसे सिर्फ जिम्मेदारियों का बोझ न दें, बल्कि उसके लिए एक सहारा बनें, उसकी भावनाओं को समझें, और उसके आत्म-सम्मान को पहचानें।आज की नारी सशक्त है, लेकिन उसे उस शक्ति को उड़ान देने के लिए समाज के साथ की ज़रूरत है। आइए, एक ऐसी सोच विकसित करें जहाँ हम नारी से अपेक्षाएं रखने से पहले उसे समझें, उसका साथ दें और उसके सपनों को भी उतना ही महत्व दें जितना हम अपने सपनों को देते हैं।क्योंकि सशक्त समाज की नींव तभी रखी जा सकती है जब स्त्री को भी सहारा, सम्मान और स्वतंत्रता दी जाए — हर मोड़ पर, हर रिश्ते में।
जालंधर (अरोड़ा)