जालंधर (अरोड़ा) :- एपीजे कॉलेज ऑफ फाइन आर्ट्स जालंधर में अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर सारंगी वादन में अपनी विशेष पहचान बन चुके उस्ताद दिलशाद खान की सारंगी पर उंगलियों के कमाल ने सभी श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। प्राचार्य डॉ नीरजा ढींगरा ने उस्ताद दिलशाद खान का अभिनंदन करते हुए कहा कि एपीजे कॉलेज अपने संस्थापक अध्यक्ष डॉ सत्यपाॅल की प्रेरणा, एपीजे एजुकेशन, एपीजे सत्या एंड स्वर्ण ग्रुप की अध्यक्ष तथा एपीजे सत्या यूनिवर्सिटी की चांसलर सुषमा पॉल बर्लिया तथा एपीजे एजुकेशन की जॉइंट सेक्रेटरी डॉ नेहा बर्लिया के मार्गदर्शन में प्रत्येक क्षेत्र में सिद्धहस्त कलाकारों से महकता ही रहता है।
उन्होंने कहा कि यह प्रांगण इतना शुभ है कि यहां पर समय-समय पर विभिन्न क्षेत्रों में अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बन चुके कलाकार निरंतर आते ही रहते हैं और अपनी कला के जादू से आंगन को और भी ज्यादा कलामय एवं सुरमयी बनाने में अपना विशेष योगदान देते रहते हैं, डॉ ढींगरा ने कहा कि कॉलेज के कल्चरल कोऑर्डिनेटर डॉ अरुण मिश्रा एवं यूथ फेस्टिवल की डीन न डॉ अमिता मिश्रा हमेशा श्रेष्ठ कलाकारों को कॉलेज में आमंत्रित करते हैं ताकि हमारे विद्यार्थी उनकी उपलब्धियों से सीखते हुए एवं उनसे प्रेरणा लेकर संगीत जगत में अपनी विशेष पहचान बना सके। उस्ताद दिलशाद खान निरंतर 20 वर्षों से दसवीं पीढ़ी से ‘सीकर’ घराने से जुड़े हुए इंडियन क्लासिकल म्यूजिक की धरोहर को सहेजे हुए इसे भावी पीढ़ी तक पहुंचाने में जुटे हुए हैं। अभी तक वह उस्ताद जाकिर हुसैन,पंडित हरिप्रसाद चौरसिया जी, ए.आर. रहमान जी एवं शंकर महादेवन के साथ शास्त्रीय एवं कंटेंपरेरी संगीत को आगे बढ़ाने में अपना योगदान दे रहे हैं। उन्होंने बॉलीवुड की प्रसिद्ध फिल्म ‘जोधा अकबर’, ‘रॉकस्टार’, ‘दिल्ली 6’ और ‘स्लमडॉग मिलेनियर’ आदि फिल्मों में सारंगी वादन करके अपनी विशिष्ट पहचान बनायी है।
उस्ताद जाकिर हुसैन के साथ उन्होंने सारंगी वादन करते हुए 2009 में ग्रैमी अवार्ड भी जीता है। अंतर्राष्ट्रीय मंच पर वे भारतीय शास्त्रीय संगीत एवं सारंगी वादन को विशेष पहचान दिलाने के लिए निरंतर प्रयासरत हैं। उस्ताद दिलशाद खान ने सारंगी वादन करते हुए तीन ताल में निबद्ध राग शुद्ध सारंग, राग जौनपुरी, राजस्थानी लोकगीत के साथ-साथ बॉलीवुड के सुप्रसिद्ध गीतों जिनमें उन्होंने सारंगी बजाई है जैसे उड़ जा काले कांवा, धागे तोड़ लाऊ चांदनी से नूर के, तू ही रे, बजा कर श्रोताओं को झूमने पर मजबूर कर दिया। तबले पर उनका साथ ‘र्रुखाबाद’ घराने से सिद्धार्थ चटर्जी ने दिया वह भी भारतीय शास्त्रीय संगीत को शिखर पर पहुंचने में अपना अद्भुत योगदान दे रहे हैं। मैडम रजनी कुमार एवं डॉ विवेक वर्मा ने श्रेष्ठ मंच संचालन करते हुए कार्यक्रम को सफल बनाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। डॉ ढींगरा ने उस्ताद दिलशाद खा, सिद्धार्थ चटर्जी एवं पीयूष चौहान को शाल देकर सम्मानित किया। कार्यक्रम के सफल आयोजन के लिए डॉ ढींगरा ने कार्यक्रम प्रभारी डॉ अमिता मिश्रा के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि वह भविष्य में भी इसी तरह निरंतर महान कलाकारों को आमंत्रित कर कॉलेज के कलामय माहौल को जीवंत बनाए रखें।