संत, शिक्षाविद एवं साधक एक मंच पर जुटे, भारतीय ज्ञान परंपरा के इतिहास एवं वर्तमान पर खुलकर हुई चर्चा
जालंधर (अरोड़ा) :- आई.के.गुजराल पंजाब टेक्निकल यूनिवर्सिटी (आईकेजी पीटीयू) में भारतीय ज्ञान परंपरा विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय स्तरीय सेमिनार का आयोजन किया गया। 27 मार्च को आयोजित इस सेमिनार में संत, शिक्षाविद एवं साधक एक मंच पर जुटे। इस कार्यक्रम में प्रख्यात विद्वानों, छात्रों और शीर्ष शिक्षाविदों ने भारतीय ज्ञान परंपरा के इतिहास एवं वर्तमान पर खुलकर हुई चर्चा की! संगोष्ठी का उद्देश्य भारतीय ज्ञान परंपरा के विशाल इतिहास, उसके वैज्ञानिक प्रभाव, तकनीकी और दार्शनिक पहलुओं पर प्रकाश डालना था। यह कार्यक्रम विश्वविद्यालय के कार्यकारी शिक्षा केंद्र और बिजनेस इनक्यूबेशन सेंटर की टीम द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया था! यह सेमिनार भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएसएसआर) उत्तर पश्चिमी क्षेत्रीय केंद्र द्वारा भी प्रायोजित किया गया था! प्रसिद्ध शिक्षाविद् डॉ. हरमोहिंदर सिंह बेदी, चांसलर केंद्रीय विश्वविद्यालय हिमाचल प्रदेश ने मुख्य अतिथि के रूप में भाग लिया! आचार्य मधु सूदन गोस्वामी महाराज वृंदावन धाम जी विशेष वक्ता के रूप में शामिल हुए! प्रसिद्ध संत एवं वक्ता डॉ. केशव आनंद दास ने मुख्य वक्ता के रूप में भाग लिया! वक्ता के रूप में प्रो. (डॉ.) मनु सूद, कंप्यूटर विज्ञान विभाग, हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला भी उपस्थित थे! कार्यक्रम में मेजबान आईकेजी पीटीयू के कुलपति प्रोफेसर (डॉ) सुशील मित्तल विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे, जबकि विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार डॉ एसके मिश्रा कार्यक्रम के संयोजक थे! समारोह का शुभारंभ दीप
प्रज्ज्वलन के साथ हुआ। अतिथियों का स्वागत कुलपति प्रो. (डॉ.) सुशील मित्तल ने स्मृति चिन्ह एवं पुष्पगुच्छ देकर किया। उन्होंने विद्यार्थियों से कहा कि विद्यार्थी का काम केवल पढ़ाई कर डिग्री प्राप्त करना ही नहीं है, बल्कि समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने के लिए उचित मार्गदर्शन लेना व अगली पीढ़ी को प्रदान करना भी है। समाज में व्याप्त बुराइयों को संतों, महापुरुषों, गुरुओं व पीरों से प्राप्त शिक्षाओं के माध्यम से ही ठीक किया जा सकता है।


कुलसचिव (रजिस्ट्रार) डॉ. एसके मिश्रा ने कहा कि विभिन्न शासन काल में भारत की प्राचीन संस्कृति, मानवीय मूल्यों एवं शिक्षा प्रणाली को नष्ट करने का प्रयास किया गया! जिसका हमारे भविष्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा। हमारी संस्कृति और भाषा को पुनर्जीवित करने के लिए इस पर विचार करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह तब संभव हो सकता है जब हम पुरातत्व से जुड़ें। उन्होंने छात्रों से भारत के वेद, गीता आदि पढ़ने को प्रेरित किया। तभी हम भारतीय ज्ञान परंपरा को पुनर्जीवित कर सकते हैं। मुख्य अतिथि डॉ. हरमोहिंदर सिंह बेदी ने भारतीय ज्ञान परंपरा के वैश्विक महत्व और समकालीन शोध के लिए इसके निहितार्थ पर चर्चा की। उन्होंने कहा, भारतीय ज्ञान परंपरा सिर्फ एक ऐतिहासिक धरोहर ही नहीं है, बल्कि यह आज भी समाज और विज्ञान के लिए एक प्रेरणा स्रोत है। सेमिनार के दौरान डॉ. बेदी ने भारतीय ज्ञान परंपरा की महानता, इसकी शैक्षिक एवं सांस्कृतिक विरासत तथा आधुनिक युग में इसकी उपयोगिता के बारे में विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा केवल आध्यात्म तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह विज्ञान, प्रौद्योगिकी, चिकित्सा और दर्शन के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान देती है। वक्ता, प्रख्यात आचार्य मधुसूदन गोस्वामी महाराज जी ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा पुस्तकों या धार्मिक ग्रंथों तक सीमित नहीं है, बल्कि जीवन के हर पहलू को उजागर करती है। उन्होंने वैदिक ज्ञान, उपनिषदों, भगवद् गीता और संस्कृत ग्रंथों में दर्शन, अध्यात्म और वैज्ञानिक सिद्धांतों का विश्लेषण करके छात्रों को ज्ञान की इस परंपरा से जुड़ने के लिए प्रेरित किया। डॉ. केशव आनंद आचार्य ने भगवद्गीता-भारतीय ज्ञान परंपरा की अमूल्य धरोहर विषय पर व्याख्यान देते हुए कहा कि भगवद्गीता केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि वैज्ञानिक ग्रंथ है और जीवन प्रबंधन की कुंजी है। उन्होंने कहा कि गीता में दी गई अंतर्दृष्टि मानव जीवन के हर पहलू को प्रभावित करती है – चाहे वह आध्यात्मिकता हो, नैतिकता हो, प्रबंधन हो या मनोविज्ञान हो। डीन आर.आई.सी. डॉ. यादविंद सिंह बराड़ ने प्राचीन काल और विभिन्न धर्मग्रंथों के बारे में जानकारी साझा करने के लिए अतिथियों का धन्यवाद किया। कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के सभी अधिकारी, संकाय सदस्य, कर्मचारी एवं छात्र शामिल हुए।