जालंधर (अरोड़ा) :- डी.ए.वी. कॉलेज जालंधर द्वारा भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् (आईसीपीआर) द्वारा प्रायोजित व्याख्यान का आयोजन किया गया। इस व्याख्यान का विषय “भारतीय सभ्यता की ऐतिहासिक जड़ें और आधुनिक समय में प्रासंगिकता।” कार्यक्रम का आयोजन स्नातकोत्तर राजनीति विज्ञान विभाग ने इतिहास, दर्शनशास्त्र, मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, भूगोल और अर्थशास्त्र विभागों के सहयोग से किया। मुख्य वक्ता प्रो. (डॉ.) सुखदेव सिंह सोहल, गुरु नानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर के इतिहास और सामाजिक विज्ञान विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष रह चुके हैं।परंपरा के अनुसार, कार्यक्रम की शुरुआत डी.ए.वी. गान के पाठ से हुई। प्राचार्य डॉ. राजेश कुमार ने अतिथि वक्ता का औपचारिक स्वागत किया और उन्हें एक प्रशंसित इतिहासकार, विभिन्न पत्रिकाओं के संपादक, शिक्षाविद्, बारह पीएचडी विद्वानों के पर्यवेक्षक और पंजाब के इतिहास में एक प्रसिद्ध लेखक बताया। उन्होंने पांच किताबें, 112 शोध लेख और कई पुस्तक समीक्षाएँ लिखी हैं।



व्याख्यान के विषय के महत्व पर प्रकाश डालते हुए प्राचार्य डॉ. राजेश कुमार ने विद्यार्थियों से व्याख्यान से अधिकतम लाभ उठाने तथा विशेषज्ञ वक्ता से अपने प्रश्नों के उत्तर प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने व्याख्यान श्रृंखला को प्रायोजित करने के लिए आईसीपीआर को धन्यवाद भी दिया।मुख्य वक्ता ने समकालीन विश्व में राष्ट्र और राष्ट्रवाद की जटिल अवधारणा के विकास पर प्रकाश डाला और इसे भारत से जोड़ा। व्याख्यान की रूपरेखा, “भारतीय सभ्यता की ऐतिहासिक जड़ें और आधुनिक समय में प्रासंगिकता,” को चार भागों में विभाजित किया गया था: (I) समस्याएँ: सामाजिक घटनाओं की जटिलता, समय आयाम, ऐतिहासिक समझ, प्रौद्योगिकी और सूचनाओं की बाढ़ पर प्रकाश डालना। (II) राष्ट्र और सभ्यता: दो अवधारणाओं के बीच बुनियादी चिंताओं और मतभेदों को संबोधित करना। (III) राष्ट्रीय हितों की चिंताएँ: सामाजिक, आर्थिक और भौगोलिक असमानताओं और उनके परिणामों का हवाला देते हुए सरकार, राज्य और राष्ट्र को परिभाषित करना। इस खंड में टैगोर और गांधी के बीच ऐतिहासिक बहस पर भी प्रकाश डाला गया। (IV) आधुनिक समय में प्रासंगिकता: इस बात पर जोर देते हुए कि ऐतिहासिक प्रक्रियाओं को अतीत, वर्तमान और भविष्य में विभाजित करके नहीं समझा जा सकता है, क्योंकि अतीत को समझे बिना वर्तमान को नहीं समझा जा सकता है, और इसके विपरीत। रवींद्रनाथ टैगोर का जिक्र करते हुए, वक्ता ने बताया कि राष्ट्र का विचार कभी-कभी अनन्य हो सकता है। उन्होंने भारत को एक ऐसे सभ्यतागत राज्य की ओर ले जाने की आवश्यकता पर जोर दिया जो हमेशा समावेशी हो। वक्ता ने युवा पीढ़ी को देश को इस सभ्यतागत राज्य की ओर ले जाने की उनकी जिम्मेदारी की याद दिलाई, और जोर देकर कहा कि दुनिया का भविष्य भी सभ्यतागत दृष्टिकोण अपनाने में ही निहित है । विद्यार्थियों ने इस समृद्ध और मनमोहक व्याख्यान से अधिकतम लाभ उठाया और अंत में मुख्य वक्ता से बातचीत कर अपनी जिज्ञासाओं का समाधान किया। कार्यक्रम का समापन कार्यक्रम समन्वयक डॉ. दिनेश अरोड़ा की ओर से इतिहास विभाग के डॉ. राज कुमार द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ। उन्होंने व्याख्यान श्रृंखला को प्रायोजित करने के लिए भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद (आईसीपीआर) को भी हार्दिक धन्यवाद दिया।