अमृतसर (प्रतिक) :- बी बी के डी ए वी कॉलेज फॉर विमेन, अमृतसर ने आर्य समाज के दूरदर्शी सुधारक और संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती जी की 201वीं जयंती के उपलक्ष्य में ‘कृण्वन्तो विश्वमार्यम: महर्षि दयानंद सरस्वती जी विचारधारा एवं मूल्यों की समकालीन संदर्भ में प्रासंगिकता’ विषय पर पर आईसीएसएसआर प्रायोजित द्वि-दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के चांसलर पद्मश्री प्रोफेसर (डॉ.) हरमोहिंदर सिंह बेदी उद्घाटन समारोह के मुख्य अतिथि थे। संगोष्ठी का शुभारंम्भ वेद मंत्रों के मध्य दीप प्रज्ज्वलित कर एवं डी ए वी गान के साथ किया गया। इस अवसर पर आदरणीय प्राचार्या जी द्वारा आये हुए अतिथियों को प्रकृति के सरंक्षक नन्हें पौधे भेंट कर स्वागत किया गया । प्रिंसिपल डॉ. पुष्पिंदर वालिया ने अपने स्वागत भाषण में स्वामी दयानंद सरस्वती जी के दूरदर्शी नेतृत्व को श्रद्धांजलि दी। डॉ. वालिया ने लाखों लोगों के जीवन को आकार देने में स्वामी जी के गहन प्रभाव पर जोर दिया, जो हमारे वर्तमान और भविष्य दोनों को प्रभावित कर रहा है। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा में अग्रणी भूमिका निभाने और समाज में उन्हें सम्मान और प्रतिष्ठा दिलाने के लिए स्वामी जी के प्रति अपनी गहरी कृतज्ञता व्यक्त की। आपने कहा कि स्वामी दयानंद द्वारा स्थापित आर्य समाज केवल एक धार्मिक आंदोलन नहीं है, बल्कि ज्ञान, तर्कसंगतता और सार्वभौमिक भाईचारे का प्रतीक है।





स्वामी जी की शिक्षाएं लोगों को सत्य, आत्म-अनुशासन और मानवता की सेवा करने के लिए प्रेरित करती रहती हैं, जिससे उनकी गहन विचारधारा एक न्यायपूर्ण और प्रबुद्ध समाज के लिए मार्गदर्शक शक्ति बन जाती है। प्रोफेसर डॉ. हरमोहिंदर सिंह बेदी ने अपने बीज भाषण में स्वामी दयानंद सरस्वती जी की गहन विचारधारा पर प्रकाश डाला और उनकी शिक्षाओं की कालातीत प्रासंगिकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि स्वामी दयानंद जी का दृष्टिकोण किसी विशेष युग तक सीमित नहीं था; यह अतीत में प्रासंगिक था, वर्तमान में महत्वपूर्ण है और भविष्य की पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा। डॉ. बेदी ने वेदों
के ज्ञान को पुनर्जीवित करने, भारतीय भाषाओं को मजबूत करने और ऋग्वेद और भारतीय संस्कृति की परंपराओं और मूल्यों में गहराई से निहित एक प्रगतिशील भारत के निर्माण के लिए स्वामी दयानंद के मिशन पर प्रकाश डाला। उन्होंने सामाजिक सुधारों, विशेष रूप से अंधविश्वासों को मिटाने और महिलाओं की शिक्षा और सशक्तिकरण की वकालत करने के लिए स्वामी दयानंद जी के अथक प्रयासों की सराहना की। उद्घाटन समारोह के बाद पहला तकनीकी सत्र हुआ। तत्पश्चात मुख्य अतिथि
प्रोफेसर डॉ. हरमोहिंदर सिंह बेदी को समृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया गया। डॉ. टौनालिन रदरफोर्ड, इतिहासकार और शिक्षाविद, ब्रिघम यंग यूनिवर्सिटी, यूटा, यूएसए, डॉ. मृदुल कीर्ति, वैदिक विद्वान और विश्व हिंदी सम्मान की प्राप्तकर्त्री, श्रीमती सुनीता पाहुजा, पूर्व राजनयिक, पोर्ट ऑफ स्पेन में भारत की उच्चायुक्त, पहले तकनीकी सत्र के लिए स्त्रोत वक्ता थी। सभी स्त्रोत वक्ताओं ने स्वामी दयानंद के जीवन और शिक्षाओं के विभिन्न पहलुओं से अवगत कराया। स्थानीय समिति के अध्यक्ष एडवोकेट सुदर्शन कपूर ने सत्र के समापन पर उपस्थित आये हुए गणमान्य अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापित किया। दूसरे तकनीकी सत्र की अध्यक्षता डॉ. टौनालिन रदरफोर्ड ने की। इस सत्र के लिए स्त्रोत वक्ता डॉ. कोएनराड एल्स्ट, बेल्जियम ओरिएंटलिस्ट, विजिटिंग प्रोफेसर, चाणक्य विश्वविद्यालय, बेंगलुरु रहे। उल्लेखनीय है कि इस सत्र में शोधकर्त्ताओं द्वारा महार्षि दयानंद के जीवन शिक्षाओं एवं दर्शन पर विभिन्न शोध पत्र प्रस्तुत किये गए। फैशन, डिजाइन, इंटीरियर्स, जेमोलॉजी, होम साइंस, एप्लाइड आर्ट्स और फाइन आर्ट्स विभागों की जीवंत कलात्मक रचनाओं को प्रदर्शित करते हुए ऋषि तेजस प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। जिसमे स्वामी दयानंद की विचारधारा एवं शिक्षाओं पर प्रकाश डाला गया। सम्मेलन में महर्षि दयानंद सरस्वती के दर्शन के नैतिक, आध्यात्मिक और सामाजिक आयामों पर विचार-विमर्श करने के लिए दुनिया भर के प्रतिष्ठित विद्वान, शोधकर्ता और शिक्षाविद एक साथ उपस्थित रहे। उल्लेखनीय है कि इस अवसर पर आर्य समाज के विभिन्न आर्य समाजो से गणमान्य सदस्य इंद्रपाल आर्य, इंद्रजीत ठुकराल, संदीप आहूजा, अतुल मित्तर, विजय वधांत, नेहा महाजन, नीना कपूर, कॉलेज के कर्मचारियों और छात्रों के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भी उपस्थित रहे।