Saturday , 23 November 2024

धर्मेंद्र प्रधान ने राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के सचिवों के साथ उच्च एवं तकनीकी शिक्षा पर एक राष्ट्रीय कार्यशाला का उद्घाटन किया

यह कार्यशाला गहन अकादमिक विचार-विमर्श के लिए एक मंच के रूप में काम करेगी – श्री धर्मेंद्र प्रधान
धर्मेंद्र प्रधान ने अकादमिक प्रमुखों और प्रशासकों के लिए ध्यान केंद्रित करने हेतु पांच प्रमुख क्षेत्रों का सुझाव दिया

दिल्ली/जालंधर (ब्यूरो) :- केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने आज नई दिल्ली में राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के सचिवों के साथ उच्च एवं तकनीकी शिक्षा पर एक दो-दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का उद्घाटन किया। इस कार्यक्रम में शिक्षा और उत्तर-पूर्व क्षेत्र विकास राज्य मंत्री डॉ. सुकांत मजूमदार भी उपस्थित थे। इस अवसर पर उच्च शिक्षा विभाग के सचिव के. संजय मूर्ति, उच्च शिक्षा विभाग के अपर सचिव सुनील कुमार बरनवाल, यूजीसी के अध्यक्ष प्रो. एम. जगदीश कुमार, उच्च शिक्षा विभाग की संयुक्त सचिव मनमोहन कौर, राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के सचिव, शिक्षाविद, संस्थानों के प्रमुख और इस मंत्रालय के अधिकारी भी मौजूद थे। इस कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प्रधान ने कहा कि यह कार्यशाला गहन अकादमिक विचार-विमर्श के लिए एक मंच के रूप में काम करेगी, विशेष रूप से कैसे शिक्षा जीवन जीने को आसान बनाने, प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने और प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा निर्धारित राष्ट्रीय प्राथमिकताओं को हासिल करने में महत्वपूर्ण सुधार ला सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि देश को उद्योग 4.0 द्वारा प्रस्तुत अवसरों का उपयोग करके एक उत्पादक अर्थव्यवस्था बनना है और ऐसी शिक्षा अवसंरचना को तेजी से विकसित करना है, जो वैश्विक मानकों को भी पार कर जाए। उन्होंने आगे कहा कि शिक्षा अवसंरचना एक बहु-आयामी अवधारणा है और ये ईंट-और-मोर्टार संरचनाओं को विकसित करने से परे है।

मंत्री महोदय ने अकादमिक प्रमुखों और प्रशासकों के लिए ध्यान केंद्रित करने हेतु पांच प्रमुख क्षेत्रों का सुझाव दिया। पहला है, फंडिंग के अभिनव तरीकों के जरिये सरकारी विश्वविद्यालयों को मजबूत करना; दूसरा है, उद्योग की मांग के अनुसार तथा राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों की आवश्यकताओं और आकांक्षाओं के अनुसार पाठ्यक्रम को संरेखित और तैयार करने के लिए थिंक टैंक स्थापित करना; तीसरा है, वैश्विक समस्याओं के समाधान में नेतृत्व संभालने के लिए अनुसंधान और नवाचार के लिए एक बहु-विषयक दृष्टिकोण अपनाना; चौथा है, प्रतिष्ठित केंद्रीय/राज्य संस्थानों के साथ सहयोग के जरिये प्रत्येक राज्य/केंद्र शासित प्रदेश में अकादमिक नेतृत्व विकास कार्यक्रमों को बढ़ावा देना और पांचवां है, खेल, वाद-विवाद, कविता, नाटक, प्रदर्शन कला (एनईपी के जरिये पहले से ही क्रेडिट दिया जा चुका है) के माध्यम से परिसर जीवन की जीवंतता को पुनर्जीवित करना और इन गैर-शैक्षणिक क्षेत्रों को प्राथमिकता देना। प्रधान ने भारतीय भाषाओं में शिक्षण के महत्व पर भी बल दिया। देश के छात्रों के प्रति जवाबदेही पर जोर देते हुए, उन्होंने कहा कि शिक्षा में भारत का वैश्विक नेतृत्व स्थापित करने के लिए सब लोगों को मिलकर काम करना होगा। डॉ. सुकांत मजूमदार ने अपने संबोधन में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के माध्यम से भारत के शैक्षिक परिदृश्य को नया रूप देने के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के विजन के लिए उनके प्रति आभार व्यक्त किया। उन्होंने आगे कहा कि एनईपी सिर्फ एक नीति नहीं है; यह भारत को एक वैश्विक ज्ञान महाशक्ति बनाने का रोडमैप है। एनईपी 2020 के पांच स्तंभों- पहुंच, समानता, गुणवत्ता, वहनीयता और जवाबदेही हैं- पर प्रकाश डालते हुए, डॉ. मजूमदार ने कहा कि ये आधुनिक, समावेशी और विश्व स्तर पर एक प्रतिस्पर्धी शिक्षा प्रणाली का आधार हैं। उन्होंने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से एनईपी 2020 को इसके अक्षर और भावना दोनों के साथ लाने का आग्रह किया। श्री मजूमदार ने कहा कि इस नीति को लागू करके राज्य आर्थिक विकास को बढ़ावा दे सकते हैं, एक कुशल कार्यबल का निर्माण कर सकते हैं तथा नवाचार और प्रौद्योगिक उन्नति को बेहतर कर सकते हैं।
श्री के. संजय मूर्ति ने अपने संबोधन में इस कार्यशाला का संदर्भ निर्धारित किया। उन्होंने इस आयोजन के दौरान होने वाले 14 तकनीकी सत्रों का संक्षिप्त विवरण दिया। उन्होंने पिछले तीन वर्षों में गहन विचार-विमर्श से उभरे प्रमुख कारकों पर भी प्रकाश डाला और विकसित किये गये बीस दिशा-निर्देशों का उल्लेख किया, जो विश्वविद्यालयों के लिए एक फ्रेमवर्क प्रदान करते हैं। इसके अलावा, उन्होंने एनईपी 2020 के कार्यान्वयन का नेतृत्व करने और अपनी अंतर्दृष्टि के माध्यम से बहुमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए श्री धर्मेंद्र प्रधान के प्रति आभार व्यक्त किया। इस कार्यशाला का उद्देश्य एनईपी 2020 को लागू करने के लिए विभिन्न दृष्टिकोणों और तरीकों का प्रसार करना; रोडमैप और कार्यान्वयन रणनीतियों को प्रभावी ढंग से स्पष्ट करना, ज्ञान के आदान-प्रदान को बढ़ावा देना; सभी हितधारकों को एक साथ आने और एनईपी 2020 के प्रभावी और सुचारू कार्यान्वयन के लिए नेटवर्क बनाने के लिए एक साझा मंच प्रदान करना और सरकारी संस्थानों में इसके अपनाने को प्रोत्साहित करना है, जो पूरे भारत में एक अधिक सशक्त, समावेशी और विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी शिक्षा प्रणाली का मार्ग प्रशस्त करेगी। एनईपी 2020 को अपनाने से, राज्यों की उच्च शिक्षा प्रणालियों को कई लाभ मिलते हैं। यह एक अधिक कुशल कार्यबल का निर्माण करके, निवेश आकर्षित करके और विकास को बढ़ावा देकर आर्थिक विकास को गति दे सकता है। उच्च शिक्षा को अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाकर, यह राज्यों की शिक्षा प्रणालियों की वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाता है, जिससे संभावित रूप से विदेशी छात्र और सहयोग आकर्षित होते हैं। इस नीति का अनुसंधान और बहुविषयक दृष्टिकोण पर जोर राज्यों के भीतर नवाचार इको-सिस्टम को बढ़ावा देता है, जिससे प्रौद्योगिक प्रगति और आर्थिक लाभ होता है। उच्च शिक्षा में एनईपी 2020 के सफल कार्यान्वयन के लिए राज्य सरकारों की सक्रिय भागीदारी और प्रतिबद्धता की आवश्यकता है। केंद्र सरकार की योजनाओं का लाभ उठाकर और राज्य की नीतियों को एनईपी 2020 के साथ संरेखित करके राज्यों के पास अपनी अनूठी सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करते हुए 21वीं सदी की चुनौतियों का सामना करने के लिए अपनी शिक्षा प्रणालियों को बदलने का अवसर है। इस दो-दिवसीय कार्यशाला के दौरान, एनईपी 2020 कार्यान्वयन- चुनौतियां और रोडमैप; शिक्षा में प्रौद्योगिकी; शिक्षा में सहयोग; डिजिटल शासन; क्षमता निर्माण और नेतृत्व; और उच्च शिक्षा के वित्तपोषण- पर 14 तकनीकी सत्र प्रख्यात पैनलिस्टों द्वारा आयोजित किए जा रहे हैं।

Check Also

कृषि मंत्रालय ने दक्षिणी राज्यों में कृषि योजनाओं के कार्यान्वयन की मध्यावधि समीक्षा की

दिल्ली (ब्यूरो) :- आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम में 18 और 19 नवंबर को कृषि एवं …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *