पतन से प्रगति तक: पीएम मोदी कैसे गढ़ रहे हैं नया शहरी भारत

चंडीगढ़ (ब्यूरो) :- रोम एक दिन में नहीं बना था, वैसे ही नया शहरी भारत भी एक दिन में नहीं बनेगा। लेकिन जब हम अपने शहरों से और अधिक की अपेक्षा करते हैं, तो हमें यह भी देखना चाहिए कि हम पहले ही कितनी दूरी तय कर चुके हैं? आजादी के दशकों बाद तक, भारत के शहर एक उपेक्षित विचार थे। नेहरू की सोवियत शैली की केंद्रीकृत सोच ने हमें शास्त्री भवन और उद्योग भवन जैसे कंक्रीट के विशाल भवन दिए, जो 1990 के दशक तक ही ढहने लगे थे और सेवा के बजाय नौकरशाही के स्मारक बनकर रह गए। 2010 के दशक तक दिल्ली की हालत बहुत खराब थी। सड़कों पर गड्ढे थे, सरकारी इमारतें पुरानी, बदरंग और टपकती छतों वाली थीं और एनसीआर की बाहरी सड़कों पर हमेशा जाम लगा रहता था। एक्सप्रेसवे बहुत कम थे, मेट्रो कुछ ही शहरों तक सीमित थी और बुनियादी ढांचा तेजी से टूट-फूट का शिकार हो रहा था। दुनिया का नेतृत्व करने का सपना देखने वाले देश की राजधानी उपेक्षा और बदहाल स्थिति का प्रतीक बन चुकी थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हालात को बदल दिया। उन्होंने शहरों को बोझ नहीं माना, बल्कि उन्हें विकास के इंजन और राष्ट्रीय गर्व का प्रतीक बनाया। यह बदलाव आज हर जगह दिखाई देता है। सेंट्रल विस्टा के पुनर्निर्माण ने कर्तव्य पथ को जनता की जगह बना दिया, नई संसद को भविष्य के अनुरूप संस्थान में बदल दिया और कर्तव्य भवन को सुचारु प्रशासनिक केंद्र बना दिया। जहां पहले जर्जर हालत थी, वहां अब महत्वाकांक्षा और आत्मविश्वास दिखता है। इस बदलाव का पैमाना आंकड़ों से समझा जा सकता है। 2004 से 2014 के बीच शहरी क्षेत्र में केंद्र सरकार का कुल निवेश लगभग ₹1.57 लाख करोड़ था। 2014 के बाद से यह 16 गुना बढ़कर लगभग ₹28.5 लाख करोड़ हो गया है। 2025–26 के बजट में ही आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय को ₹96,777 करोड़ दिए गए, जिसमें एक-तिहाई हिस्सा मेट्रो के लिए और एक-चौथाई आवास के लिए रखा गया। इतना बड़ा वित्तीय निवेश स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ और इससे अभूतपूर्व रूप से शहरी ढांचे का स्वरूप बदल रहा है। भारत की व्यापक आर्थिक और डिजिटल प्रगति ने इस रफ्तार को और तेज कर दिया है। आज हम लगभग 4.2 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के साथ दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं, जहां डिजिटल व्यवस्था रोजमर्रा की जिंदगी को चला रही है। यूपीआई ने अभी हाल ही में एक महीने में 20 अरब लेन-देन का आंकड़ा पार किया और हर महीने ₹24 लाख करोड़ से ज़्यादा के लेन-देन संभाल रहा है। अब 90 करोड़ से अधिक भारतीय इंटरनेट से जुड़े हुए हैं और 56 करोड़ जनधन खाते जैम त्रिमूर्ति (जनधन, आधार, मोबाइल) का आधार हैं, जिसके ज़रिये सब्सिडी सीधे और पारदर्शी रूप से दी जाती है। यह पैमाना, औपचारिकता और फिनटेक अपनाने का मॉडल पूरी तरह भारतीय है और इसका असर सबसे गहरा शहरी क्षेत्रों पर दिखाई देता है। मेट्रो क्रांति जमीन पर हुए बदलाव को सबसे अच्छी तरह दिखाती है। 2014 में भारत में सिर्फ़ 5 शहरों में लगभग 248 किलोमीटर मेट्रो लाइन चल रही थी। आज यह बढ़कर 23 से अधिक शहरों में 1,000 किलोमीटर से ज़्यादा हो गई है, जो हर दिन एक करोड़ से अधिक यात्रियों को ढोती है। पुणे, नागपुर, सूरत और आगरा जैसे शहरों में नए कॉरिडोर बन रहे हैं, जिससे सफ़र तेज़, सुरक्षित और प्रदूषण-रहित हो रहा है। यह सिर्फ़ लोहे और कंक्रीट का ढांचा नहीं है, बल्कि इसमें लोगों का समय बचना, हवा का साफ़ होना और नागरिकों को करोड़ों घंटे की अतिरिक्त उत्पादकता मिलना शामिल है। शहरी कनेक्टिविटी की तस्वीर पूरी तरह बदल गई है। एनसीआर के जाम से भरे इलाकों को नई बनी यूईआर-II (दिल्ली की तीसरी रिंग रोड) से राहत मिल रही है, जो एनएच-44, एनएच-9 और द्वारका एक्सप्रेसवे को जोड़कर पुराने जाम के बिंदुओं को आसान बना रही है। भारत की पहली क्षेत्रीय तेज़ यातायात प्रणाली—दिल्ली–मेरठ आरआरटीएस (नमो भारत)—पहले ही बड़े हिस्से पर चल रही है और पूरा संचालन जल्द ही शुरू होने वाला है, जिससे पूरा सफ़र एक घंटे से कम समय में तय होगा। ये तेज़ और एकीकृत परिवहन प्रणालियां नए भारत के लिए एक नई महानगरीय सोच को आकार दे रही हैं। एक्सप्रेसवे अब शहरों के बीच की आवाजाही का नया चेहरा बन रहे हैं। दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे, बेंगलुरु-मैसूरु एक्सप्रेसवे, दिल्ली- मेरठ एक्सेस-नियंत्रित कॉरिडोर और मुंबई कोस्टल रोड ने दूरी घटा दी है और बड़े वाहनों को शहर की गलियों से बाहर निकालकर हवा को साफ़ किया है। मुंबई में देश का सबसे लंबा समुद्री पुल अटल सेतु अब टापू जैसे शहर को मुख्य भूमि से सीधे जोड़ता है। मुंबई-अहमदाबाद हाई-स्पीड रेल, भारत की पहली बुलेट ट्रेन परियोजना, तेज़ी से आगे बढ़ रही है और पश्चिम भारत में विकास का नया केंद्र बनने जा रही है। समावेशन भी हमेशा प्राथमिकता में रहा है। पीएम स्वनिधि योजना ने 68 लाख से ज़्यादा रेहड़ी-पटरी वालों को बिना गारंटी वाला कर्ज़ और डिजिटल सुविधा दी है, जिससे छोटे उद्यमियों को रोज़गार फिर से खड़ा करने और औपचारिक अर्थव्यवस्था से जुड़ने का मौका मिला है। पीएम आवास योजना (शहरी) के तहत 120 लाख से अधिक मकानों की मंज़ूरी दी गई, जिनमें से लगभग 94 लाख पूरे हो चुके हैं। लाखों परिवार, जो पहले झुग्गियों में रहते थे, अब सुरक्षित पक्के घरों में रह रहे हैं। ये केवल आंकड़े नहीं, बल्कि बदली हुई ज़िंदगियां और नयी उम्मीदें हैं। ऊर्जा सुधार ने शहरी जीवन को और सुविधाजनक बनाया है। जहां पहले रसोई महंगे और अनिश्चित गैस सिलेंडर बुकिंग पर निर्भर थी, अब पाइप्ड नेचुरल गैस (पीएनजी) आम होती जा रही है, जो अधिक सुरक्षित, साफ़ और सुविधाजनक है। सिटी गैस डिस्ट्रीब्यूशन 2014 में सिर्फ़ 57 क्षेत्रों तक सीमित था, जो अब बढ़कर 300 से अधिक हो गया है। घरेलू पीएनजी कनेक्शन 25 लाख से बढ़कर 1.5 करोड़ से ऊपर पहुंच गए हैं, जबकि हज़ारों सीएनजी स्टेशन सार्वजनिक परिवहन को और स्वच्छ बना रहे हैं। अब लाखों शहरी घरों में नल घुमाकर ईंधन मिलना हकीकत बन चुका है। भारत ने अब दुनिया की मेज़बानी करने का आत्मविश्वास हासिल कर लिया है। भारत मंडपम ने सफलतापूर्वक जी 20 नेताओं का शिखर सम्मेलन आयोजित किया। यशोभूमि अब दुनिया के सबसे बड़े सम्मेलन परिसरों में शामिल है, जहां एक साथ हज़ारों प्रतिनिधियों का स्वागत किया जा सकता है। इंडिया एनर्जी वीक ने बेंगलुरु, गोवा और नई दिल्ली में दुनिया की ऊर्जा कंपनियों और विशेषज्ञों को आकर्षित किया, जिससे यह साबित हुआ कि हमारे शहर बड़े पैमाने पर और बेहतरीन ढंग से दुनिया की मेज़बानी कर सकते हैं। यह सब तब अकल्पनीय था जब हमारे नागरिक ढांचे की पहचान टूटे-फूटे हॉल और खस्ताहाल स्टेडियम हुआ करते थे। परिवहन का आधुनिकीकरण बड़े पैमाने और तेज़ी से हो रहा है। 2014 में जहां सिर्फ़ 74 हवाईअड्डे चालू थे, आज वह संख्या बढ़कर लगभग 160 हो गई है। यह संभव हुआ है उड़ान योजना और लगातार निवेश की वजह से। वंदे भारत ट्रेनें अब 140 से अधिक रूटों पर चल रही हैं, जिससे अलग-अलग क्षेत्रों में यात्रा का समय काफी घटा है। अमृत भारत स्टेशन योजना के तहत 1,300 से अधिक रेलवे स्टेशनों का नवीनीकरण किया जा रहा है, जिनमें से सौ से ज़्यादा का उद्घाटन हो चुका है। दिल्ली में विस्तारित टर्मिनल-1 ने आईजीआई हवाईअड्डे की क्षमता 10 करोड़ यात्रियों से अधिक कर दी है, जिससे हमारी राजधानी दुनिया के बड़े हवाई केंद्रों की सूची में शामिल हो गई है। समझदारी भरी कर नीति ने उपभोक्ताओं और विकास दोनों को सहारा दिया है। हाल ही में हुई जीएसटी सुधार के तहत ज़्यादातर वस्तुओं और सेवाओं को 5% और 18% की दरों में रखा गया है। ऊंचे टैक्स सिर्फ़ कुछ नशे और विलासिता की चीज़ों पर ही लगाए गए हैं। रोज़मर्रा की ज़रूरी चीज़ों से लेकर कई घरेलू सामानों पर टैक्स घटा है, छोटे कार और दोपहिया वाहन अब कम जीएसटी पर मिलते हैं। कई दवाइयां और मेडिकल उपकरण भी सस्ते हो गए हैं। शहरी परिवारों के लिए इसका मतलब हैकि महीने के खर्च कम होना, खपत बढ़ना और निवेश व रोज़गार का सकारात्मक चक्र चलना। मैंने लंबे समय तक एक राजनयिक के रूप में विदेशों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है और वहां मैंने देखा कि कैसे शहर किसी देश का चेहरा बन जाते हैं? वियना की रिंगस्ट्रासे, न्यूयॉर्क की ऊंची इमारतें या पेरिस की चौड़ी सड़कें- ये सब राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा का प्रतीक थीं। तब मुझे साफ़ समझ आया कि दुनिया की नज़रें सबसे पहले किसी देश के शहरों पर जाती हैं। यही विश्वास मेरे शहरी कार्य मंत्रालय के काम का आधार बना कि दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, अहमदाबाद और हमारे दूसरे शहर एक उभरते भारत का आत्मविश्वास, आधुनिकता और आकांक्षाएं दिखाएं। जैसे मेरे राजनयिक करियर ने मुझे सिखाया कि भारत की छवि दुनिया में कैसे प्रस्तुत करनी है, वैसे ही मंत्री के रूप में मेरा काम रहा है कि हमारे शहर उस छवि के लायक बनें। यह है बदलाव की यात्रा: आज़ादी के बाद की उपेक्षा से मोदी युग के आधुनिकीकरण तक। शास्त्री भवन की जर्जरता से कर्तव्य भवन की महत्वाकांक्षा तक। गड्ढों वाली सड़कों से एक्सप्रेसवे और हाई-स्पीड कॉरिडोर तक। धुएं से भरे रसोईघरों से पाइप्ड नेचुरल गैस तक। झुग्गियों से लाखों पक्के घरों तक। टूटे-फूटे हॉल से विश्वस्तरीय सम्मेलन केंद्रों तक। संकोच करती राजधानी से आत्मविश्वासी वैश्विक मेज़बान तक। पाटलिपुत्र और नालंदा जैसे भारत के प्राचीन शहर कभी शहरी सभ्यता की उच्चता के प्रतीक थे। आज, प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारतीय शहर फिर उसी राह पर हैं, आधुनिक लेकिन मानवीय, महत्वाकांक्षी होते हुए भी समावेशी, वैश्विक दृष्टिकोण वाले होते हुए भी जड़ों और मूल्यों से जुड़े हुए। नया शहरी भारत एक दिन में नहीं बन रहा है, बल्कि यह हर दिन बन रहा है- ईंट दर ईंट, ट्रेन दर ट्रेन, घर दर घर। और यह पहले से ही करोड़ों लोगों की ज़िंदगी बदल रहा है।

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