केन्द्रीय वस्त्र मंत्री, गिरिराज सिंह परिवर्तन का एक दशक – समृद्ध भारत का उदय
दिल्ली/जालंधर(ब्यूरो):- एक दशक पूर्व भारत की जनसंख्या लगभग 125 करोड़ थी। उपभोक्ताओं का खर्च मुख्य रूप से इच्छा के बजाय आवश्यकता से प्रेरित होता था। खरीदारी का पूर्वानुमान लगाना बहुत ही आसान था। त्योहारों के लिए नए कपड़े, सावधानीपूर्वक योजना आधारित खर्च और फिजूलखर्ची की बजाय बचत पर ध्यान केंद्रित किया जाता था। लक्जरी ब्रांडों की दूर से प्रशंसा की जाती थी। उच्च श्रेणी का फैशन अभिजात वर्ग तक ही सीमित था। आज देश की जनसंख्या लगभग 142 करोड़ हो गई है। मध्यम वर्ग तेजी से बढ़त की ओर है। वही परिवार पूरे आत्मविश्वास से प्रीमियम स्टोर में कदम रखता है। वही परिवार आसानी से ऑनलाइन खरीदारी करता है। इतना ही नहीं, अपने जीवन में अनेक अवसरों को उत्सव के तौर पर
देखता है। भारत अब न केवल आगे बढ़ रहा है, बल्कि यह समृद्ध भी हो रहा है। बढ़ती क्रय शक्ति, विकसित हो रही उपभोक्ता मानसिकता और अंतिम-मील डिजिटल कनेक्टिविटी ये तीनों इस बदलाव के मुख्य वाहक हैं। आर्थिक सुधार अभूतपूर्व रहा है। इसे बढ़ती आय, सरकार समर्थित विनिर्माण पहल और डिजिटल रूप से सशक्त भारत के माध्यम से पंख लगे हैं। 2020 में ‘आत्मनिर्भर भारत’ योजना शुरू की गई। इस विजन ने आत्मनिर्भरता की नींव रखी। इसे प्रोडकशन-लिंक्ड प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना और पीएम मित्र टेक्सटाइल पार्कों द्वारा और सशक्त किया गया। जैसे-जैसे विनिर्माण में उछाल आया,
रोजगार सृजन हुआ और इसके साथ ही डिस्पोजेबल आय में वृद्धि हुई। इसके परिणामस्वरूप भारतीयों के खर्च करने के तरीके बदल गए। उपभोग अब भारत के विकास की गाथा के केंद्र में है, जो कपड़ा क्षेत्र को स्वर्ण युग में ले जाने के लिए तैयार है। एक सशक्त भारत – आत्मविश्वास से परिपूर्ण, साहसी और आकांक्षी पिछले कई वर्षों में, आकांक्षाएं सचमुच वास्तविकता से आगे निकल गईं। लोगों ने कड़ी मेहनत की, बड़े सपने देखे, फिर भी अवसर पहुंच से बाहर लगे। फिर नीति-संचालित परिवर्तन के एक दशक ने महत्वाकांक्षा को उपलब्धि में बदल दिया। इन्फ्रास्ट्रक्चर का विस्तार हुआ, डिजिटल इंडिया ने आकार लिया और आर्थिक सुधार मूर्त विकास का इंजन बन गए। इसके प्रभाव से भारत एक गुणवत्ता, शैली और सुविधा को अपनाने के लिए तैयार आत्मविश्वासी उपभोक्ताओं वाले देश के रूप में विकसित हो गया। आय में उछाल आया है। प्रति व्यक्ति आय 2014-15 में 72,805 रुपए से बढ़कर 2023-24 में 1.88 लाख रुपए हो गई है और 2030 तक 3.5 लाख रुपए तक पहुंचने का अनुमान है। आज छह करोड़ भारतीय सालाना 8.3 लाख रुपए से अधिक कमाते हैं – 2015 की संख्या से दोगुने से भी अधिक है। यह बढ़ती समृद्धि फैशन, कपड़ा और जीवन शैली वाले उत्पादों की अभूतपूर्व मांग को बढ़ावा दे रही है। 2027 तक, भारत चौथा सबसे बड़ा उपभोक्ता टिकाऊ बाजार होगा, जो न केवल सामर्थ्य बल्कि आकांक्षाओं से प्रेरित होगा। कोविड के बाद उपभोक्ताओं के व्यवहार में बदलाव एक गेम-चेंजर रहा है। डिजिटल पहुंच बढ़ी, ऑनलाइन रिटेल फला-फूला और यूपीआई लेनदेन आसमान छू गया। वित्त वर्ष 2013-14 में 220 करोड़ से इस डिजिटल परिवर्तन ने शहरी-ग्रामीण विभाजन को पाट दिया है। इससे यह सुनिश्चित हुआ है कि चाहे मेट्रो शहर में रहें या छोटे शहर में, भारतीयों के पास अब वैश्विक और स्थानीय फैशन तक निर्बाध पहुंच है। भारत की फैशन क्रांति – परंपरा का महत्वाकांक्षा से मिलन कभी पश्चिमी अवधारणा, फास्ट फैशन अब युवा भारतीयों के लिए जीवन का एक तरीका है। जो कभी अनन्य था, वह अब पहुंच के भीतर है। इसका श्रेय ज्यूडियो, रिलायंस ट्रेंड्स और शीन जैसे ब्रांडों को जाता है। ये ब्रांड 10 बिलियन डॉलर के उद्योग को बढ़ावा दे रहे हैं। यह कारोबार 2030 तक 50 बिलियन डॉलर तक पहुंचने के लिए तैयार है। लेकिन यह बदलाव केवल सामर्थ्य के बारे में नहीं है – लक्जरी और विरासत वाले वस्त्र फास्ट फैशन के साथ- साथ फल-फूल रहे हैं। जैसे-जैसे आकांक्षी परिवार 2027 तक 100 मिलियन का आंकड़ा पार कर रहे हैं, हस्तनिर्मित कपड़े, रेशम की साड़ियां और उच्च श्रेणी के डिजाइनर परिधान फिर से उभर रहे हैं। यह क्रांति कोई संयोग भर नहीं है। यह सरकार द्वारा संचालित पहलों का प्रत्यक्ष परिणाम है। बिचौलियों को खत्म करके कारीगरों के प्लेटफार्मों को डिजिटल बनाकर और सीधे ग्राहक- से-कारीगर कनेक्शन को सक्षम करके, डिजिटल इंडिया ने फैशन को खरीदने और बेचने के तरीके को बदल दिया है। महाराष्ट्र की पैठणी, कश्मीर की पश्मीना – अब एक बटन के क्लिक पर उपलब्ध है। फैशन का यह लोकतंत्रीकरण कारीगरों को सशक्त बना रहा है। इससे विरासत शिल्प को पुनर्जीवन मिल रहा है, और भारत की वस्त्र विरासत को वैश्विक मंच पर सबसे आगे आ रहा है। विलासिता और विरासत – पहले की तुलना में अधिक सुलभ भारतीय शादियां हमेशा भव्य रही हैं। किंतु, आज वे अरबों-खरबों डॉलर की आर्थिक शक्ति हैं। 45 बिलियन डॉलर का विवाह उद्योग पारंपरिक बुनाई क्लस्टरों में नई जान फूंक रहा है। इसमें परिवार बड़े पैमाने पर उत्पादन के बजाय लात्मकता को चुन रहे हैं। विलासिता अब लेबल के बारे में नहीं है, यह विरासत के बारे में है। दुल्हन और दूल्हे विशिष्टता का विकल्प चुन रहे हैं। वे हाथ से बुने हुए बनारसी रेशम, जटिल कांजीवरम और भारत की समृद्ध वस्त्र विरासत का जश्न मनाने वाले डिजाइन का चयन कर रहे हैं। लेकिन परिवर्तन केवल परिधान तक ही सीमित नहीं है। जैसे-जैसे भारत की अर्थव्यवस्था बढ़ रही है, वैसे-वैसे इसकी सुंदरता की चाहत भी बढ़ रही है। वित्त वर्ष 2019-23 के बीच रियल एस्टेट की कीमतों में 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, और बड़े, अधिक परिष्कृत घरों के साथ हस्तनिर्मित साज-सज्जा, डिजाइनर असबाब और विरासत सजावट की मांग बढ़ गई है। आधुनिक घर अब भारतीय शिल्प कौशल का प्रदर्शन बन गए हैं। इसके परिणाम स्वरूप हाथ से बने वस्त्रों की मांग फैशन से परे इंटीरियर और लक्जरी लिविंग में बढ़ रही है। भारत के वैश्विक फैशन नेतृत्व की शुरुआत भारत का कपड़ा उद्योग अब केवल उत्पादन के बारे में नहीं है। यह नवाचार, डिजाइन और वैश्विक प्रभाव के बारे में है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में, मेक इन इंडिया डिजाइन इन इंडिया में विकसित हुआ है, जहां भारतीय रचनात्मकता अंतरराष्ट्रीय फैशन को आकार देती है। अनुसंधान और विकास पर सरकार का ध्यान और एक संपन्न स्टार्टअप इको-सिस्टम को बढ़ावा देने से बेजोड़ आर्थिक विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ है। तीन टी – टैक्सटाइल (वस्त्र), टूरिज्म (पर्यटन) और टैक्नोलॉजी (प्रौद्योगिकी) – पर काम करते हुए अपना देश अब एक विकसित भारत की नींव रख रहा है। हाल ही में बजट में वस्त्र उद्योग को प्राथमिकता दिए जाने के साथ, 136 बिलियन डॉलर का घरेलू उद्योग 2030 से पहले ही 250 बिलियन डॉलर को पार कर जाएगा। इससे वैश्विक अग्रणी के रूप में भारत के स्थान की पुष्टि होती है। निजी खपत 2013 में 87 लाख करोड़ रुपए से बढ़कर 2024 में 183 लाख करोड़ रुपए हो गई है। 2030 तक सकल घरेलू उत्पाद 635 लाख करोड़ रुपये को छूने का अनुमान है। निजी खपत सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा होगी। यह बदलाव भारत को वैश्विक खपत शक्ति बना देगा, जो अमेरिका, चीन और जर्मनी जैसे विकसित देशों से भी आगे निकल जाएगा। लेकिन भारत का उदय केवल इस बारे में नहीं है कि कितना उपभोग किया जा रहा है। यह इस बारे में है कि इसे क्या महत्व दिया जा रहा है। भारतीय कपड़ा उद्योग को कभी उत्पादन केंद्र के रूप में देखा जाता था। अब इसे वैश्विक फैशन ट्रेंड तय कर रहा है। दुनिया भारत को न केवल इसके शिल्प कौशल के लिए, बल्कि इसकी दूरदर्शिता, लालित्य और विरासत के आधुनिकता के साथ मिलन की क्षमता के लिए भी देखती है। यह नया भारत है – निडर, स्व-निर्मित और अजेय लेकिन यह तो बस शुरुआत है। नया भारत अवसरों का इंतजार नहीं करता, बल्कि उन्हें बनाता है। फैशन अब एक जुनून भर नहीं रह गया है। यह एक करियर बन गया है। युवा भारतीय सिर्फ ट्रेंड का अनुसरण नहीं कर रहे हैं। वे उन्हें स्थापित भी कर रहे हैं। वे ब्रांड लॉन्च कर रहे हैं, व्यवसाय बना रहे हैं और अर्थव्यवस्था को आकार दे रहे हैं। भारत के युवाओं से कहना है, वे नौकरी चाहने वाले नहीं, बल्कि नौकरी देने वाले बनें। आपकी शैली, आपकी महत्वाकांक्षा, आपके विचार – यही भारत की अर्थव्यवस्था का भविष्य है। और यह केवल पहनावे तक ही सीमित नहीं है। जैसे-जैसे भारत की अर्थव्यवस्था आगे बढ़ रही है, वैसे-वैसे इसकी सुंदरता की चाहत भी बढ़ रही है। बढ़ती आय, डिजिटल पहुंच में वृद्धि और बढ़ती जनसंख्या के साथ, भारत सिर्फ वैश्विक फैशन उद्योग में भाग नहीं ले रहा है – बल्कि इसका नेतृत्व भी कर रहा है। पिरामिड के निचले हिस्से से लेकर ऊपर तक, आकांक्षाएं बढ़ रही हैं, विकल्प बढ़ रहे हैं और एक नए भारत को सीमाओं से नहीं, बल्कि संभावनाओं से निर्धारित किया जा रहा है।