एपीजे कॉलेज ऑफ़ फाइन आर्ट्स जालंधर की स्वर्ण जयंती एवं छठे राजेश्वरी कला-महोत्सव के समापन समारोह में आर्टिस्ट एवं क्लासिकल एवं सैमी क्लासिकल गायक सम्मानित

जालंधर (अरोड़ा) :- राजेश्वरी कलासंगम,एपीजे कॉलेज ऑफ़ फाइन आर्ट्स जालंधर की स्वर्ण जयंती एवं छठे राजेश्वरी कला-महोत्सव के अवसर पर 11 विभिन्न कलारूपों पर चल रही वर्कशॉप्स में 10 वर्ष की उम्र से लेकर किसी भी उम्र के 250 के करीब विद्यार्थियों ने विभिन्न कला रूपों की बारीकियों को गहराई से समझा। स्वर्ण-जयंती के समापन-समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में इनटच (The Indian National Trust for Art, Culture and heritage) के अध्यक्ष रिटायर्ड मेजर
जनरल बलविंदर सिंह उपस्थित हुए। एपीजे एजुकेशन की निदेशक डॉ सुचरिता शर्मा एवं एपीजे कॉलेज ऑफ फाइन आर्ट्स जालंधर की प्राचार्य डॉ नीरजा ढींगरा ने उन्हें सुगंधित पुष्पगुच्छ देकर उनका अभिनंदन किया प्राचार्य डॉक्टर नीरजा ढींगरा ने समापन-समारोह में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि स्वर्ण-जयंती और राजेश्वरी कला-महोत्सव की सफलता का पूर्ण श्रेय मैं डॉ‌ सुचरिता शर्मा को देना चाहती हूं जिनकी दिन-रात की मेहनत,दृढ़ संकल्प शक्ति एवं आदर्शवादी सोच के कारण
इस समारोह ने सफलता की बुलंदियों को छुआ है। उन्होंने कहा राजेश्वरी कला-महोत्सव की सफलता के कारण ही एपीजे एजुकेशन,एपीजे सत्या एंड स्वर्ण ग्रुप की अध्यक्ष तथा एपीजे सत्या यूनिवर्सिटी की चांसलर सुषमा पॉल बर्लिया ने घोषित किया कि हम प्रतिवर्ष राजेश्वरी कला-महोत्सव का आयोजन किया करेंगे, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों में अंतर्राय स्तर पर ख्याति
प्राप्त कलाकारों को आमंत्रित किया जाएगा ताकि हमारे विद्यार्थी उनसे दिशा-निर्देश लेते हुए कला के क्षेत्र में अग्रणी हो सके।

इन वर्कशॉप्स में पद्म श्री सम्मान से सम्मानित अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित विजय शर्मा ने विद्यार्थियों को पहाड़ी मिनिएचर पेंटिंग की तकनीक से परिचित करवाते हुए कहा कि इस कलारूप के द्वारा हम पहाड़ी क्षेत्र की सांस्कृतिक गतिविधियों एवं उत्सव को चित्रित करते हैं। राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित मनोज कुमार चौधरी ने विद्यार्थियों को मधुबनी पेंटिंग विधि की जानकारी देते हुए बताया कि यह हमारी पारंपरिक पेंटिंग का रूप है और इसका प्रयोग हम कैनवास के साथ-साथ फैब्रिक पर भी कर सकते हैं। प्रतिष्ठित गोंद आर्टिस्ट राजेंद्र कुमार श्याम ने विद्यार्थियों को गोंद आर्ट से परिचित करवाया और बताया कि कलारूप के इस माध्यम से हम लोक रीति-रिवाजों एवं प्रकृति की खूबसूरती को एक कहानी के जरिए भी व्यक्त कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि बदलते जमाने के साथ गोंड आर्ट में समसामयिक विषयों को भी आधार बनाया जा रहा है। उड़ीसा के जाने-माने कलाकार पूर्ण चंद्र घोष ने विद्यार्थियों को पारंपरिक एपलीक वर्क की जानकारी दी। वह पुरातन टेक्सटाइल कला को जीवंत रखने के लिए दिन-रात मेहनत कर रहे हैं। उन्होंने उड़ीसा की क्राफ्ट हेरिटेज की सुंदरता से भी विद्यार्थियों को परिचित करवाया। महाराष्ट्र के जाने-माने वरली पेंटिंग आर्टिस्ट अनिल चैत्या वंगद ने विद्यार्थियों को वरली पेंटिंग की जानकारी दी। 1200 वर्ष पुरानी कबीलाई कला को वे ज्योमेट्रीकल आकृतियों के माध्यम से गांव की जिंदगी,लोककला एवं माइथॉलजी को खूबसूरती से दिखाते हैं और इन सब रूपों से उन्होंने विद्यार्थियों को भी परिचित करवाया ताकि वरली आर्ट को भावी पीढ़ी को सौंप कर सुरक्षित रखा जा सके। कोलकाता से प्रतिभावान पॉटरी आर्टिस्ट सुमन पैकुआ भारत की समृद्ध सैरमिक परंपरा को जीवंत रखने के लिए प्रयत्नशील है। उन्होंने विद्यार्थियों को पारंपरिक एवं समसामयिक पॉटरी की तकनीक एवं सौंदर्य को समाहित करते हुए पॉटरी में नए डिजाइन बनाने की तकनीक विद्यार्थियों को सिखाई। गुजरात के कच्छ से श्री हीराभाई तेजसी भाई जो की खरड़ वीविंग की 18वीं पीढ़ी है उन्होंने खरड़ वीविंग की जानकारी विद्यार्थियों को दी और पारंपरिक वूलन कारपेट बनाने की तकनीक से परिचित कराया। उन्होंने विद्यार्थियों को बताया कि खरड़ वीविंग के डिजाइन और मोटिफ्स रेगिस्तान से प्रेरित होते हैं और उन्हें यह भी बताया कि खरड़ वीविंग में हम प्राकृतिक रंगों का धागा रंगने के लिए प्रयोग करते हैं। उड़ीसा से आए पटचित्र एवं पाल्म लीफ एनग्रेविंग कलाकार राणा चंद्र साहू जी पधारे जो की कपड़े एवं पाल्म लीफ दोनों में पटचित्र एनग्रेविंग के लिए दक्ष है। उन्होंने विद्यार्थियों को सिखाया कि कैसे हम पटचित्र के माध्यम से हम माथोलॉजिकल एवं धार्मिक कथाओं को व्यक्त कर सकते हैं। ‌‌

होशियारपुर से राज्य सम्मान से सम्मानित वुड इनले आर्टिस्ट शम्मी लाल वुड इनले की 250 वर्ष पुरानी परंपरा को होशियारपुर में जीवंत रखने का जी तोड़ प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने विद्यार्थियों को बताया वुड इनले में दक्षता हासिल करने के लिए धैर्य एवं सृजनात्मकता की ज़रूरत है। होशियारपुर से बहुत ही अनुभवी वुड कार्विंग में मास्टर क्राफ्टमैन बलबीर सिंह ने पंजाब की ऐतिहासिक वुड इनले एवं कार्विंग परंपरा को सुरक्षित रखने के लिए अनथक प्रयास कर रहे हैं। होशियारपुर की समृद्ध विरासत को उन्होंने विद्यार्थियों को बताते हुए कहा कि हम वुड इनले एवं क्राफ्ट्स में हम पारंपरिक डिजाइन्स के साथ-साथ नए डिजाइंस को भी साथ में समाहित कर सकते हैं। एपीजे कॉलेज की एलुमनाई आद्या ने विद्यार्थियों को पारंपरिक हाथ से की जाने वाली ब्लॉक प्रिंटिंग की तकनीक से परिचित कराया। आद्या ने विद्यार्थियों को बताया कि ब्लॉक प्रिंटिंग में हम पुरातन डिजाइन्स का आधार लेकर उसमें नए डिजाइंस की रचना भी कर सकते हैं। स्वर्ण जयंती के चौथे दिन इंडियन क्लासिकल एवं सैमी क्लासिकल गायन प्रतियोगिताएं भी करवाई गई जिसमें न केवल पंजाब के विभिन्न जिलों से विद्यार्थियों ने बड़े जोरों शोरों से भाग लिया बल्कि दूसरे राज्यों के विद्यार्थी भी इस प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए पहुंचे। तीन प्रतियोगिताओं में निर्णायकमंडल की भूमिका हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी शिमला के संगीत-विभाग के पूर्व डीन एवं अध्यक्ष प्रोफेसर सी.एल वर्मा, उस्ताद अमजद अली खान साहब के शिष्य प्रतिष्ठित सरोद वादक उस्ताद दानिश असलम एवं इंदौर घराने के प्रतिष्ठित गायक कंपोजर एवं संगीतकार डॉ अनादि मिश्रा उपस्थित हुए। पांच दिवसीय वर्कशॉप में मिनिएचर पेंटिंग में श्रेष्ठ प्रदर्शन करने के लिए जसकीरत कौर को प्रथम, गोंद आर्ट में गुरमहक कौर को द्वितीय, वुड इनले में आशी शर्मा को तृतीय एवं कशिका आनंद, कुमकुम कुमारी,रसगुण, यशिका, तरन्नुम, पूजा, प्रतिमा, मेघा को विशेष पुरस्कार देकर सम्मानित किया। इंडियन क्लासिकल म्यूजिक वोकल में पद्माकर कश्यप को 10000 रुपए नगरद राशि के साथ प्रथम, पलाश प्रिया दास को ₹5000 नगद राशि के साथ द्वितीय,सैमी क्लासिकल एवं सूफी गायकी में शिवम चौहान को 10000 रुपए देकर प्रथम, पलाश प्रिया दास को ₹5000 देकर द्वितीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इस अवसर पर डॉ अनादि मिश्रा की परफॉर्मेंस ने सभागार में बैठे श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। एपीजे एजुकेशन के अध्यक्ष डॉक्टर सुचारिता शर्मा ने राजेश्वरी कला महोत्सव के समापन पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि कोई भी कार्यक्रम कभी भी अकेले सफलता की मंजिल की तरफ नहीं बढ़ता, हमेशा सभी लोगों के साथ से ही हम आगे बढ़ते हैं। उन्होंने कहा कि डॉ नीरजा ढींगरा एवं सभी टीचर्स ने दिन रात एक करके मेरा सहयोग दिया है इसी कारण हम राजेश्वरी कला संगम,एपीजे कॉलेज ऑफ फाइन आर्ट्स की स्वर्ण जयंती एवं छठे राजेश्वरी कला-महोत्सव ने प्रत्येक स्तर पर सफलता के नए आयाम स्थापित किए हैं। सुषमा पॉल बर्लिया एवं डॉ नेहा बर्लिया ने स्वर्ण-जयंती कार्यक्रम का भव्य आयोजन करवाने के लिए एपीजे एजुकेशन की निदेशक डॉ सुचरिता शर्मा एवं एपीजे कॉलेज की प्राचार्य डॉ नीरजा ढींगरा एवं कॉलेज के सभी प्राध्यापकगण के प्रयासों की दिल खोलकर प्रशंसा की तथा कहां की किसी भी कार्यक्रम की सफलता का आधार एक दूसरे के साथ आगे बढ़ते हुए टीमवर्क होता है।

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