डी.ए.वी. कॉलेज जालंधर शहर का पहला संस्थान बना जिसने ‘नवग्रह वाटिका’ स्थापित की और अपने डिज़ाइन का पेटेंट प्राप्त किया

जालंधर (अरोड़ा) :- डी.ए.वी. कॉलेज, जालंधर, शहर का पहला संस्थान बनकर एक ऐतिहासिक उपलब्धि की घोषणा करता है जिसने नवग्रह वाटिका स्थापित की ।प्राचार्य डॉ. राजेश कुमार एवं डॉ. कोमल अरोड़ा (वनस्पति विज्ञान विभागाध्यक्ष) द्वारा विकसित अपने कलात्मक डिज़ाइन (प्रमाणपत्र संख्या AT-20250159763) को कॉपीराइट संरक्षण के तहत आधिकारिक रूप से पंजीकृत कराया। नवग्रह वाटिका, जिसे नौ ग्रहों का बगीचा भी कहा जाता है, हिंदू जीवन शैली में गहराई से निहित एक प्राचीन अवधारणा है। हिंदू धर्म के महापुराणों में से एक, गरुड़ पुराण में वर्णित अनुसार, नौ ग्रहों में से प्रत्येक को एक विशिष्ट दिशा में एक विशिष्ट पौधे द्वारा दर्शाया गया है। नौ ग्रहों को दिशाओं के अनुसार निम्नलिखित पौधों द्वारा दर्शाया गया है: सूर्य को अर्क (केंद्र) द्वारा, चंद्र को पलाश (दक्षिण-पूर्व) द्वारा, मंगल को खदिर (दक्षिण) द्वारा, बुध को अपामार्ग (उत्तर) द्वारा, गुरु को पीपल (उत्तर-पूर्व) द्वारा, शुक्र को गूलर (पूर्व) द्वारा, शनि को शम्मी (पश्चिम) द्वारा, राहु को दुर्वा (दक्षिण-पश्चिम) द्वारा, और केतु को दर्भा (उत्तर-पश्चिम) द्वारा दर्शाया गया है। आधुनिक समय में, नवग्रह वाटिका की अवधारणा को शहरी परिवेश के अनुरूप ढाला गया है। राष्ट्रपति भवन सहित कई सरकारी संस्थानों और भवनों ने ध्यान और आध्यात्मिक साधनाओं के लिए अनुकूल शांत वातावरण का सृजन करने हेतु इनकी स्थापना की है। स्थानिक व्यवस्था दिशात्मक और आध्यात्मिक सिद्धांतों का पालन करती है, जो एक ऐसा गहन अनुभव प्रदान करती है जो प्रकृति, संस्कृति और ब्रह्मांडीय ऊर्जाओं के बीच सामंजस्य को बढ़ावा देता है। मूल अवधारणा की परिकल्पना प्राचार्य डॉ. राजेश कुमार और डॉ. कोमल अरोड़ा (विभागाध्यक्ष, वनस्पति विज्ञान) ने की थी। डॉ. राजेश कुमार के गतिशील नेतृत्व में, इस विचार को मूर्त रूप दिया गया, जिसमें वैदिक साहित्य के सिद्धांतों को वनस्पति विज्ञान के महत्व के साथ एकीकृत किया गया। डॉ. कोमल अरोड़ा ने इसे सांस्कृतिक और पर्यावरणीय मूल्यों के साथ संरेखण सुनिश्चित करते हुए एक व्यापक, कलात्मक डिज़ाइन के रूप में विकसित किया। दोनों लेखकों ने लेआउट और विषयवस्तु को परिष्कृत करने में मिलकर काम किया, जिसके परिणामस्वरूप एक अनूठी और प्रभावशाली रचना तैयार हुई। यह पेटेंट कॉलेज की शैक्षणिक यात्रा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, जो पारंपरिक ज्ञान प्रणालियों को आधुनिक वैज्ञानिक समझ के साथ एकीकृत करने में डी.ए.वी. कॉलेज, जालंधर के योगदान को उज़ागर करता है और समग्र शिक्षा और नवाचार के एक अग्रणी संस्थान के रूप में इसकी स्थिति की पुष्टि करता है। लेखक डी.ए.वी. कॉलेज प्रबंध समिति (डी.ए.वी. सीएमसी), नई दिल्ली के प्रति नवीन शैक्षणिक उपक्रमों को प्रोत्साहित करने के लिए हार्दिक आभार व्यक्त करते हैं और भविष्य में ऐसे कई और प्रयास करने की आशा करते हैं।

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