बी बी के डी ए वी कॉलेज फॉर विमेन में राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

अमृतसर (प्रतीक) :- बी बी के डी ए वी कॉलेज फॉर विमेन में ‘उत्तर पश्चिमी भारत की पारंपरिक कला और शिल्प में समकालीन अभ्यास’ विषय पर दो दिवसीय आई सी एस एस आर प्रायोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर प्रोफेसर (डॉ.) हरमोहिंदर सिंह बेदी (कुलपति, हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय, धर्मशाला) मुख्य अतिथि तथा प्रोफेसर (डॉ.) हिम चटर्जी (अध्यक्ष, दृश्य कला विभाग, हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला) उद्घाटन समारोह के मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थिति रहे।
प्राचार्या डॉ. पुष्पिंदर वालिया ने अपने स्वागत भाषण में कहा कि शैक्षणिक संस्थान सीखने और नवाचार के मंदिर के रूप में कार्य करते हैं, जहां विचारों का पोषण किया जाता है और परंपराओं को संरक्षित किया जाता है। जैसे-जैसे हम आधुनिक तकनीकों को पारंपरिक कला और शिल्प के साथ एकीकृत करने के संक्रमण चरण को आगे बढ़ाते हैं, उसी तरह यह जरूरी है कि हम नए अवसरों को अपनाते हुए अपनी सांस्कृतिक विरासत का सार बनाए रखें। उन्होंने कहा कि कला, स्थिरता और प्रौद्योगिकी के मध्य संतुलन बनाकर, हम पुरानी कलात्मक परंपराओं को एक नया रूप दे सकते हैं, जो समकालीन जरूरतों के साथ संरेखित हो और भविष्य की पीढ़ियों के लिए उनकी प्रासंगिकता सुनिश्चित करे।


मुख्य भाषण देते हुए प्रो. (डॉ.) हिम चटर्जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि भारतीय कला – स्वदेशी परंपराओं से लेकर यूरोपीय और फारसी कलात्मक रूपों के साथ बाहरी संबंधों तक विविध प्रभावों से आकार लेती रही है। जो चीज़ भारतीय कला को वास्तव में उल्लेखनीय बनाती है, वह है इसकी जटिल रेखाओं, तरल रूपों और जीवंत कहानी कहने की नींव, जो अक्सर यूरोपीय कला में पाए जाने वाले संरचित यथार्थवाद के विपरीत है। उन्हेनें कह कि डिजिटल मीडिया के माध्यम से भारतीय कला का पुनर्जागरण कलाकारों को अतीत को वर्तमान के साथ जोड़ने में सक्षम बना रहा है, जिससे पारंपरिक रूपों को समकालीन शैलियों में पुनर्व्याख्या करने की अनुमति मिलती है। मुख्य अतिथि डॉ. हरमोहिंदर सिंह बेदी ने सेमिनार के सफल आयोजन पर प्राचार्या डॉ. पुष्पिंदर वालिया को बधाई दी। उन्होंने कहा कि संस्कृत और वैदिक ग्रंथों पर जोर देते हुए महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने शास्त्रीय भारतीय कलात्मक परंपराओं के संरक्षण में योगदान दिया।
राष्ट्रीय संगोष्ठी समारोह का उद्घाटन सत्र युवा कल्याण विभाग के विद्यार्थियों द्वारा गिद्दा और लोकगीतों की मनमोहक प्रस्तुति के साथ संपन्न हुआ। प्रथम तकनीकी सत्र की अध्यक्षता डॉ. हिम चटर्जी ने की, जबकि भारत सरकार के कपड़ा मंत्रालय की पैनल डिजाइनर परमजीत कौर कपूर इस सत्र की संसाधन वक्ता थीं। अपने व्याख्यान के दौरान कपूर ने विद्यार्थियों को फुलकारी कढ़ाई की बारीकियों से परिचित कराया। इस सत्र के दौरान भारत की पारंपरिक कला और शिल्प से संबंधित विभिन्न विषयों पर 16 शोध पत्र प्रस्तुत किए गए। दूसरे तकनीकी सत्र की अध्यक्षता प्रोफेसर (डॉ.) फैयाज अहमद नीका, अध्यक्ष, डीआईसी-डिजाइन इनोवेटिव सेल, डीन, प्रबंधन अध्ययन, केंद्रीय विश्वविद्यालय कश्मीर ने की, जबकि डॉ. गुरचरण सिंह, अध्यक्ष, ललित कला विभाग, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय इसके संसाधन व्यक्ति थे। इस सत्र के दौरान कुल 15 शोध पत्र प्रस्तुत किए गए। प्रो. फैयाज अहमद नीका ने अपने समापन भाषण में आर्थिक विकास और पर्यटन में कश्मीर के हस्तशिल्प के ऐतिहासिक महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कम कारीगर रिटर्न और इसके पुनरुद्धार के लिए प्रौद्योगिकी को एकीकृत करने जैसी चुनौतियों का समाधान करते हुए इस सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने की आवश्यकता पर जोर दिया। सत्र के अंत में प्रो. शिफाली जौहर ने संगोष्ठी की रिपोर्ट पढ़ी और डॉ. सिमरदीप ने धन्यवाद ज्ञापन दिया।
सेमिनार के दौरान पंजाबी, अनुप्रयुक्त कला, ललित कला, गृह विज्ञान और रत्न विज्ञान और आभूषण डिजाइन विभाग द्वारा पंजाब की विरासत, कला और संस्कृति को समर्पित एक प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। ललित कला के पीजी विभाग की प्रमुख शिफाली जौहर ने सेमिनार की रिपोर्ट पढ़ी, जबकि डॉ. सिमरदीप, डीन अकादमिक ने धन्यवाद प्रस्ताव दिया। भारत भर के विभिन्न संस्थानों के प्रतिभागियों के साथ-साथ कॉलेज के संकाय सदस्यों और छात्रों ने भी इस सेमिनार में उत्साहपूर्वक भाग लिया।

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